छोटी कंपनियों को अपने बड़े प्रतिस्पर्धियों के हाथों लगातार कारोबार गंवाना पड़ रहा है और उनके लिए यह कमजोरी दो साल में सर्वाधिक रही है। छोटी सूचीबद्घ कंपनियों की राजस्व भागीदारी में बड़ी गिरावट आई है, जबकि बड़ी कंपनियों ने औसत राजस्व में अपनी भागीदारी में इजाफा दर्ज किया है।
राजस्व के संदर्भ में प्रमुख सूचीबद्घ कंपनियों का जुलाई-सितंबर तिमाही में सभी सूचीबद्घ कंपनियों के संयुक्त राजस्व में 77.2 प्रतिशत का योगदान रहा, जो एक साल पहले के 75.6 प्रतिशत से और चार साल पहले के 75.8 प्रतिशत से ज्यादा है।
इसके विपरीत, अन्य कंपनियों (शीर्ष-200 कंपनियों को छोड़कर) की राजस्व भागीदारी 2020-21 की दूसरी तिमाही में 22.8 प्रतिशत घटी, जो एक साल पहले 24.4 प्रतिशत और चार साल पहले 2015-16 की दूसरी तिमाही में 24.2 प्रतिशत थी।
यह विश्लेषण बैंकों, एनबीएफसी को छोड़कर सभी क्षेत्रों की 2,353 सूचीबद्घ कंपनियों के त्रैमासिक नतीजों पर आधारित है और इस नमूने में शामिल कंपनियों में बीमा और तेल एवं गैस क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। सभी आंकड़े पिछली चार तिमाहियों (या पिछले 12 महीनों) पर आधारित हैं।
छोटी कंपनियों में कमजोरी बिजनेस स्टैंडर्ड सैम्पल में शामिल सभी सूचीबद्घ कंपनियों के औसत राजस्व के बीच बढ़ रहे अंतर में भी स्पष्ट दिखी है। जहां सभी सूचीबद्घ कंपनियों का औसत राजस्व पिछले तीन वर्षों में 3 प्रतिशत घटा है, वहीं मध्यम राजस्व में इस अवधि के दौरान एक-चौथाई तक की कमी आई।
नमूने में शामिल कंपनियों ने इस साल सितंबर में समाप्त 12 महीनों के दौरान 2,008 करोड़ रुपये का औसत राजस्व दर्ज किया, जबकि सितंबर 2018 में यह आंकड़ा 2,075 करोड़ और सितंबर 2016 में 1,683 करोड़ रुपये था।
इसके विपरीत नमूने में शामिल कंपनियों के लिए मध्यम राजस्व इस साल सितंबर में समाप्त 12 महीनों के दौरान 151 करोड़ रुपये के साथ चार वर्ष के निचले स्तर पर रहा, जो दो साल पहले के 196 करोड़ और चार साल पहले के 171 करोड़ रुपये से कम है।
औसत वैल्यू की गणना सभी कंपनियों के संयुक्त राजस्व को कंपनियों की संख्या से भाग देकर की जाती है। इसका परिणाम काफी हद तक कम संख्या में बड़ी कंपनियों से प्रभावित होता है। इसके विपरीत, मध्यम (मीडियन) कंपनियां बीच की संख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं।
बड़ी कंपनियों की मदद से भारतीय उद्योग जगत लगातार तेजी से बढ़ा है। लेकिन मध्यम कंपनी का आकार पिछले चार वर्षों में घटा है।
विश्लेषकों ने इसके लिए नवंबर 2016 में नोटबंदी और उसके बाद जुलाई 2017 में जीएसटी पेशकश की वजह से पैदा हुए आर्थिक और वित्तीय झटकों को जिम्मेदार करार दिया है। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल रिसर्च के शोध प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘नोटबंदी और जीएसटी पूरी व्यवस्था और छोटी कंपनियों के लिए दोहरे झटके थे, क्योंकि उनके पास सीमित वित्तीय शक्ति रह जाने से कारोबार में बने रहना मुश्किल हो गया था और इससे हाल के वर्षों में धीमी वृद्घि को बढ़ावा मिला है।’
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इससे भारत में रोजगार की समस्या और गहरा सकती है। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘छोटी कंपनियां अक्सर श्रम-केंद्रित उद्योगों में परिचालन करती हैं और उनकी धीमी वृद्घि से रोजगार वृद्घि की रफ्तार प्रभावित होगी।’
सिन्हा के अनुसार, छोटी कंपनियों के कमजोर प्रदर्शन से भारत की विकास संभावना भी घटी है और इससे बैंकिंग तथा गैर-बैंकिंग वित्त क्षेत्र में फंसे कर्ज की समस्या बढ़ी है।