दुनियाभर के बाजारों में जिस तरह का संकट मचा हुआ है, उससे शेयर बाजार भी अछूते नहीं हैं और उनमें दहशत कायम है। शेयरों और म्युचुअल फंडों में निवेश करने वाले छोटे निवेशकों को पिछले 10 महीने से इस संकट की आंच झेलनी पड़ रही है। अब तो उनका मूड निराशा से असहाय की ओर हो गया है और वे अपने पैसे को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। ऐसे समय में जब दहशत छाती है, जब तक निवेशकों कोई फैसला तर्कसंगत नहीं होता, तब तक उन्हें शांत रहना चाहिए। ऐसे में हम बता रहे हैं आपको कुछ आम संकेत, जिनसे पता चलता है कि निवेशक दहशत में हैं या नहीं।
नियमित निवेश योजना रोकनाः अगर किसी निवेशक ने म्युचुअल फंड की सिप ले रखी है और वह उसमें हर महीने या तीन महीने में निवेश करता है तो उसे बाजार में बढ़त का फायदा होता है। लेकिन जब बाजार में गिरावट आती है तो निवेश का उत्साह भी काफी घट जाता है। कई तो अपनी सिप रोक देते हैं।
उदाहरण के लिए, एक निवेशक ने 19 महीने के लिए 2000 रुपये महीने का सिप ले रखा था। उसका यह निवेश अब 30,000 रुपये रह गया। ऐसे में उसे लगता है कि नियमित निवेश जारी रखने का कोई फायदा नहीं है और वह शेष 5 किस्तें देना बंद कर देता है। इससे उसे नुकसान यह होता है कि अब बाजार गिरने पर वह सस्ते यूनिट नहीं खरीद पा रहा है जबकि ऊंचे बाजार में उसके महंगे यूनिट खरीदे हुए होते हैं। इस तरह सिप के जरिये निवेश का उसका समूचा फायदा खत्म हो जाता है।
म्युचुअल फंड का निवेश बेचनाः जब कोई फंड योजना अच्छा प्रदर्शन न करे तो उसे बेचने का फैसला करना आसान है, पर गिरते बाजार में कई निवेशक ऐसा नहीं कर पाते। वे दहशत के कारण पैसा निकालते हैं। जाहिर है उन्हें अच्छे फंड का फायदा नहीं होता। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि निवेशक मिड–कैप योजनाओं से भाग रहे हैं, क्योंकि गिरते बाजार का इन्हीं पर ज्यादा असर हो रहा है। जाहिर है मिड–कैप हमेशा जोखिम भरे होते हैं और इसीलिए अगर उनमें घाटा ज्यादा होता है तो फायदा भी अधिक होता है।
बाजार गिरने पर बेचनाः यह बहुत आम स्थिति है। निवेशक की एक ही उम्मीद होती है कि कैसे भी अपना घाटा कम करे। वित्तीय सेवाओं की कंपनियों के शेयरों में यह रुझान देखा गया है। रियल एस्टेट की कंपनियों में भी ऐसा ही हुआ है। पर यह जानना एकदम असंभव है कि बाजार कहां तक और कितना गिरेगा। जब आप अच्छी कंपनियों के शेयर खरीदते हैं तो आपको उन्हें 3 से 5 साल तक रखना चाहिए। निश्चित रूप से अचानक जरूरत पड़ने पर बेचना दूसरी बात है, लेकिन अगर शेयर के फंडामेंटल अच्छे हैं और फिर भी दहशत में कोई निवेशक उसे बेचता है
तो उसे खराब निवेशक ही
मानना चाहिए।
कोई भी कीमत मंजूरः यह खास किस्म का उदाहरण है। किसी भी कीमत पर बेचना आम बात है और इससे तुरंत नुकसान होता है। अगर यह शेयर अच्छा है तो निश्चित रूप से कई निवेशक कम कीमत पर खरीदना पसंद करेंगे। एक दिन में 12 से 15 प्रतिशत का उतार–चढ़ाव आने पर अक्सर निवेशक उसे कम कीमत पर
बेच देता है। ऐसे में उसे नुकसान होता है।
अचानक फायदे के लिए खरीद–बेचः अक्सर निवेशक तुरंत लाभ या हानि के लिए शेयर खरीदने का फैसला करते हैं। ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसे बाजार में कोई नया उत्पाद आता है, तो उसकी बिक्री बढ़ जाती है। या फिर यह भविष्य में विस्तार योजना से संबद्घ हो सकता है। किसी शेयर को खरीदने के लिए यह एक ठोस कारण हो सकता है, लेकिन जब इस तरह की योजना नहीं आती है या उसमें देर होती है, तो उसे बेच दिया जाता है। ऐसा खास तौर पर गिरते बाजार में होता है, लेकिन इससे अंततः नुकसान ही होता है।
शेयर बाजार में आप म्युचुअल फंड के जरिये निवेश करें या सीधे खरीदें, इसके लिए काफी अनुशासन की जरूरत होती है। जो लोग शेयर बाजार की तेजी–मंदी में बहते हैं, निश्चित रूप से उन्हें बाजार में अचानक तेजी आने पर फायदा नहीं होता।