इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में मुद्रा प्रवाह (सीआईसी) घटा है और ऐसा पहली बार कम से कम बीते 10 वर्षों में पहली छमाही में हुआ है। 31 मार्च, 2023 को सीआईसी 33.78 लाख करोड़ रुपये था और यह 22 सितंबर को गिरकर 33.01 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इस अवधि के दौरान 76,658 करोड़ रुपये का अंतर रहा। बीते दो वित्त वर्षों की पहली छमाही में सीआईसी बढ़ा था।
यह वित्त वर्ष 23 की पहली छमाही में 33,357 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 22 की पहली छमाही में 84,978 करोड़ रुपये बढ़ा था। कोविड के वर्ष वित्त वर्ष 21 में अप्रैल-सितंबर के दौरान बढ़कर 2.43 लाख करोड़ रुपये था।
इस वित्त वर्ष में 2000 रुपये के नोट वापस लिए जाने के कारण मुद्रा प्रवाह में प्रमुख तौर पर गिरावट आई। दरअसल, 2000 रुपये का नोट वापस लेने की घोषणा 10 मई को हुई थी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नवीनतम आंकड़े के अनुसार 3.46 लाख रुपये मूल्य के 2000 रुपये के नोट वापस आ गए हैं।
19 मई तक 2000 रुपये के 3.56 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा प्रचलन में थी और इसमें से करीब 96 फीसदी मुद्रा वापस आ गई है। इसका अर्थ यह है कि आरबीआई ने अप्रैल से सितंबर के दौरान 2.69 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा डाली थी।
इस दौरान सीआईसी गिरने का कारण यह था कि जितनी मुद्रा निकली थी, उससे कम डाली गई है। बैंकों में 2000 रुपये के जमा हुए नोटों में केवल 13 फीसदी के बदले धन लिया गया था और शेष राशि बैंक खाते में जमा हुई। बैंक खाते में जमा हुई राशि आरबीआई के खाते में गई।
केंद्रीय बैंक के क सूत्र ने बताया कि मुद्रा का प्रवाह कम होने में प्रमुख योगदान 2000 रुपये के नोट के वापस लिया जाना रहा। सूत्र के अनुसार, ‘बैंकों में 2000 रुपये का नोट जमा कराने के बाद लोगों ने कहीं कम राशि निकाली। इसका कारण यह है कि लोग अब पहले की तरह लेन-देने के लिए मुद्रा पर आश्रित नहीं हैं। डिजिटल लेन – देन बढ़ने के कारण यह सुनिश्चित हुआ कि इसका अर्थव्यवस्था पर कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं हुआ।’
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा, ‘आरबीआई से उपलब्ध जानकारी के आधार पर 2000 रुपये के 87 फीसदी नोट खाते में जमा किए गए व शेष के बदले राशि ली गई। जमा की इस हिस्सेदारी के कारण मुद्रा का प्रवाह पर्याप्त रूप से गिर गया।