भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) आईपीओ लाने वाली कंपनियों द्वारा दाखिल दस्तावेज की जांच का दायरा बढ़ा रहा है। इस मामले से अवगत चार अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। भारतीय बाजार में आईपीओ गतिविधियों में तेजी के बीच बाजार नियामक ने यह कदम उठाया है।
तेजी से बढ़ रहे शेयर बाजार ने वर्ष 2023 में करीब 50 कंपनियों को अपने आईपीओ लाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिनमें से आठ निर्गम इस साल अब तक पूरे हुए हैं और अन्य 40 को बाजार नियामक सेबी से मंजूरी का इंतजार है।
चार में से एक अधिकारी ने कहा, ‘नियामक ने करीब 6 आईपीओ दस्तावेज लौटा दिए हैं, क्योंकि सेबी ने पाया कि कंपनियां धन जुटाने की वजहों को सही तरीके से नहीं बता रही हैं।’
मामले से अवगत अधिकारियों का कहना है कि नियामक उन कंपनियों पर ज्यादा सख्ती बरत रहा है जो आईपीओ से जुटाई जाने वाली राशि के इस्तेमाल के बारे में सही जानकारी नहीं दे रही हैं।
सेबी ने इस संबंध में भेजे गए ईमेल संदेश का जवाब नहीं दिया है। सेबी के नियमों के अनुसार आईपीओ से जुटाई जाने वाली रकम का इस्तेमाल पूंजीगत खर्च, कर्ज घटाने, सामान्य कॉरपोरेट उद्देश्य और अधिग्रहण के लिए किया जा सकता है।
यदि इस राशि का इस्तेमाल कर्ज घटाने में किया जाता है तो प्रवर्तकों को अपने शेयर 18 महीने तक लॉक करने होंगे। हालांकि अगर धन पूंजीगत खर्च के लिए जुटाया जा रहा है तो प्रवर्तकों को तीन वर्ष की लॉक-इन अवधि पर अमल करना होगा। ‘प्रवर्तक’ भारत में एक नियामकीय श्रेणी है जिसमें बड़े शेयरधारक शामिल हैं जो कंपनी की नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
अधिकारी ने कहा, ‘कंपनी यदि यह कह रही है कि वह आईपीओ से मिलने वाली राशि का उपयोग कर्ज चुकाने के लिए करेगी तो वह कानून से बचने की कोशिश कर रही है और शेयर की तीन साल की लॉक-इन अवधि घटाकर 18 महीने करना चाहती है।’
एक निवेश बैंकर ने नाम नहीं छापने के अनुरोध के साथ कहा कि सेबी ने इस बात का ब्योरा मांगा है कि क्या पूंजीगत व्यय बताकर पेश किए गए आईपीओ से प्राप्त राशि का उपयोग ऋण चुकाने के लिए तो नहीं किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘ये कंपनियां जो खुलासे कर रही हैं, वे अस्पष्ट हैं।’ इस महीने के शुरू में सेबी ने कहा था कि वह ऐसे तीन आईपीओ की जांच कर रहा है जिनमें प्राप्त बोलियों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की आशंका जताई गई थी।