भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने नए चेयरमैन तुहिन कांता पांडे की अध्यक्षता में सोमवार को पहली बोर्ड मीटिंग की। इस मीटिंग में कई अहम फैसले लिए गए। सेबी ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए अतिरिक्त खुलासे की सीमा को दोगुना कर दिया है। पहले यह सीमा 25,000 करोड़ रुपये थी, जिसे अब बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
यानी जिन एफपीआई का भारतीय प्रतिभूति बाजार में निवेश 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होगा, उन्हें ज्यादा जानकारी देनी होगी। हालांकि, जिन एफपीआई का 50% से ज्यादा इक्विटी निवेश किसी एक कॉर्पोरेट में है, उनके लिए अतिरिक्त खुलासे की अनिवार्यता जारी रहेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार के इस फैसले के बाद एफपीआई के निवेश को लेकर चिंता जताई जा रही थी। सरकार ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि 1 अप्रैल से एफपीआई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स 10% के बजाय 12.5% देना होगा। पिछले पांच महीनों में एफपीआई ने 3 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं।
गवर्नेंस में पारदर्शिता के लिए सख्त कदम
सेबी ने बोर्ड सदस्यों के हितों के टकराव (कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) के खुलासे के नियमों पर भी चर्चा की। CNBC की रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी ने इस मुद्दे को लेकर हाई-लेवल कमेटी (एचएलसी) बनाने का फैसला किया है। यह कमेटी बोर्ड सदस्यों की संपत्ति, निवेश और देनदारियों से जुड़ी जानकारी के खुलासे के नियमों को मजबूत करने पर काम करेगी।
यह कदम सेबी के पूर्व चेयरमैन माधबी पुरी बुच से जुड़े विवाद के बाद उठाया गया है। उन पर अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की ओर से आरोप लगाए गए थे, जिन्हें सेबी और बुच दोनों ने नकार दिया था। अभी के नियमों के तहत सेबी के सभी बोर्ड सदस्यों और उनके जीवनसाथियों को अपनी संपत्ति की जानकारी देनी होती है, लेकिन 2008 से लागू ये नियम बहुत कड़े नहीं हैं।
आरए और आईए के लिए फीस वसूलने का नया नियम
सेबी बोर्ड ने यह भी फैसला किया है कि अब रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्ट्स (RA) और इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स (IA) एक साल की फीस एडवांस में ले सकेंगे। पहले IA सिर्फ छह महीने की फीस और RA केवल तीन महीने की फीस एडवांस में ले सकते थे।
पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर्स की नियुक्ति प्रक्रिया बरकरार
सेबी ने पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर्स (PID) की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया को जारी रखने का फैसला किया है। अब भी MIIs (मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन्स) को PID की नियुक्ति के लिए सेबी की मंजूरी लेनी होगी, लेकिन शेयरहोल्डर्स की मंजूरी जरूरी नहीं होगी।
इसके अलावा, MIIs को अपने मुख्य प्रबंधकीय पदाधिकारियों (KMPs) और मैनेजिंग डायरेक्टर्स के लिए न्यूनतम कूलिंग-ऑफ पीरियड तय करना होगा, ताकि वे सीधे प्रतिस्पर्धी MII में शामिल न हो सकें। हालांकि, PID के लिए ऐसा कोई अनिवार्य कूलिंग-ऑफ पीरियड नहीं रखा गया है।
बता दें, ब्यूरोक्रेट से रेगुलेटर बने तुहिन कांता पांडे ने 1 मार्च को सेबी के चेयरमैन पद का कार्यभार संभाला है।