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अभी मंदी से नहीं मिल पाएगी शेयर बाजार को राहत

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 10:26 PM IST

अब से लगभग एक दशक से ज्यादा वक्त तक एन्ड्रयू हॉलैंड ने भारतीय शेयर बाजार पर अपनी पैनी नजर रखी है। उन्होंने हॉलैंड के बोक्ररेज हाउस मेरिल लिंच में भी काफी लंबे समय तक काम किया है।


हाल ही में वे ऐंबिट कैपिटल के सीईओ (इक्विटी) बने हैं। शोभना सुब्रमण्यन ने उनसे शेयर बाजार में मंदी के असर के बाबत बात की।

आप क्या सोचते हैं शेयर बाजार में पहले के मुकाबले किस तरह का बदलाव आया है?

जब मैं यहां 1997 में आया था उस वक्त वास्तव में भारत विदेशी निवेशकों पर ज्यादा निर्भर नहीं था।

मुझे याद है जब हमने दिल्ली और बेंगलुरु में कई कॉन्फ्रेस की तो उसमें कुल 12 निवेशक ही शामिल हुए थे जिससे से 6 विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) थे। अब कंपनियों की बढ़ती आय,  जीडीपी और एफआईआई की बढ़त से भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल चुकी है।

हालिया आतंकी हमले से भारत में विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है क्या?

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में आतंकवाद के असर के बावजूद भी विदेशी निवेशकों ने निवेश किया है। भारत में आतंकी हमले का नकारात्मक असर कम समय के लिए ही पड़ेगा। निवेशक किसी देश में निवेश करते वक्त लंबी अवधि के मुनाफे को देखते हैं।

एफआईआई और एफडीआई निवेशक कुछ सर्तक जरूर होंगे लेकिन इससे लंबी अवधि के निवेश के बेहतर विकल्प वाली भारत की छवि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

आपके मुताबिक युद्ध बाजार के लिए अच्छा है?

आमतौर पर युद्ध के बाद आपको अपनी पूरी सड़कें बनानी पड़ती हैं।(हंसते हुए)

दिसंबर में एफआईआई ने 50 करोड़ डॉलर का निवेश किया है उसका क्या मायने हैं?

मुझे लगता है कि यह शॉर्ट कवरिंग होगी। अभी इसकी मुश्किल का हिसाब लगाना आसान नहीं है।

पिछले साल 13 अरब डॉलर की जो कुल बिकवाली हुई उसके मुकाबले तो 500 मिलियन डॉलर कम ही है। हालांकि अब चुनिंदा कंपनियों के शेयरों पर ही दांव लगाया जा सकता है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि विदेशी निवेशक अचानक से ही भारत से मुंह फेर लेंगे।  

अगले 6-12 महीने तक आप भारतीय बाजार को किस तरह से देखते हैं?

मौजूदा हालात को देखकर ऐसा नहीं लगता कि मुश्किलें खत्म हो गई हैं। दुनिया भर के बाजार न्यूनतम स्तर तक पहुंच सकते हैं। इससे जोखिम का खतरा तो बढ़ेगा साथ ही लोग अब निवेश के खतरे कम ही उठाएंगे।

हालांकि इस वक्त ऐसे हालात हैं कि आप कहीं भी सुरक्षित नहीं हो सकते। हालांकि सोना या इसी तरह के जिंस के लिए निवेश किया जा सकता है।

कॉर्पोरेट कमाई में कमी आने से इसका सीधा असर शेयरों की कमाई पर पड़ रहा है?

हम पिछले साल सिंतबर-अक्टूबर में एक रिर्पोट लेकर आए। हमने 2008-09 के लिए सेंसेक्स की कमाई 1,200 रुपये की आम सहमति बनाई जो फिर 800 रुपये हो गया। वर्ष 2009-10 के लिए हमने 750 रुपये निर्धारित की।

मुझे लगता है कि 2009-10 में जीडीपी विकास दर वास्तव में 5 प्रतिशत या इससे नीचे भी हो सकता है। अगर यह बात सही होगी तो 750 रुपया ईपीएस भी ज्यादा हो सकता है और इसे 650-700 रुपये तक ही होना चाहिए।

अर्थव्यवस्था पर उठाए गए मौद्रिक कदमों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

ब्याज दरों में कमी के बावजूद आप अचानक ही लोगों में यह भरोसा नहीं बना सकते हैं। बैंक सभी को कर्ज नहीं दे रहे हैं और न उन्हें देना चाहिए।

कंपनियां भी एक दूसरे से अब कह रही हैं कि अब वे कैपेक्स पर खर्च करने नहीं जा रही हैं। जो पैकेज दिए गए वह अच्छे हैं लेकिन देर से आए हैं।

अभी स्थिति को सामान्य होने में कुछ वक्त लगेगा?

वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाले उद्योगों को तो जबरदस्त झटका लगा है और अब यह कॉर्पोरेट जगत के साथ उपभोक्ताओं को भी प्रभावित कर रही हैं। हालांकि  उभरते हुए बाजारों में हमने कमाई के लिहाज से कोई मुश्किल नहीं देखा है।

साथ ही हम किसी खास तिमाही को बुरा भी नहीं कह सकते। लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि भारत में लोगों की नौकरियां जा रही हैं और लोगों के वेतन में कटौती की शुरुआत हो चुकी है।

भारत के कॉर्पोरेट गर्वनेंस के मानकों को आप कैसे देखते हैं?
देश में कॉर्पोरेट गर्वनेंस अपेक्षाकृत ठीक ही रहा है। कॉरपोरेट गर्वनेंस की बेहतर गुणवत्ता नहीं होने के कारण ही  ऐसी कंपनियां मौजूद हैं जो छूट के साथ कारोबार कर रही हैं। लेकिन किसी एक मिसाल से पूरे भारत को कम नहीं आंका जाना चाहिए।

क्या आप सोचते हैं कि विदेशी निवेशक नियामकों से खुश हैं?


मुझे लगता है कि पिछले 5 से 10 सालों के दौरान संस्थाओं ने किसी नियामक का इंतजार किए बगैर ही जरूरत न होने के बावजूद कॉर्पोरेट गर्वनेंस की भूमिका निभानी शुरू कर दी।

आपको क्या लगता है बाजार में कब सुधार दिखेगा?

मुझे नकारात्मक सोच रखना अच्छा नहीं लगता लेकिन फिर भी मैं यह कहूंगा कि पहली तिमाही खराब होगी। मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि यहां चुनाव होने वाले हैं। हमारी चिंता यह है कि अब नीतियां बनाने में कितनी देरी होगी।

अगर इसमें देरी होती है तब जीडीपी पर जरूर नकारात्मक असर पड़ेगा और इसका असर कमाई पर भी पड़ेगा।

First Published : January 19, 2009 | 9:45 PM IST