भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट के बीच शेयर कीमतों में भारी तेजी पर चिंता जताई है। केंद्रीय बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में यह बात कही है। पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी में फिसलने के बाद अपने निचले स्तरों से शेयर बाजार
के संवेदी सूचकांक दोगुना स्तर पर पहुंच गए हैं। कई कंपनियों के शेयरों में तो जबरदस्त उछाल देखी गई है। आरबीआई के अनुसार शेयर बाजार में इतनी तेजी तब देखी जा रही है जब देश की आर्थिक वृद्धि दर कमजोर हो गई है।
आरबीआई ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी में आई अनुमानित 8 प्रतिशत गिरावट के बीच शेयरों का उछलना कहीं न कहीं जोखिम का संकेत दे रहा है।’ आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार देश के मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए शेयरों की कीमतें वास्तविक स्थिति से मेल नहीं खा रही हैं।
भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां शेयर बाजारों में तेजी दिख रही है। पिछले वर्ष मार्च से
आर्थिक प्रोत्साहनों के बीच दुनिया भर के शेयर बाजारों में तेजी दिख रही है। आरबीआई ने ‘इज द बबल इन स्टॉक मार्केट्स रेशनल?’ नाम से तैयार रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘दुनिया के विभिन्न बाजारों में जोखिम वाली परिसंपत्तियों में भारी तेजी आई है। मौद्रिक एवं वित्तीय प्रोत्साहनों की बदौलत बाजार जरूरत से अधिक उछल गए हैं जो कहीं न कहीं चिंता पैदा करता है। वास्तविक आर्थिक गतिविधयों में सुधार और शेयर कीमतों में तेजी का अंतर बढ़ता ही जा रहा है। यह दुनिया भर के नीति निर्धारकों के लिए चिंता क ा विषय है।’
केंद्रीय बैंक ने उन शोध कार्यों का हवाला दिया है जिनमें शेयर बाजार को प्रभावित करने वाले कार कों का जिक्र किया गया है। इन कारकों में आर्थिक वृद्धि, महंगाई और मौद्रिक आपूर्र्ति है।
आरबीआई ने कहा है,’शेयर मूल्य सूचकांक मुख्य रूप से मुद्रा आपूर्ति और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) पर निर्भर करता है। आर्थिक वृद्धि से जुड़ी संभावनाएं भी शेयर बाजार का मिजाज तय करती हैं, लेकिन मौद्रिक आपूर्ति एव एफपीआई की तुलना में यह कम असर डालता है।’
वर्ष 2020-21 से घरेलू शेयरों में एफपीआई ने 2.74 लाख करोड़ रुपये निवेश किए हैं। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार इससे पहले वित्त वर्ष 2013 में एफपीआई निवेश सर्वाधिक स्तर पर रहा था जब विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों में 1.4 लाख करोड़ निवेश किए थे।