प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
इक्विटी म्युचुअल फंडों (एमएफ) में शुद्ध निवेश सितंबर में लगातार दूसरे महीने घटा और यह 9 फीसदी की गिरावट के साथ 30,422 करोड़ रुपये रह गया। यह गिरावट ऐसे समय आई है जब ऐक्टिव इक्विटी योजनाओं से निकासी मासिक आधार पर 30 फीसदी बढ़कर एक साल के उच्चतम स्तर करीब 36,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
निकासी में तेज बढ़ोतरी की आंशिक भरपाई व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) और एकमुश्त निवेश के माध्यम से आ रहे निरंतर निवेश से हो गई। एसआईपी का योगदान मासिक आधार पर 4 फीसदी बढ़कर 29,361 करोड़ रुपये के नए सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया।
एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वेंकट एन चलसानी ने कहा, एसआईपी ने 29,361 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड मासिक योगदान और 9.25 करोड़ सक्रिय खातों के साथ एक नया मुकाम हासिल किया है। इससे खुदरा निवेशकों की अनुशासित और व्यवस्थित निवेश के प्रति बढ़ती प्राथमिकता की पुष्टि होती है।
सोने और चांदी की कीमतों में तेजी के बीच जहां इक्विटी निवेश में नरमी आई, वहीं जिंस ईटीएफ में तेजी देखी गई। सितंबर में गोल्ड ईटीएफ में 8,151 करोड़ रुपये का निवेश हुआ जो अगस्त के 2,190 करोड़ रुपये से काफी ज्यादा है। सिल्वर ईटीएफ में निवेश मासिक आधार पर तीन गुना बढ़कर 5,342 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। पिछले महीने गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ में कुल मिलाकर शुद्ध निवेश रिकॉर्ड ऊंचाई पर था।
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया में वरिष्ठ विश्लेषक नेहल मेश्राम ने कहा, सितंबर में गोल्ड ईटीएफ की सुरक्षित निवेश मांग के रूप में फिर से उछाल आई। इसकी वजह वैश्विक जोखिम से बचाव और प्रमुख केंद्रीय बैंकों की नीतिगत समीक्षाओं से पहले रणनीतिक पोजीशन दोनों रही है। बढ़ते भूराजनीतिक तनाव, अस्थिर बाजारों और मजबूत अमेरिकी डॉलर के बीच निवेशकों ने सोने का रुख किया।
विश्लेषकों का मानना है कि कमोडिटी ईटीएफ में निवेश वृद्धि और इक्विटी फंडों से निकासी में बढ़ोतरी का कारण यह है कि निवेशक पोर्टफोलियो में बदलाव कर रहे हैं। वे इक्विटी श्रेणियों में बदलती प्राथमिकताओं की ओर इशारा भी करते हैं।
आईटीआई फंड के सीईओ जतिंदर पाल सिंह ने कहा, हालांकि कुल निवेश आवक में नरमी आई है, लेकिन इससे निवेशकों के पीछे हटने का रुझान नहीं बल्कि उनके पोर्टफोलियो में बदलाव का पता चलता है। वैल्यू/कॉन्ट्रा फंड (85 फीसदी तक), फोकस्ड फंड (22 फीसदी तक), मल्टीकैप फंड (11 फीसदी तक) और लार्ज एवं मिडकैप फंड (14 फीसदी तक) जैसी चुनिंदा श्रेणियों में मजबूत दिलचस्पी बनी रही, जो इस बात का संकेत है कि निवेशक जुड़े हुए हैं, लेकिन बाजार की मजबूती के बीच वे ज्यादा चयनात्मक हो रहे हैं।
महीने के दौरान लोकप्रिय स्मॉलकैप और मिडकैप योजनाओं में निवेश नरम पड़ा। लेकिन कुल इक्विटी निवेश में इनका योगदान सबसे ज्यादा रहा। फ्लेक्सीकैप फंडों में लगातार तीसरे महीने 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश आया। मिरे ऐसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) की वितरण प्रमुख सुरंजना बड़ठाकुर ने कहा, फ्लेक्सीकैप में मजबूती से निवेश आ रहा है। लार्जकैप लगभग 2,300 करोड़ रुपये पर स्थिर बने हुए हैं। मिड-कैप और स्मॉल-कैप श्रेणी में मामूली बदलाव हुए हैं। मिड-कैप करीब 5,000 करोड़ रुपये और स्मॉल-कैप करीब 4,300 करोड़ रुपये पर हैं। एक क्षेत्र जो तेजी दिखा रहा है, वह है वैल्यू-कॉन्ट्रा खंड। हाल के महीनों में यह औसतन 1,000 करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 2,100 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। कुल मिलाकर चिंता का कोई कारण नहीं है।
सितंबर में डेट योजनाओं में भारी गिरावट देखी गई और शुद्ध निकासी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई। उद्योग की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां अगस्त के 75.2 लाख करोड़ रुपये से मामूली रूप से बढ़कर सितंबर में 75.6 लाख करोड़ रुपये हो गईं।