भारत समेत दुनियाभर के बाजारों में ऋण संकट के कारण शेयरों और बांडों की जमकर बिकवाली हो रही है, इसके चलते भारत के प्रतिभूतिकरण बाजार में ठहराव सा आ गया है।
इस बाजार में लेन-देन में आए ठहराव के कारण बैंक और अन्य कर्जदाताओं को अतिरिक्त पूंजी के लिए दूसरे स्रोत तलाशने पर मजबूर किया है ताकि वे उधार बांट सकें। प्रतिभूतिकरण बाजार में यह ठहराव पेपरों में सबसे बड़े निवेशक म्युचुअल फंडों के लिक्विड पेपरों की बिकवाली के लिए मजबूर होने के कारण आया।
फंड मैनेजरों को यह कदम निवेशकों द्वारा तेजी से रिडेंपशन किए जाने के बाद उठाना पड़ा। अधिकांश सेक्योरिटाइज्ड पेपर को आसानी से भुनाया नहीं जा सकता क्योंकि इनमें सेकेंडरी मार्केट में कभी कभार ही कारोबार होता है।
म्युचुअल फंडों ने अपने डेट और लिक्विड फंडों के जरिए अपनी कुल ऐसेट का 10-15 फीसदी सेक्योरिटाइज्ड पेपरों में निवेश किया है। सुंदरम बीएनपी में फिक्स्ड इनकम प्रमुख राम कुमार ने बताया कि अब इन पेपरों की मांग बेहद कम हो चली है।
इन डेट और लिक्विड फंडों में सबसे बड़े निवेशकों में से एक कार्पोरेट भी अब इनसे कन्नी काट रहा है क्योंकि वह अब वह धन अपनी कार्यशील पूंजी की जरूरतों और दूसरे खर्चो को पूरा करने में लगा रहा है।
एएमफआई द्वारा अक्टूबर से अपने आंकडो के प्रकाशन शुरु किए जाने के बाद से एक माह में ही निवेशकों ने 46,793 करोड़ रुपये की राशि म्युचुअल फंडों से निकाली। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के अनुसार सितंबर 2008 में ऋण का प्रतिभूतिकरण 72 फीसदी बढ़कर 36,150 करोड़ रुपये हो गया।
यह राशि पिछले साल इसी समयावधि में 20,850 करोड़ रुपये थी। इसकी तुलना में प्रतिभूति सौदे अक्टूबर और नवंबर के माह में पूरी तरह से कम हो गए हैं।