Dividend Income: पिछले वित्त वर्ष में आय और मुनाफा नरम रहने के बावजूद भारतीय कंपनी जगत ने अपने शेयरधारकों को ज्यादा डिविडेंड (Dividend) का भुगतान किया है। देश की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों का कुल डिविडेंड भुगतान वित्त वर्ष 2025 में 5 लाख करोड़ रुपये रहा जो वित्त वर्ष 2024 के 4.52 लाख करोड़ रुपये से 10.8 फीसदी अधिक है।
इसकी तुलना में इन कंपनियों का कुल शुद्ध मुनाफा वित्त वर्ष 2025 में 5.2 फीसदी बढ़कर 16 लाख करोड़ रुपये रहा, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 15.21 लाख करोड़ रुपये था। इन कंपनियों की कुल शुद्ध आय/बिक्री वित्त वर्ष 2025 में 7.5 फीसदी बढ़कर 166.4 लाख करोड़ रुपये रही जो वित्त वर्ष 2024 में 154.83 लाख करोड़ रुपये थी।
हालांकि कंपनियों द्वारा अपने शेयरधारकों को किया गया कुल भुगतान, जिसमें शेयर पुनर्खरीद भी शामिल है, वह वित्त वर्ष 2025 में 1.7 फीसदी बढ़कर 5.08 लाख करोड़ रुपये रहा, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 5.03 लाख करोड़ रुपये था। कंपनियों द्वारा शेयरधारकों को किया गया कुल भुगतान 5 साल में सबसे कम बढ़ा है। प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में महज 8,034 करोड़ रुपये की शेयर पुनर्खरीद की गई जबकि वित्त वर्ष 2024 में 50,751 करोड़ रुपये की पुनर्खरीद की गई थी।
इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2025 में डिविडेंड भुगतान अनुपात बढ़कर 31.3 फीसदी हो गया जो वित्त वर्ष 2024 में 29.7 फीसदी पर दशक में सबसे कम था। मगर यह 10 साल के औसत भुगतान अनुपात 35 फीसदी से कम ही है। शेयर पुनर्खरीद घटने से कुल भुगतान का आंकड़ा कम दिख रहा है। बीते 10 साल में कंपनियों ने अपने शेयरधारकों को सालाना शुद्ध मुनाफे का करीब 40 फीसदी भुगतान लाभांश और पुनर्खरीद के माध्यम से किया है।
विश्लेषकों का कहना है कि भुगतान अनुपात में गिरावट मुख्य रूप से आईटी कंपनियों द्वारा पुनर्खरीद बंद करने की वजह से आई है। इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी के संस्थापक और सीईओ जी चोकालिंगम कहते हैं, ‘आईटी क्षेत्र में शेयर पुनर्खरीद में तेजी का दौर अब लगभग खत्म हो चुका है और कंपनियों के पास उच्च लाभांश भुगतान के माध्यम से इसकी भरपाई करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है। अन्य क्षेत्रों में कंपनियां या तो पूंजीगत व्यय के लिए या राजस्व और मुनाफे में नरमी से निपटने के लिए पैसा अपने पास बनाए रख रही हैं।’
वित्त वर्ष 2025 में लगातार दूसरे साल शेयरधारकों को कुल भुगतान कम मिला है। यह कोरोना महामारी के बाद लाभांश और शेयर पुनर्खरीद से प्राप्त आय में की तेजी खत्म होने का संकेत है। उदाहरण के लिए कंपनियों का लाभांश भुगतान वित्त वर्ष 2020 से 2023 के दौरान सालाना 29.6 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है जबकि कुल भुगतान इस दौरान 28 फीसदी बढ़ा था। इस दौरान कंपनियों का मुनाफा भी सालाना 29.5 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है।
कंपनियों द्वारा बीते दो साल में लाभांश भुगतान सालाना 7.4 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है जबकि कुल भुगान 5.7 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। यह कंपनियों के मुनाफा वृद्धि की तुलना में काफी धीमी वृद्धि है। हमारे नमूने में शामिल कंपनियों का शुद्ध मुनाफा पिछले दो साल में सालाना 15.9 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है।
वित्त वर्ष 2025 में सूचीबद्ध कंपनियों ने शेयर पुनर्खरीद पर 9 साल में सबसे कम खर्च किया। वित्त वर्ष 2028 में शेयरधारकों के कुल भुगतान में 21.6 फीसदी हिस्सा पुनर्खरीद का था। वित्त वर्ष 2025 में यह अनुपात घटकर 1.6 फीसदी रह गया।
विश्लेषकों का कहना है कि आईटी जैसी ज्यादा नकदी वाली कंपनियां अपने शेयरधारकों को पुनर्खरीद के बजाय लाभांश भुगतान करने पर जोर दिया जबकि पहले वह पुनर्खरीद को तरजीह देती थीं। पुनर्खरीद पर कराधान में बदलाव करके इसे लाभांश के बराबर कर दिया है जिससे पुनर्खरीद का आकर्षण थोड़ा कम हो गया है।
टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) लगातार दूसरे साल सबसे ज्यादा लाभांश देने वाली कंपनी रही। टीसीएस ने वित्त वर्ष 2025 में अपने शेयरधारकों को 45,612 करोड़ रुपये का कुल भुगतान किया, जो वित्त वर्ष 2024 से 72.6 फीसदी अधिक है। कंपनी ने 2024 में शेयर पुनर्खरीद किया था जबकि 2025 में ऐसा नहीं हुआ। आईटीसी ने वित्त वर्ष 2025 में अपने शेयरधारकों को 17,958 करोड़ रुपये का भुगतान किया और इन्फोसिस ने 17,828 करोड़ रुपये दिए। शीर्ष 10 कंपनियों ने वित्त वर्ष 2025 में अपने शेयरधारकों को 1.9 लाख कराड़ रुपये का भुगतान किया जो हमारे नमूने में शामिल कंपनियों का कुल भुगतान का 38 फीसदी है।