एनएसई (NSE) पर सूचीबद्ध कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण में घरेलू म्युचुअल फंडों (MF) की भागीदारी सितंबर 2024 तिमाही में नई ऊंचाई पर पहुंच गई, क्योंकि उन फंडों ने इक्विटी बाजारों में लगातार निवेश किया।
प्राइम डेटाबेस ग्रुप के आंकड़े के अनुसार एनएसई पर कारोबार करने वाली कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण में म्युचुअल फंडों की बाजार भागीदारी 30 सितंबर तक 9.5 प्रतिशत थी, जो जून तिमाही में 9.2 प्रतिशत थी। जुलाई और सितंबर के बीच, घरेलू फंडों से शुद्ध प्रवाह करीब 90,000 करोड़ रुपये था।
इस बीच, भारत की सबसे बड़ी संस्थागत निवेशक भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की भागीदारी सितंबर तिमाही में घटकर 3.59 प्रतिशत के सर्वाधिक निचले स्तर पर रह गई जो जून के अंत में 3.64 प्रतिशत थी। यह गिरावट खासकर बीमा दिग्गज द्वारा 78 कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाए जाने, जबकि 103 में घटाए जाने के बीच हुई मुनाफावसूली के कारण आई।
यह आंकड़ा सिर्फ उन कंपनियों से जुड़ा है जिनमें एलआईसी की कम से कम 1 प्रतिशत हिस्सेदारी रही है। कुल बाजार पूंजीकरण में घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की भागीदारी भी तिमाही के दौरान 1.03 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश के साथ 16.25 प्रतिशत से बढ़कर 16.46 प्रतिशत की सर्वाधिक ऊंचाई पर पहुंच गई।
सितंबर के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की भागीदारी भी पिछली तिमाही के 17.39 प्रतिशत से बढ़कर 17.5 प्रतिशत पर पहुंच गई। हालांकि, अक्टूबर में घरेलू शेयरों से रिकॉर्ड 97,408 करोड़ रुपये की निकासी के बाद एफपीआई की हिस्सेदारी में गिरावट देखी जा रही है। अक्टूबर में डीआईआई द्वारा 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से एफपीआई की बिकवाली की भरपाई हो गई।
प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, ‘एफपीआई और डीआईआई की भागीदारी के बीच अंतर और कम हुआ है तथा यह 30 सितंबर तक 1.09 प्रतिशत के सर्वाधिक निचले स्तर पर आ गया, क्योंकि डीआईआई का योगदान एफपीआई के मुकाबले तेजी से बढ़ा। रुपये की वैल्यू के संदर्भ में भी, डीआईआई होल्डिंग अब एफपीआई के मुकाबले महज 6.19 प्रतिशत कम है।’
हल्दिया ने कहा कि अक्टूबर में एफपीआई की बड़ी बिकवाली के साथ, डीआईआई की भागीदारी संभवतः अब तक एफपीआई के मुकाबले आगे निकल जाएगी।
हल्दिया ने कहा, ‘हाल के वर्षों से, एफपीआई भारतीय बाजार में सबसे बड़ी गैर-प्रवर्तक शेयरधारक श्रेणी रहे हैं, उनके निवेश निर्णयों का बाजार की समग्र दिशा पर व्यापक असर पड़ता है। अब ऐसा नहीं है। डीआईआई और रिटेल तथा अमीर निवेशक (HNI) अब एक मजबूत भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि एफपीआई अभी भी एक महत्वपूर्ण घटक बने हुए हैं, लेकिन भारतीय पूंजी बाजार पर उनकी पकड़ कम हो गई है। अक्टूबर में भी यह बात स्पष्ट हुई जब एफपीआई की भारी बिकवाली के बावजूद प्रमुख सूचकांकों में महज 6 प्रतिशत की गिरावट आई।’
सितंबर तिमाही के दौरान सरकार (प्रमोटर के रूप में) की हिस्सेदारी 10.64 प्रतिशत से घटकर 9.71 प्रतिशत रह गई। दूसरी ओर, चल रही हिस्सेदारी बिक्री के बावजूद निजी प्रमोटरों की हिस्सेदारी जून तिमाही के 40.87 प्रतिशत से बढ़कर 41.34 प्रतिशत हो गई।