मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के चेयरमैन और सह-संस्थापक रामदेव अग्रवाल
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के चेयरमैन और सह-संस्थापक रामदेव अग्रवाल का कहना है कि भारत दीर्घकालिक धन सृजन के असाधारण दौर में प्रवेश कर रहा है और वित्तीय क्षेत्र को इसका सबसे अधिक लाभ मिलने की संभावना है। अपनी 30वीं वेल्थ क्रिएशन स्टडी रिपोर्ट जारी करने से पहले समी मोडक से बातचीत में अग्रवाल ने तर्क दिया कि घरेलू भागीदारी में वृद्धि और मजबूत धन प्रभाव के कारण सेंसेक्स से 12 से 15 फीसदी का सालाना रिटर्न मिलना संभव है। संपादित अंश:
नवीनतम वेल्थ क्रिएशन स्टडी की थीम क्या है?
पिछली कुछ शताब्दियों में धन के मूल स्वरूप में नाटकीय परिवर्तन आया है। मानव इतिहास के अधिकांश समय में धन का अर्थ भौतिक संपत्तियां थीं – भूमि, धातुएं, महल, सेनाएं। लगभग 150-200 वर्ष पहले ज्वायंट स्टॉक कंपनियों के आगमन के साथ यह स्थिति बदल गई और धीरे-धीरे वित्तीय संपत्तियों का वर्चस्व बनने लगा। 1990 तक वैश्विक भौतिक और वित्तीय संपदा करीब-करीब बराबर थीं।
आज अरबपतियों की लगभग सारी संपदा वित्तीय रूप में है, भौतिक संपत्ति नगण्य है। यह वृद्धि चौंकानेवाली है : वैश्विक वित्तीय धन 1980 के 13 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 2000 तक 88 लाख करोड़ डॉलर और 2025 तक करीब 600 लाख करोड़ डॉलर हो गया।
इस जबरदस्त बढ़ोतरी से पता चलता है कि वित्तीय संपदा की कोई सीमा नहीं है और कई देशों, खास तौर पर अमेरिका, में बाजार पूंजीकरण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से कहीं आगे निकल गया है। भारत भी इसी राह पर है, जहां दो दशक में बाजार पूंजीकरण-जीडीपी अनुपात 40 फीसदी से बढ़कर 140 फीसदी पर पहुंच गया है जबकि शेयरों में खुदरा और संस्थागत भागीदारी अभूतपूर्व गति से बढ़ रही है। यह बढ़ता हुआ ‘धन प्रभाव’ उपभोग, बचत और कंपनियों की आय को तेजी से प्रभावित करेगा और निवेशकों को इस बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए।
जीडीपी के सापेक्ष भारत में धन कितनी तेजी से बढ़ रहा है?
वैश्विक स्तर पर जीडीपी करीब 5 फीसदी की दर से बढ़ती है जबकि वित्तीय धन में करीब 7 फीसदी की दर से इजाफा होता है। भारत में यह अंतर कहीं अधिक है : डॉलर में जीडीपी करीब 9 फीसदी की दर से बढ़ती है, लेकिन वित्तीय संपदा 12-13 फीसदी की दर से बढ़ती है। यह अंतर काफी महत्त्वपूर्ण है और पिछले दो दशक में बाजार पूंजीकरण और जीडीपी के अनुपात में हुई तीव्र वृद्धि का कारण भी यही है।
2025 और 2047 के बीच भारत का जीडीपी 6.6 गुना बढ़कर 4 लाख करोड़ डॉलर से 26 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है, जिससे इकनॉमिक आउटपुट में 22 लाख करोड़ डॉलर की वृद्धि होगी। प्रति व्यक्ति आय के 2,600 डॉलर से बढ़कर 14,000 डॉलर से अधिक होने से विवेकाधीन उत्पादों, ऑटोमोबाइल, घरेलू उपकरणों, यात्रा, वित्तीय सेवाओं और धन प्रबंधन के उपयोग में तेजी आएगी।
नवीनतम अध्ययन के अनुसार सबसे बड़े और सबसे तेजी से धन सृजन करने वाले शेयर कौन हैं?
