सॉवरिन वेल्थ फंडों (एसडब्ल्यूएफ) ने मार्च से भारतीय शेयर बाजार में अपना निवेश बढ़ाया है, जो इन उम्मीदों के विपरीत है कि ये फंड कोविड-19 महामारी के बीच बाजार से दूर रहेंगे।
साल के पहले तीन महीनों (कोविड-19 फैलने से पहले) के मुकाबले अब भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों के बीच इनकी अच्छी भागीदारी है। एसडब्ल्यूएफ अक्सर मंदी की अवधि का इस्तेमाल करने के लिए निवेशित पूंजी से स्वाभाविक तौर पर लाभ कमाने पर जोर देते हैं। ऐसे कई बड़े फंड उन देशों से हैं जो कच्चे तेल भंडारों के मामले में संपन्न रहे हैं। कई देशों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए व्यावसायिक गतिविधियां सीमित कर दी हैं जिससे कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और मांग में कमी आई है।
भारत में एसडब्ल्यूएफ की इक्विटी परिसंपत्तियां मार्च के अंत में 1.34 लाख करोड़ रुपये थीं। अगस्त के अंत में ये बढ़कर 1.88 लाख करोड़ रुपये हो गईं। अगस्त का आंकड़ा साल के लिए अब तक सर्वाधिक है और यह जनवरी (1.83 लाख करोड़ रुपये) और फरवरी (1.73 लाख करोड़ रुपये) के मुकाबले भी ज्यादा है। सरकार ने मार्च में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन शुरू किया था। कुल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में सॉवरिन फंडों का योगदान अगस्त में बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गया। जनवरी में यह आंकड़ा 5.94 प्रतिशत था।
इसमें से कुछ वृद्घि व्यक्तिगत कंपनियों में बड़े निवेश से भी संभव हुई। उदाहरण के लिए, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सऊदी अरब के पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड द्वारा जियो प्लेटफॉम्र्स में 2.32 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 11,367 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। डाल्टन कैपिटल एडवाइजर्स (इंडिया) में निदेशक यू आर भट का मानना है कि तेल कीमतों में सुधार और वैश्विक रूप से नकदी की उपलब्धता ऐसे कुछ कारक हैं जिनसे बिकवाली दबाव नरम पड़ सकता है। उनका कहना है कि अल्पावधि परिदृश्य बिकवाली का संकेत नहीं देता है।
उनका मानना है, ‘तेल कीमतों में काफी हद तक सुधार आया है।’कच्चे तेल की कीमतें अप्रैल में गिरकर 16 डॉलर प्रति बैरल से नीचे पहुंच गई थीं। मंगलवार को ये 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थीं।
केआरचोकसी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी का कहना है कि केंद्रीय बैंकों और सरकारों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयास में बड़ी तादाद में पूंजी उपलब्ध कराई है। इससे विदेशी निवेशकों से बड़ी निकासी की संभावना कमजोर हुई है, क्योंकि आसान नकदी शर्तें कुछ समय तक बरकरार रहने की संभावना है।