इस साल एक फरवरी से उन निवेशकों के लिए सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेस लिमिटेड (सीडीएसएल)वेंचर से ‘अपने ग्राहक को जानें’ (केवाईसी) संबंधी प्रमाणपत्र लेना जरूरी कर दिया गया है जो म्युचुअल फंड में 50,000 रुपये या उससे अधिक का निवेश करते हैं।
इस नियम को लागू करने की मुख्य वजह प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करना है। हालांकि इस नियम केलागू होने के छह महीने बाद भी निवेशक और असेट मैंनेजमेंट कंपनियां दोनों ही नए दिशा-निर्देशों का पालन कर पाने में परेशानी का महसूस कर रही हैं। इसका कारण है कागजात को सत्यापित यानी अटेस्ट करनेवाले अधिकार को लेकर भ्रम की स्थिति का होना।
उदाहरण के लिए जब डॉ. गुलशन शाहपुरकर ने अपने के वाईसी सर्टिफिकेट के लिए कागजात जमा किए तो इसे खारिज कर दिया गया। कारण यह बताया गया कि उनके कागजात को किसी सहकारी बैंक, बांबे मर्केंटाइल बैंक, के शाखा प्रबंधक ने प्रमाणित किया है। अंतत: एचडीएफसी बैंक के शाखा प्रबंधक ने गुलशन के कागजात पर हस्ताक्षर किए जिससे उनको कुछ राहत महसूस हुई।
दिलचस्प बात यह है कि निजी क्षेत्र के कुछ बैंक कागजात सत्यापित नहीं करते हैं बल्कि इसके बदले वे अपने रिकार्ड के अनुसार आवासीय पते और पीएएन यानी पैन वाले कागजात ऑफर क रते हैं जो कि सीडीएसएल केमानदंडों के अनुसार नहीं है।
शाहपुरकर के साथ हुई घटना असामान्य नहीं है। केवाईसी सर्टिफिकेट लेने के लिए निवेशकों को अपने पहचान पत्र संबंधी कागजात (पैन, पासपोर्ट, चालक प्रमाणपत्र आदि) और पते का विवरण देना पड़ता है। एक म्युचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर का कहना है कि किसी छोटे निवेशक के लिए सीडीएसएल से क्लीन चिट ले लेना आसान बात नहीं रह गई है। डिस्ट्रीब्यूटर केअनुसार सबसे बड़ी चुनौती अपने कागजात सत्यापित करवाना है।
नियम के अनुसार कोई राजपत्रित सरकारी अधिकारी, नोटेरी या बैंक प्रबंधक ही कागजात को सत्यापित कर सकते हैं। इस बाबत सर्टिफाइड वित्तीय योजनकार सुरेश सदगोपन का कहना है कि ज्यादातर खाताधारक अपने कागजात का सत्यापन अपने बैंक के शाखा प्रबंधक से करा लेते हैं लेकिन इस बात को लेकर उहापोह की स्थिति बरकरार रहती है किस बैंक के शाखा प्रबंधकों के हस्ताक्षर मान्य होंगे।
इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत सारे निवेशक या तो निवेश कर नहीं पाए या उन्होंने अपने निवेश को टाल दिया है। गौतम चूड़ीवाला नाम केएक निवेशक बहुत दुखी स्वर में बताते हैं कि उन्हें तीन बार आवेदन करने के बाद ही यह प्रमाण पत्र मिला है। उनको पहले से ही लग रहा है कि उन्हें सीडीएसएल से क्लीन चिट नहीं मिलनेवाली है। लिहाजा उन्होंने अपना निवेश टुकड़ों में लगाया और अलग अलग तारीख पर यूनिट खरीदे।
ग्लोबल टेलीसिस्टम्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एम आर भरत ने पाया कि बात केवल सत्यापन की नहीं है। बिना वैवाहिक प्रमाणपत्र के उनकी पत्नी उनके साथ सह-निवेशक नहीं बन सकती हैं। भरत ने कहा कि यद्यपि उनके पास विवाह संबंधी प्रमाणपत्र तो नहीं है लेकिन इसके अलावा उन्होंने अन्य सारे आवश्यक कागजात जैसे कि पासपोर्ट, जो कि उनको मेरी पत्नी साबित करते है, केवाईसी की स्वीकृति के वास्ते सौंप दिए हैं।
हैरत की बात तो यह है कि इसके बाद भी सीडीएसएल ने उनकी पत्नी को सह-निवेशक के तौर पर नहीं माना और अंतत: उनको भरत के मनोनीत प्रतिनिधि के रूप में ही मान्यता दी। बात यहीं खत्म हो जाती तो और बात होती। इन सब प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद भी कई असेट मैंनेजमेंट कंपनियां पैन कार्ड मांगती हैं।
एक यूटीआई अधिकारी ने दावा किया कि इसका कारण बाजार नियामक द्वारा परिचालन के लिए भी पैन कार्ड की कॉपी अनिवार्य कर देना है जिससे एएमसी पैन कार्ड की मांग करती है। हालांकि एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड इन इंडिया के अध्यक्ष ए पी कुरियन ने स्पष्ट किया कि एक बार अगर केवाईसी कागजात को संलग्न कर दिया जाता है तब किसी व्यक्ति को पैन कार्ड की प्रति देने की आवश्यकता नहीं होती है।
उनके अनुसार कुछ निश्चित नियमों में कड़ाई की गई है, लेकिन दिशा-निर्देश ऐसे नहीं हैं कि जो फंडों पर केवाईसी प्रमाणपत्र के लिए दबाव डालते हों। हालांकि उन्होंने कहा कि अगर यह नहीं किया जाता है तो यह नियमों केखिलाफ जाता है। जहां तक समाधान की बात है तो यह वितरकों की तरफ से सुझाया गया है।
अधिकांश वितरक कागजात का सत्यापन कराने के लिए सीधे अपने क्लाइंट से कहने के बजाए अपने वकीलों से करा लेते हैं। इसके अलावा वे यह बात सुनिश्चित कर लेते हैं कि सीडीएसएल की और रुख करने से पहले सारे कागजात दुरुस्त हों। हालांकि ऐसे निवेशक जो अपने आप इसे करना चाहते हैं, (2.25 एंट्री लोड की बचत करने के लिए) उनके लिए यह दूसरी मुसीबत होगी जिसे पार करना उनके लिए जरूरी होगा।