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अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में तेजी से बढ़ी ग्लोबल चिंता, एक देश की गलती से सभी को लग जाएगा झटका

इस कारण निवेशकों को बढ़ते जोखिम की भरपाई के लिए अधिक रिटर्न की ओर रुख करने को मजबूर होना पड़ा है।

Last Updated- June 01, 2025 | 10:02 PM IST
Online Bonds Investment:

अमेरिका के कमजोर आर्थिक बुनियादी तत्वों की वजह से बॉन्ड यील्ड में आई हाल की तेजी चिंता बढ़ा रही है। इसका वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज (केआईई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊंचे यील्ड से पता चलता है कि बॉन्ड बाजार अमेरिका के बढ़ते घाटे को मानकर चल रहा है। साथ ही इस बाजार में बढ़ती वृहद आर्थिक और नीतिगत अनिश्चितता का असर भी दिख रहा है। इस कारण निवेशकों को बढ़ते जोखिम की भरपाई के लिए अधिक रिटर्न की ओर रुख करने को मजबूर होना पड़ा है। संभावना यही है कि अमेरिकी राजकोषीय और ऋण से संबंधित नजरिए पर दबाव आ सकता है क्योंकि नए बॉन्ड ऊंची दरों पर जारी किए जा रहे हैं।

10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड मई में 24 आधार अंक चढ़कर 4.4 फीसदी पर पहुंच गई। इस बीच, भारत सरकार के 10 वर्षीय बॉन्ड पर यील्ड पिछले महीने 15 आधार अंक घटकर 6.2 प्रतिशत रह गई थी। केआईई के अनुसार बढ़ते अमेरिकी यील्ड का असर भारत सहित कुछ अर्थव्यवस्थाओं तक सीमित रह सकता है। भारत के केंद्रीय बैंक के घरेलू वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत का बॉन्ड यील्ड इस समय अमेरिकी यील्ड के मुकाबले अच्छे प्रीमियम पर बना हुआ है अैर उसे वृहद आर्थिक हालात (कम चालू खाता घाटा, सहज भुगतान संतुलन, नरम मुद्रास्फीति और रुपये की उचित वैल्यू) से मदद मिली है। ये कारक आरबीआई को बाहरी दबाव के मुकाबले वृद्धि को प्राथमिकता देने के लिए मददगार होंगे। लेकिन ब्रोकरों ने चेतावनी दी है कि कमजोर होते अमेरिकी डॉलर इंडेक्स (डीएक्सवाई) के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।

केआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित कमजोरियों के कारण डॉलर की ‘सेफ हेवेन’ यानी ‘सुरक्षित विकल्प’ की प्रतिष्ठा पर असर पड़ा है। ऐतिहासिक रूप से, एशिया और यूरोप की अतिरिक्त बचत ने अमेरिकी उपभोग के लिए धन मुहैया कराया है जिससे पूंजी अमेरिकी परिसंपत्तियों में पहुंचती गई है।

केआईई के रणनीतिकारों संजीव प्रसाद, अनिंद्य भौमिक और सुनीता बलदावा का मानना है कि डॉलर इंडेक्स में गिरावट इस गतिशीलता में बाधा डाल सकती है, जिससे विदेशी निवेश को बनाए रखने के लिए अमेरिकी खपत में कमी, घरेलू उत्पादन में वृद्धि या ऊंचे यील्ड जैसे समायोजन करने पड़ सकते हैं।
जहां तक गैर-अमेरिकी निवेशकों की बात है तो कमजोर डॉलर इंडेक्स के कारण उनको अमेरिकी निवेश का फिर से आकलन करने को बाध्य होना पड़ सकता है, जिससे ज्यादा निवेश से जुड़े लोगों को नुकसान का जोखिम हो सकता है।

रिपोर्ट में तीन संभावित परिणामों की संभावना जताई गई है: विदेशी पूंजी को बरकरार रखने के लिए ऊंचा अमेरिकी यील्ड, घरेलू बाजारों में बढ़ा हुआ निवेश (इससे परिसंपत्तियां ज्यादा महंगी हो सकती हैं), या एशिया और यूरोप के ‘बचतकर्ता’ देशों में बचत और खर्च के पैटर्न में बदलाव आ सकता हौ।
रिपोर्ट में चेताया गया है कि भारत समेत उभरते बाजारों को इन बदलावों से अपने आप लाभ नहीं हो सकता है। वैश्विक पूंजी प्रवाह के समीकरण में बदलाव अस्थिरता का कारण बन सकता है, जिसके वैश्विक बाजारों के लिए अनिश्चित परिणाम होंगे।

First Published - June 1, 2025 | 10:02 PM IST

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