भारती एयरटेल इस सूची में सबसे ऊपर है, जिसने उद्योग के एकीकरण और मजबूत यूनिट इकनॉमिक्स के दम पर 2020 से 2025 के बीच अपने बाजार मूल्य में 7.9 लाख करोड़ रुपये जोड़े हैं। 7.4 लाख करोड़ रुपये के साथ आईसीआईसीआई बैंक निकटतम दूसरे स्थान पर है। रिटर्न की बात करें तो बीएसई ने शेयरधारकों को सबसे तेज लाभ दिया है – 2020 से 2025 के बीच 124 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि की रफ्तार से।
हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली कंपनी है, जिसने लगातार पांच वर्षों तक निफ्टी से बेहतर प्रदर्शन किया है और 75 फीसदी सालाना दर से वृद्धि दर्ज की है, जो लंबी अवधि के लाभ पूर्वानुमान और मजबूत ऑर्डर बुक की ताकत दर्शाती है।
उच्च गुणवत्ता वाले दीर्घकालिक दांव की कैसे पहचान की जाए?
यह बहुत दुर्लभ है। जब से हमने यह अध्ययन शुरू किया है, तब से मूल्य सीएजीआर, लाभ सीएजीआर और न्यूनतम रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) के आधार पर केवल कुछ ही वास्तविक दीर्घकालिक दांव मिले हैं। सीधी सी बात है : जब आपको कोई वास्तविक दांव मिले तो उसे अपने पास रखें, बेचें नहीं। अधिकांश निवेशक तिमाही से आगे नहीं देख पाते। कंपाउंडिंग जादुई तरीके से काम करती है, लेकिन इसमें समय लगता है।
सेंसेक्स ने 40 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस सूचकांक में क्या बदलाव आए हैं और क्या यह बाजार की व्यापकता दर्शाने में सक्षम रहा है?
सेंसेक्स और समग्र रूप से घरेलू पूंजी बाजार, अंतर्निहित अर्थव्यवस्था को प्रतिबिंबित करते हैं। पहले टाटा और बिड़ला जैसे औद्योगिक समूहों का प्रमुख सूचकांकों पर दबदबा था। आज नई पीढ़ी की तकनीकी और ई-कॉमर्स कंपनियां उनकी जगह ले रही हैं। साथ ही, पहले प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 70-80 फीसदी हुआ करती थी। अब आप ऐसी कंपनियां देखते हैं, जहां संस्थापकों की हिस्सेदारी 2-5 फीसदी है। यह नई पीढ़ी है – सरल, पहली बार के उद्यमी अविश्वसनीय गति से विशाल कारोबार खड़ा कर रहे हैं और बाजार में अपनी छाप छोड़ रहे हैं।
सेंसेक्स ने सालाना 15 फीसदी का दीर्घकालिक बाजार रिटर्न दिया है। क्या यह सिलसिला जारी रह सकता है?
जी हां, 12-15 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) टिकाऊ है। अगर आप गिरावट के दौरान खरीदते हैं तो रिटर्न और भी अधिक हो जाता है। अगर आप उच्चतम स्तर पर खरीदते हैं तो लगभग 10 फीसदी रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं। लंबी अवधि में औसत रिटर्न 12-14 फीसदी बन जाता है। यह एक अच्छा रिटर्न है।
पिछले चार दशकों में घरेलू बाजारों के लिए सबसे कारगर क्या रहा है?
मेरे विचार से भारतीय उद्यमिता। वर्ष 1991 तक लाइसेंस व्यवस्था ने उद्यमशीलता के सपनों को कुचल दिया था। 1991 के बाद बाधाएं दूर हुईं और पूंजी उपलब्ध होने लगी। 2000 के बाद जोखिम पूंजी (वेंचर और प्राइवेट इक्विटी) ने उद्यमिता को जोरदार गति दी। इसीने भारत को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है।