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BSE midcap, smallcap सूचकांक सर्वोच्च स्तर पर मगर तेल की कीमतों पर क्यों ध्यान नहीं दे रहा बाजार?

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक व शोध प्रमुख जी. चोकालिंगम का मानना है कि महंगाई का डर वापस लौटेगा और केंद्रीय बैंकों को अपनी नीतियां बदलनी पड़ सकती है

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पुनीत वाधवा   
Last Updated- September 07, 2023 | 9:40 PM IST

इस हफ्ते 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी तेल की कीमतों पर बाजार ध्यान नहीं दे रहा है, जिसमें पिछले एक महीने मं 5 फीसदी व पिछले पखवाड़े करीब 9 फीसदी की बढ़ोतरी सऊदी अरब व रूस की तरफ से आपूर्ति कटौती के बीच हुई है। पिछले एक महीने में एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स ज्यादातर स्थिर रहा है, लेकिन एसऐंडपी बीएसई मिडकैप और एसऐंडपी बीएसई स्मॉलकैप सूचकांकों में इस दौरान क्रमश: 7 फीसदी व 8 फीसदी का इजाफा हुआ है और गुरुवार को ये दोनों अपने-अपने सर्वोच्च स्तर 32,396.28 व 38,169.65 के स्तर को छू गए।

अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक व निदेशक यू आर भट्ट के मुताबिक, तेल की कीमतों पर भारतीय बाजारों के ध्यान न देने की मुख्य वजह यह है कि भारत रूस व अन्य इलाकों से अपेक्षाकृत सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है, जो महंगाई से जुड़ी चिंता दूर रख सकता है।

उन्होंने कहा, भारत महंगे कच्चे तेल को सस्ते आयात से पूरा कर रहा है। इससे कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के चलते महंगाई पर पड़ने वाले असर को दूर रखने में मदद मिली है। इसके अलावा विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बिकवाली शुरू की जबकि देसी संस्थानों व खुदरा निवेशक खरीद रहे हैं। बाजारों के यहां टिके रहने और आगे बढ़ने के लिए एफआईआई की मदद की दरकार है। किसी भी नकारात्मक खबरों से इंडेक्स मौजूदा स्तरों से 5 से 10 फीसदी टूट सकता है।

इस बीच, रूस से तेल आयात जुलाई में तीन गुना बबढ़ा और यह सालाना आधार पर 170.66 फीसदी ज्यादा रहा। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगई में संभावित इजाफे का जोखिम होता है, खास तौर से भारत में, जो अपनी सालाना जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है। सब्जियों की अगुआई में भारत की खाद्य महंगाई जुलाई में तीन साल के उच्चस्तर 11.5 फीसदी पर पहुंच गई, जिसने मुख्य महंगाई को 7.44 फीसदी पर धकेल दिया।

तेल की कीमतें

विश्लेषकों का कहना है कि आपूर्ति में अवरोध के बीच अगले कुछ महीने में ब्रेंट क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जाएगा। हालांकि चीन की अर्थव्यवस्ता की रफ्तार अनुमान से कमजोर रहने से तेजी सीमित रह सकती है।

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक व शोध प्रमुख जी. चोकालिंगम ने कहा, रूस व सऊदी अरब की तरफ से तेल आपूर्ति में हालिया कटौती से तेल की कीमतें तीन अंकों में पहुंच सकती है। उनका मानना है कि महंगाई का डर वापस लौटेगा और केंद्रीय बैंकों को अपनी नीतियां बदलनी पड़ सकती है।

उन्होंने कहा, जब तक तेल की कीमतें नहीं घटती व फसलों की कीमतें औसत नहीं रहती, अगले 18 महीने में अहम अर्थव्यवस्थाओं में सख्त मौद्रिक नीतियों का क्रियान्वयन वैश्विक अर्थव्यवस्था में अंतत: अवस्फीति की स्थिति ला सकता है। इससे वैश्विक इक्विटी टूट सकता है। भारत में एफआईआई द्वितियक बाजार में बेच रहे हैं और वे हड़बड़ी में वापस नहीं आएंगे। हम अल्पावधि के लिहाज से स्मॉल व मिडकैप सेगमेंट को लेकर काफी घबराए हुए हैं।

प्रभुदास लीलाधर के विश्लेषकों के मुताबिक, अगले कुछ महीने भारतीय अर्थव्यवस्था व बाजारों के लिए परख का वक्त होगा क्योंकि कई राज्यों में चुनाव होने हैं और फिर साल 2024 में आम चुनाव होंगे।

First Published : September 7, 2023 | 9:40 PM IST