पश्चिम एशिया में हालिया घटनाओं ने वैश्विक शेयर बाजारों में हलचल मचा दी है। पुनीत वाधवा ने इस बारे में नई दिल्ली में GQuant Investech के फाउंडर शंकर शर्मा से बात की। शंकर शर्मा का मानना है कि अगर निवेशकों का ध्यान चीन पर केंद्रित होता है, तो यह भारतीय शेयर बाजार के लिए नुकसानदेह हो सकता है। बातचीत के संपादित अंश:
सवाल: आपने हाल ही में कहा था कि युद्ध से शेयर बाजार में मंदी का दौर आ सकता है। क्या पश्चिम एशिया की वर्तमान घटनाएं ऐसा प्रभाव डाल सकती हैं?
शंकर शर्मा: हां, एक परमाणु युद्ध निश्चित रूप से शेयर बाजारों को मंदी के दौर में ला सकता है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि पश्चिम एशिया की मौजूदा घटनाओं से ऐसा होगा। शेयर बाजार की सबसे बड़ी मंदी अब समाप्त हो चुकी है, सिर्फ उसके छोटे रूप ही बचे हैं, जिनमें बाजार को मंदी में धकेलने की क्षमता नहीं है। हां, छोटी-छोटी रुकावटें हो सकती हैं, जो समय-समय पर थोड़े बहुत करेक्शन का कारण बन सकती हैं।
हमने शेयर बाजार में मंदी लाने वाले कारकों – अटकलें, महंगाई, युद्ध, बीमारी – को काबू करने की कला में महारत हासिल कर ली है। सरल शब्दों में, हम ‘प्राण’, ‘प्रेम चोपड़ा’, ‘गुलशन ग्रोवर’, जैसे सभी ‘विलेन’ से निपट चुके हैं। आखिरकार हीरो (बुल मार्केट) हमेशा जीतता है।
सवाल: मौजूदा प्रोत्साहन उपायों के संदर्भ में, चीन को आप कैसे देख रहे हैं? क्या चीन भारतीय शेयर बाजार की रफ्तार को धीमा कर सकता है?
शंकर शर्मा: हां, ऐसा हो सकता है, और इसमें कोई शक नहीं है। पिछले 2-3 सालों में, एशियाई या उभरते बाजार (EM) के संदर्भ में भारतीय इक्विटी का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। लेकिन अब चीनी बाजार हमारे सामने है। हमें यह समझना चाहिए कि चीन का बाजार छोटा नहीं है। इन प्रोत्साहन उपायों के चलते, चीन ने अपने बाजार पूंजीकरण में करीब 3 ट्रिलियन डॉलर जोड़े हैं, जो भारतीय शेयर बाजार के कुल आकार का बड़ा हिस्सा है। और यह उन्होंने सिर्फ एक रैली में हासिल किया है। चीन का बाजार बहुत बड़ा है, और अब निवेशक चीन पर भी ध्यान देंगे, जो 2-3 साल पहले नहीं हो रहा था। अब निवेशकों का फोकस सिर्फ भारत पर नहीं है।
सवाल: तो भारतीय शेयर बाजार को अपनी पुरानी चमक वापस पाने के लिए क्या करना होगा?
शंकर शर्मा: इसके लिए भारतीय बाजार को अपने आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा, और सरकार द्वारा उठाए गए प्रोत्साहन उपायों को ठोस रूप में लागू करना होगा, ताकि निवेशक दोबारा यहां आकर्षित हो सकें।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भारतीय इक्विटी बाजार पूरी तरह से कमजोर हो गए हैं। उनका महत्व बना रहेगा और उनकी चमक पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है।
सवाल: पश्चिम एशिया की घटनाओं के कारण भारतीय शेयर बाजार में हाल के सत्रों में आई गिरावट क्या और लंबी चल सकती है?
