भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) लंबी अवधि के डेरिवेटिव उत्पादों की ओर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रहा है ताकि वे हेजिंग के अपेक्षित उद्देश्य को पूरा कर सकें। सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने आज यह बात कही। उन्होंने डेरिवेटिव श्रेणी में अधिक गुणवत्ता एवं संतुलन सुनिश्चित करने का आह्वान किया। इस श्रेणी में नकद श्रेणी के मुकाबले वॉल्यूम काफी अधिक है।
पांडेय ने फिक्की के 22वें वार्षिक कैपिटल मार्केट्स कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘हमने अक्सर कहा है कि इक्विटी डेरिवेटिव पूंजी निर्माण में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मगर हमें गुणवत्ता और संतुलन सुनिश्चित करना चाहिए। हम डेरिवेटिव उत्पादों की अवधि एवं परिपक्वता प्रोफाइल को बेहतर बनाने के तरीकों पर हितधारकों से परामर्श करेंगे ताकि वे बेहतर तरीके से हेजिंग और दीर्घकालिक निवेश कर सकें।’
पांडेय की यह टिप्पणी डेरिवेटिव में व्यक्तिगत निवेशकों के बढ़ते नुकसान और वैश्विक ट्रेडिंग फर्मों द्वारा कथित हेराफेरी की पृष्ठभूमि में आई है। उनकी टिप्पणी से अटकलें तेज हो गईं कि सेबी जल्द ही साप्ताहिक डेरिवेटिव अनुबंधों को बंद कर सकता है। इससे बीएसई के शेयरों में 7.7 फीसदी की गिरावट आई। अल्पकालिक डेरिवेटिव अनुबंध स्टॉक एक्सचेंजों के लिए सबसे बड़े वॉल्यूम तैयार करते हैं। हालांकि सेबी प्रमुख ने निकट भविष्य में ऐसी किसी योजना से इनकार किया।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने इसी कार्यक्रम में कहा, ‘हम डेरिवेटिव उत्पादों की अवधि एवं परिपक्वता प्रोफाइल को बेहतर बनाने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं ताकि वे लगातार पूंजी निर्माण में मदद कर सकें और परिवेश
में सर्वांगीण विश्वास को बढ़ावा दे सकें।’
पांडेय ने कहा कि सेबी नकद इक्विटी बाजार को भी गहराई देने की तैयारी में है। पिछले तीन वर्षों के दौरान इस श्रेणी में दैनिक कारोबार की मात्रा दोगुनी हो चुकी है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। सेबी के चेयरमैन ने आईपीओ लाने की तैयारी करने वाली कंपनियों के लिए एक पायलट परियोजना शुरू करने का भी संकेत दिया।
कार्यक्रम में एक अन्य सरकारी अधिकारी ने बताया कि कंपनी कार्य मंत्रालय को सेबी से ऐसी पायलट परियोजना शुरू करने का विवरण प्राप्त हुआ है। इस कदम से गैर-सूचीबद्ध बाजार में व्यापार को एक औपचारिक ढांचे के तहत लाने की उम्मीद है। इससे सरकार को ऐसे लेनदेन पर कर जुटाने में मदद मिलेगी। इस परियोजना में ऐसी गैर-सूचीबद्ध कंपनियां शामिल हैं जो कंपनी कार्य मंत्रालय के अंतर्गत आती हैं।