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आरकॉम: पूंजी का संकट

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 10:47 AM IST

आरकॉम को लेकर बाजार की चिंताएं खत्म होती नहीं दिखतीं। अधिक बकाया, ब्याज लागत के चलते संभावित हिस्सेदारी कम करने से यह साफ है कि कंपनी का अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले प्रदर्शन कमजोर रहा है।


इस साल की शुरुआत से अब तक कंपनी का शेयर 71 फीसदी तक गिर चुका है जबकि इसी दौरान भारती का शेयर सिर्फ 25 फीसदी ही नीचे गया।

एक प्रमुख ब्रोकर फर्म ने सितंबर के अंत तक कंपनी का शुध्द डेट इबिटा (ब्याज, डेप्रिसिएशन और कर) 2.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था जो कि मार्च 2009 के अंत तक 3.2 फीसदी रह सकता है।

अगर कंपनी 3जी लाइसेंस के लिए बोली लगाती है मार्च 2010 तक उसका डेट  इबिटा 4 फीसदी तक पहुंच सकता है। मार्च 2009 तक कंपनी का शुध्द बकाया बढ़कर 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है जबकि इबिटा ही अकेले 9,500 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।

आरकॉम को अपने वर्तमान सीडीएमए और नए जीएसएम नेटवर्क के विस्तार में कुल 19,068 करोड़ रुपये व्यय करने होंगे। साथ ही उसे 3जी लाइसेंस की बोली के लिए भी संसाधन जुटाने होंगे। यह बोली अगले साल की शुरुआत में लगने वाली है। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह प्रतिस्पर्धा से ही बाहर हो जाएगा।

आरकॉम के पास पहले ही पूंजी की कमी है और वह जारी वर्ष में अपना एलोकेशन घटा सकता है। क्रेडिट सुइस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि वर्ष 2008-09 में कंपनी का व्यय 24,000 करोड़ रुपये के अनुमान की तुलना में 18,000 करोड़ रुपये ही रहने की उम्मीद है।

हालांकि कंपनी के पास 1.5 अरब डॉलर का दीर्घ अवधि का फंड है, लेकिन अभी यह साफ नहीं कि इस फंड का उपयोग किया गया है या नहीं। अब ऐसी स्थिति में जब पिछले छह माह में विदेशी या फिर स्थानीय मुद्रा में लिए जाने वाले कर्ज महंगे होते जा रहे हैं, कंपनी शेयर जारी करने का विकल्प चुन सकती है।

विश्लेषकों का कहना है कि तुलनात्मक दृष्टि से ऊंचे डेट-इक्विटी रेशियो के चलते कंपनी अपने जीएसएम नेटवर्क के लिए बेहद प्रतिस्पर्धी कीमतें नहीं रखने वाली, क्योंकि इसका असर उसके परिचालन मुनाफे पर पड़ सकता है। सितंबर 2008 की तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन उम्मीद से कमतर रहा।

उसका प्रति व्यक्ति औसत राजस्व 4 फीसदी गिरा, वहीं प्रति मिनट मिलने वाला राजस्व 3 फीसदी गिरा। इसके साथ ही उसकी अधिक नेटवर्क लागत के चलते उसका परिचालन मुनाफा पिछली तिमाही की तुलना में सिर्फ 2.3 फीसदी बढ़कर 2,300 करोड़ रुपये हो गया।

एशियन पेंट्स: फीके रंग

डेकोरेटिव क्षेत्र की अग्रणी कंपनी एशियन पेंट्स के मुनाफे में 2008-09 में पिछले साल के मुकाबले धीमी वृध्दि की उम्मीद है। कंपनी ने 2007-08 में 46 फीसदी वृध्दि अर्जित की थी। यानी इस साल कंपनी ने शुरुआत हाई बेस से की थी।

निर्माण और ऑटोमोबाइल एशियन पेंट्स के दो प्रमुख उपभोक्ता हैं जो इस समय तंगहाली से गुजर रहे हैं। इसका असर इस 4,404 करोड़ रुपये की कंपनी में साफ पड़ता देखा जा रहा है।

इतना ही नहीं अर्थव्यवस्था में आ रही मंदी से पेंट्स के ग्राहकों पर बुरा असर पड़ा है जिससे पुराने घरों रंग रोगन का काम भी प्रभावित हो रहा है।

साथ ही कच्चे माल की बढ़ी लागत से कंपनी का मुनाफा जारी वर्ष की पहली छमाही में सितंबर 2008 तक बुरी तरह प्रभावित हुआ है जो सिर्फ 21 फीसदी की दर से ही बढ़ा। हालांकि कंपनी ने यह वृध्दि राजस्व में 30 फीसदी की मजबूत वृध्दि और वॉल्यूम के 21 फीसदी बढ़ने के कारण उठाया।

अपने मजबूत ब्रांड के चलते कंपनी इनपुट लागत को कीमतों में वृध्दि कर बराबर करने में सफल रही। दूसरी छमाही में कंपनी का कच्चे माल में होने वाला व्यय कम हुआ है, लेकिन साथ ही इसके कई प्रॉडक्ट जो कच्चे तेल के डेरिवेटिव हैं, कि कीमतें गिरीं है। इससे उसके राजस्व की वृध्दि प्रभावित हो सकती है।

इसी तरह उसका परिचालन मुनाफे का मार्जिन जो पहली छमाही में 1.2 फीसदी गिरकर 14 फीसदी हो गया है, दूसरी छमाही में भी दबाव में रहेगा।

कंपनी के प्रबंधन ने कहा है कि हर जगह विनिर्माण गतिविधियां धीमी पड़ती जा रहीं हैं। अब पहले की तुलना में कम कारें बेचीं जा रहीं हैं, पिछले कुछ माहीनों में कई ऑटो कंपनियो का बिक्री वॉल्यूम घटा है।

इसलिए इस क्षेत्र में पेंट्स की बिक्री भी कम होगी। कंपनी के अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्थिति भी ज्यादा अच्छी नहीं है। जहां साल की पहली छमाही में उसने 25 फीसदी की शानदान वृध्दि अर्जित की थी।

इसमें मध्य-पूर्व के ब्रिस्क कारोबार ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी। अब इस बाजार में विनिर्माण गतिविधियों के धीमी पड़ जाने के कारण यहां से मिलने वाले राजस्व में कमी आ सकती है।

First Published : December 23, 2008 | 9:15 PM IST