एक जुलाई से स्टांप ड्यूटी लगने के कारण म्युचुअल फंड निवेशकों का रिटर्न घटने वाला है। यूनिट जारी करने पर 0.005 फीसदी स्टांप ड््यूटी लगाई जाएगी जबकि एमएफ यूनिट के हस्तांतरण पर 0.015 फीसदी स्टांप ड््यूटी चुकानी होगी। यूनिट की खरीद, स्विच इन और लाभांश का फिर से निवेश यूनिट जारी करने के दायरे में शामिल है जबकि ऑफ मार्केट लेनदेन में हस्तांतरण आता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, लिक्विड और ओवरनाइट फंडों में जिन निवेशकों को यूनिट जारी हुआ है और जिनके पास 30 दिन से कम का शॉर्ट टर्म होल्डिंग है, उन पर सबसे ज्यादा असर पडऩे की आशंका है।
केंद्र सरकार ने पिछले साल दिसंबर में शेयर, ऋणपत्र, वायदा, विकल्प, करेंसी व पूंजी बाजार की अन्य प्रतिभूतियां जारी होने और उसके हस्तांतरण पर स्टांप ड््यूटी की संशोधित व्यवस्था अधिसूचित की थी।
इसे 9 जनवरी से लागू होना था, लेकिन पहले इसे एक अप्रैल तक के लिए टाला गया और उसके बाद 1 जुलाई के लिए। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर इसे और आगे बढ़ाने की मांग की है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
म्युचुअल फंड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, अगर आप बार-बार बदलाव करते हैं और आपकी होल्डिंग यानी निवेश की अवधि 30 दिन से कम है तो आपको स्टांप ड्यूटी की लागत का ध्यान रखना होगा। ज्यादा रिटर्न की तलाश में लिक्विड फंड में निवेश करने वालों की प्रवृत्ति पोर्टफोलियो में बदलाव करने और हर सात दिन में फंडों के बीच स्विच करने की होती है।
अधिकारी ने कहा, अब इस तरह के व्यवहार का कोई मतलब नहीं बनता क्योंकि निवेशकों को स्टांप ड्यूटी के असर का ध्यान रखना होगा। लंबे समय तक निवेशित बने रहना और उसके हिसाब से रकम लगाने की योजना उनके हित में होगी।
कम रिटर्न से निवेशक अपनी रकम बैंकों की सावधि जमाओं में लगाने पर विचार कर सकते है और उसमें भी रिटर्न घटा है। ओवरनाइट व लिक्विड फंडों में शुद्ध प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां 31 मई, 2020 को 67,299 करोड़ रुपये थी। ओवरनाइट फंड से मई में 15,880 करोड़ रुपये की निकासी हुई जबकि लिक्विड फंडों से 61,870 करोड़ रुपये की निकासी हुई।