शंकर शर्मा: मुझे नहीं लगता कि दुनिया पश्चिम एशिया में तनाव को और बढ़ने देगी। इसमें बहुत जोखिम है और दांव पर बहुत कुछ लगा हुआ है। इसे अब रोकना ही बेहतर है। शेयर बाजार में जो गिरावट आई है, वह अस्थायी है। हालांकि, गाजा के मुद्दे का समाधान जरूरी है।
सवाल: अब तक भारतीय बाजारों की ऊंची कीमतें निवेशकों के लिए एक बाधा थीं। क्या हालिया गिरावट ने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजारों को अधिक आकर्षक बना दिया है?
शंकर शर्मा: भारतीय बाजार में अभी इतनी गिरावट नहीं आई है कि मूल्यांकन सस्ते हो जाएं। गिरावट सिर्फ 2-3 प्रतिशत के आसपास रही है। बाजार लगभग 22x फॉरवर्ड अर्निंग्स पर ट्रेड कर रहा था, जो सस्ते नहीं कहे जा सकते। निकट भविष्य में भारतीय बाजार और ठंडे पड़ सकते हैं, क्योंकि फिलहाल चीन का बाजार निवेशकों का ध्यान खींच रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय इक्विटी बाजारों में जो तेजी देखी गई थी, वैसी बेतहाशा बढ़ोतरी अब नहीं होगी। हालांकि, हम मंदी के दौर में नहीं जाएंगे, लेकिन एक चक्रीय धीमापन (cyclical slowdown) जरूर देखने को मिलेगा। मंदी की स्थिति से इनकार किया जा सकता है।
सवाल: तो क्या यह एक तेज सुधार है?
शंकर शर्मा: बिल्कुल। एक बियर मार्केट तब होता है जब कोई स्टॉक या इंडेक्स 20 प्रतिशत या उससे अधिक गिर जाता है। आजकल गिरावट तेज होती है और रिकवरी भी जल्दी हो जाती है, केवल 4-5 दिनों में मामला निपट जाता है। संक्षेप में, मुझे भारतीय इक्विटी बाजारों के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं दिखता, लेकिन एक धीमापन जरूर नजर आ रहा है।
सवाल: ऐसा लगता है कि खुदरा निवेशकों ने अब प्राइमरी मार्केट को अपना नया प्ले ग्राउंड बना लिया है। क्या प्राइमरी मार्केट्स अब लिक्विडिटी के मामले में सेकेंडरी मार्केट में पहले से मजबूत रहे छोटे और मझोले शेयरों के लिए खतरा बन रहे हैं?
शंकर शर्मा: प्राइमरी मार्केट्स में अक्सर ऐसी कंपनियां आती हैं जिनके पास मजबूत बुनियादी ढांचा या ठोस व्यवसाय मॉडल नहीं होता, लेकिन उनकी वैल्यूएशन बहुत ऊंची होती है। हमने यह पहले भी देखा है, जैसे 1996 में, जब चीजें खराब हो गई थीं। लेकिन तब से निवेशक काफी मैच्योर हो गए हैं और अब वे सोच-समझकर निवेश करते हैं।
सवाल: 1996 की बात करें, तो आप उन पहले रिसर्च हाउस में से एक थे, जिन्होंने HDFC बैंक को पहचाना और उसके आईपीओ पर ‘बाय’ की सिफारिश की थी। क्या आपको अब ऐसी कोई कंपनी दिखती है जो प्राइमरी मार्केट में उसी तरह की संभावनाएं रखती हो?
शंकर शर्मा: HDFC बैंक एक अलग ही मामला था। उसका आईपीओ बिना किसी बड़े प्रीमियम के आया था, यानी निवेशकों के लिए काफी संभावनाएं थीं। आजकल ज्यादातर आईपीओ भारी प्रीमियम के साथ आते हैं और निवेशकों के लिए ज्यादा कुछ नहीं छोड़ते। उस समय फ्री प्राइसिंग नहीं थी, जैसा कि आज है। अब अगर कोई अच्छी कंपनी बाजार में आती है, तो वह भी भारी प्रीमियम के साथ आती है, जिससे भविष्य में मुनाफा कमाने की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं। HDFC बैंक जैसा आईपीओ मिलना आज के समय में वैसा ही है, जैसे रमेश सिप्पी से एक और “शोले” की उम्मीद करना।