एक ओर जहां मुख्य सूचकांक नए शिखर से करीब 5 फीसदी दूर हैं, वहीं अलग-अलग शेयरों की कीमतें उतनी अच्छी तस्वीर पेश नहीं कर रही हैं। बीएसई 500 के 300 से ज्यादा शेयर अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर से 20 फीसदी या उससे भी ज्यादा नीचे चल रहे हैं। इस आंकड़े से जाहिर होता है कि आय में नरमी और अमेरिका के साथ बढ़ते कारोबारी तनाव के बीच महामारी के बाद भारतीय शेयरों में आई तेजी पिछले 12 महीनों में थम गई है।
बेंचमार्क सेंसेक्स और व्यापक बीएसई 500 एक साल पहले पहुंचे अपने-अपने सर्वकालिक उच्चस्तर से क्रमश: 4.35 फीसदी और 5.15 फीसदी पीछे हैं। कोविड-19 महामारी के बाद सार्वजनिक खर्च और उपभोग में तेजी के कारण कई सेक्टरों की आय में वृद्धि हुई और उनके शेयरों में तेजी आई।
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सह-संस्थापक प्रमोद गुब्बी ने कहा, कोविड के बाद अर्थव्यवस्था में कुछ तेज़ी आई। सरकार ने खासा सार्वजनिक पूंजीगत खर्च किया, जिससे बुनियादी ढांचे में वृद्धि हुई और परिणामस्वरूप पूंजीगत वस्तुओं और औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा मिला। फिर उपभोक्ता जरूरत से ज्यादा खर्च करने लगे। लोगों की बचत इकट्ठी हो गई थी। इसलिए, उन्होंने वस्तुओं, सेवाओं और छुट्टियों पर खर्च किया।
इसके अलावा, आईटी क्षेत्र में तेज़ी के कारण नियुक्तियां और वेतन संबंधी मुद्रास्फीति बढ़ी जिससे खर्च में और इजाफा हुआ। बैंकिंग प्रणाली और एनबीएफसी के पास भी व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड खर्च को सहारा देने के लिए भरपूर धन उपलब्ध था।
लेकिन पिछले 12 महीनों में आय में नरमी रही है। इस कारण ऊंची कीमतों को जायाज ठहराना मुश्किल हो गया। साथ ही अमेरिका के साथ कारोबारी तनाव ने भी बाजारों को लगातार उथल-पुथल की स्थिति में रखा। अमेरिका ने आखिरकार भारत पर 50 फीसदी शुल्क लगा दिए।
गुब्बी ने कहा, अंततः बाजार आगे देखता है। वह इस उम्मीद पर चलता है कि आय में वृद्धि साकार होगी। आय वृद्धि मुख्य रूप से आर्थिक परिवेश पर निर्भर करती है। सरकार अर्थव्यवस्था को अनंतकाल तक बढ़ावा नहीं दे सकती। उसे राजकोष को मजबूत करना पड़ा और भारी खर्च के एक दौर के बाद उपभोक्ताओं ने भी अपना बटुआ बंद कर लिया। हमने रोजगार सृजन में सुस्ती भी देखी है और स्वचालन और एआई से जुड़ी चुनौतियां भी।
आय में नरमी के रुझानों के कारण निवेशकों ने उन शेयरों में खरीदारी की, भले ही जिनके लाभ में वृद्धि नरम थी। इस समय लोग वृद्धि के लिए जरूरत से ज्यादा कीमत दे रहे हैं। कई मझोली और छोटी कंपनियां बढ़ती प्रतिस्पर्धा, मार्जिन के दबाव और अपने कारोबारी मॉडल में व्यवधानों से जूझ रही हैं। उनका राजस्व और मुनाफा या तो स्थिर है या घट रहा है। बाजार अभी भी वृद्धि को देख रहा है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के खुदरा रिसर्च के पूर्व प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, इसलिए अगर आप 10-15 फीसदी की दर से भी बढ़ रहे हैं तो भी निवेशक ऊंचे पीई गुणक के लिए इच्छुक होंगे। आने वाले समय में इक्विटी में तेजी फिर से व्यापक होगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हाल में वस्तु एवं सेवा कर में की गई कटौती उपभोग को कितने प्रभावी ढंग से प्रोत्साहित कर पाती है।
गुब्बी ने कहा, अगले 30 दिन यह बेहतर ढंग से बताएंगे कि खपत में कितनी वृद्धि हुई है। यह देखना होगा कि इसका निजी क्षेत्र कीनई क्षमता वृद्धि की घोषणाओं पर भी असर पड़ेगा या नहीं। शायद इससे हम अभी एक या दो तिमाही दूर हैं। सितंबर तिमाही के नतीजों में आने वाली टिप्पणियों और आगे के अनुमानों के बयानों से हमें इसका अंदाजा हो जाएगा।