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Dollar vs INR: डॉलर के मुकाबले रुपया 88.68 पर, क्या अब आएगी रिकवरी या जारी रहेगी गिरावट?

Dollar vs Rupee: बीते एक साल में रुपया 5 प्रतिशत से अधिक कमजोर हुआ है। इसका कारण अमेरिका के नीतिगत निर्णय, टैरिफ तनाव और वैश्विक अनिश्चितताएं हैं।

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जतिन भूटानी   
Last Updated- October 03, 2025 | 10:23 AM IST

Rupee vs Dollar: घरेलू करेंसी या भारतीय रुपये में पिछले कुछ समय में डॉलर के मुकाबले अच्छी-खासी गिरावट आई है। एक साल में रुपया 5 प्रतिशत से अधिक कमजोर हुआ है। अमेरिकी के भारत पर 50 फीसदी टैरिफ से रुपया पर लगातार दबाव पड़ रहा है। इस बीच, भारतीय रुपया शुक्रवार को मजबूत रुख के साथ कारोबार कर रहा था। इसे आरबीआई के रीपो रेट को 5.5 फीसदी पर बरकरार रखने के फैसले से समर्थन मिला।

ब्लूमबर्ग के अनुसार, घरेलू मुद्रा 88.68 प्रति डॉलर के स्तर पर सपाट खुली और बाद में गिरकर 88.72 तक पहुंच गई। इस साल अब तक रुपया 3.59 प्रतिशत कमजोर हो चुका है, जबकि मंगलवार को यह 88.80 के ऑल टाइम लो तक पहुंच गया था।

फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजर एवं कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली के अनुसार, गुरुवार को रुपया लगभग 88.75 के स्तर पर कारोबार कर रहा था, जबकि बाजार आरबीआई की मुद्रा में कमजोरी पर प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा था।

भंसाली ने कहा कि बीते एक साल में रुपया 5 प्रतिशत से अधिक कमजोर हुआ है। इसका कारण अमेरिका के नीतिगत निर्णय, टैरिफ तनाव और वैश्विक अनिश्चितताएं हैं। इसके अलावा, पूंजी निकासी, सोने का हाई इंपोर्ट और जोखिम से बचाव की ट्रेंड ने भी निवेश सेंटीमेंट को प्रभावित किया है।

उन्होंने सलाह दी कि निर्यातक 88.75 से 88.80 के स्तर पर कैश एक्सपोर्ट बेच सकते हैं। जबकि आयातक 88.70 से नीचे खरीदारी कर सकते हैं ताकि सीमित हेजिंग की जा सके। विकल्प रणनीतियों (Options strategies) पर भी विचार किया जा सकता है ताकि अस्थिरता को बेहतर तरीके से संभाला जा सके। टेक्नीकल रूप से देखें तो, डॉलर के पक्ष में ही मजबूती बनी हुई है। पिछले एक महीने में रुपया 0.65 प्रतिशत कमजोर हुआ है।

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रुपये में आएगी रिकवरी ?

स्वास्तिका इन्वेस्टमार्ट में रिसर्च प्रमुख संतोष मीणा का कहना है कि इस समय सभी की निगाहें अमेरिका-भारत ट्रेड संबंधों पर टिकी हैं। इससे बाजार में संभावित राहत रैली की उम्मीद की जा रही है। रुपया अपने ऑल टाइम लो लेवल तक गिर चुका है। यदि यह 89 के नीचे टूटता है, तो बाजार के सेंटीमेंट पर और नेगेटिव असर पड़ सकता है।

उन्होंने कहा, ”वैश्विक स्तर पर अमेरिकी मैक्रो डेटा, डॉलर इंडेक्स की चाल और कच्चे तेल की कीमतें शॉर्ट टर्म में बाजार की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। इन सभी कारकों के बीच सबसे अहम भूमिका विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के प्रवाह की रहेगी, जो बाजार की समग्र दिशा का प्रमुख निर्धारक बने हुए हैं।”

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण पर जोर

बुधवार को MPC मीटिंग में RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि भारतीय रुपये (INR) का वैश्विक इस्तेमाल बढ़ाने के लिए कई अहम कदम उठाए जा रहे हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि भारत के व्यापारिक लेन-देन में विदेशी मुद्रा पर निर्भरता कम हो और रुपये का इस्तेमाल अधिक हो। इससे न केवल भारत का रुपया मजबूत होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारतीय कंपनियों को भी सुविधा मिलेगी, लेन-देन आसान होंगे और वैश्विक बाजार में भारत की वित्तीय स्थिरता और आर्थिक शक्ति को और मजबूती मिलेगी।

आरबीआई ने यह भी संकेत दिया कि ये प्रयास सिलसिलेवार और सस्टेनेबल होंगे, ताकि रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण धीरे-धीरे और मजबूती से हो सके और भारत की मुद्रा को वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद विकल्प बनाया जा सके।

First Published : October 3, 2025 | 10:14 AM IST