प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
गवर्नेंस फर्म इनगवर्न रिसर्च ने विदेशी शॉर्ट-सेलर रिपोर्टों से बाजार में पैदा हुई अस्थिरता का हवाला देते हुए निवेशकों के लिए सुरक्षा उपायों की मांग की है। यह वायसराय रिसर्च की 9 जुलाई की रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें वेदांत में गवर्नेंस संबंधी समस्याओं का आरोप लगाया गया था, जिसके कारण इंट्राडे में शेयर में करीब 8 फीसदी की गिरावट आई थी।
शॉर्ट-सेलिंग को वैध, विनियमित गतिविधि के रूप में स्वीकार करते हुए (जो बाजार में तरलता और मूल्य खोज में सहायता करती है) इनगवर्न ने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी रिपोर्टें अक्सर अपने लेखकों के वित्तीय हितों की पूर्ति करती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक आंकड़ों की नकारात्मक व्याख्या के साथ शॉर्ट-सेलर्स के आलोचनात्मक शोध रिपोर्ट से बाजार में घबराहट की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे शॉर्ट-सेलर को स्टॉक या बॉन्ड की कीमतों में बाद में होने वाले उतार-चढ़ाव से वित्तीय लाभ हो सकता है।
इनगवर्न ने एक अहम नियामकीय खाई को उजागर किया, जिसमें वायसराय जैसी विदेशी संस्थाएं (जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ अपंजीकृत हैं) घरेलू जांच का सामना किए बिना भारतीय बाजारों को प्रभावित करने वाली रिपोर्ट प्रकाशित कर सकती हैं।
इनगवर्न ने कहा, सेबी के साथ पंजीकृत नहीं होने वाले विदेशी शोध संगठन भारतीय नियामक जांच के अधीन हुए बिना भारतीय कंपनियों पर रिपोर्ट प्रकाशित कर सकते हैं, तब भी जब उनके काम सीधे तौर पर भारतीय निवेशकों और बाजारों को प्रभावित करते हों। उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट जैसी पिछली घटनाओं का हवाला दिया, जिसने नियामकीय सुधारों को प्रेरित किया था।
सेबी ने भारतीय प्रतिभूतियों को कवर करने वाले शोध विश्लेषकों के लिए पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है ताकि जवाबदेही और निगरानी सुनिश्चित हो सके। हालांकि यह केवल घरेलू संस्थाओं पर ही लागू होता है।
वेदांत के मामले में इनगवर्न ने शॉर्ट-सेलर के दावों के प्रासंगिक विश्लेषण की सलाह दी और कहा कि अगर पारदर्शी तरीके से प्रबंधन किया जाए तो सहायक कंपनियों के जरिये ऋण चुकाना दुनिया भर में आम है। कंपनी ने हाल ही में हुई शेयरधारक बैठकों में वेदांत के संबंधित-पक्षकार लेनदेन और पूंजी आवंटन पर निवेशकों की बढ़ती जांच की बात कही।
इस बीच, जीरोधा के संस्थापक नितिन कामत समेत उद्योग जगत के लोगों ने भारत में शॉर्ट-सेलिंग तंत्र की संरचनात्मक कमी को रेखांकित किया।
कामत ने सोशल मीडिया पर कहा, जब तक हम भारतीय बाजारों में शेयरों की शॉर्टिंग को आसान नहीं बनाते, तब तक मूल्य निर्धारण में बाधा आएगी। भारत संरचनात्मक रूप से केवल लॉन्ग-ओनली बाजार रहा है, जहाँ शॉर्टिंग गतिविधि लगभग न के बराबर है, क्योंकि शॉर्टिंग के लिए शेयर उधार लेना वाकई मुश्किल है और एक ऑफलाइन प्रक्रिया है।