रुपये के कमजोर होने के बावजूद इन्फोसिस का कहना है कि साल 2009-10 में इसकी प्रति शेयर आय साल 2008-09 के 104.60 रुपये प्रति शेयर की आय की तुलना में 3 से 6.7 प्रतिशत कम रहेगी।
यह आंकड़ा चकित करने वाला है और बाजार को इसकी उम्मीद नहीं थी। बाजार को लगभग 102 रुपये प्रति शेयर के गाइडेंस की आशा थी। स्पष्ट है कि कीमत निर्धारण का भारी दबाव है। मार्च 2009 की तिमाही में कीमत- निर्धारण लगभग तीन फीसदी कम हुआ है और इन्फोसिस प्रबंधन का कहना है कि इस साल कीमतें 6 से 6.5 प्रतिशत तक घट सकती हैं।
इसके अलावा, इसके वर्तमान ग्राहकों में से लगभग 69 प्रतिशत ने अपने सूचना प्रौद्योगिकी के बजट में 10 प्रतिशत की कटौती की है। इससे कारोबार भी कमजोर हो सकता है। ऐसी कठिन परिस्थिति में नये ग्राहकों से काम मिलना मुश्किल है और नये ग्राहक जोड़ने के लिए कंपन को पहले की तुलना में अधिक प्रयास करना होगा।
यही वजह है कि प्रमुख आईटी कंपनी ने डॉलर में प्राप्त होने वाली आय के लिए रूढ़िवादी परिदृश्य रखा है। कंपनी ने कहा कि साल 2008-09 की तुलना में साल 2009-10 का राजस्व तीन से सात प्रतिशत कम रहेगा।
बाजार इससे कम लगभग 3 से 4 फीसदी की गिरावट का अनुमान कर रहा था यही वजह रही कि बुधवार के कारोबारी सत्र की शुरुआत में इन्फोसिस के शेयर अपेक्षाकृत कम कीमतों पर खुले। टॉपलाइन के कमजोर होने का स्पष्ट दबाव परिचालन लाभों पर पड़ेगा।
मार्च 2008 की तिमाही में परिचालन लाभ मार्जिन 1.5 फीसदी घट कर 33.6 प्रतिशत हो गया और साल 2009-10 में इसमें लगभग 3 प्रतिशत और गिरावट आने के आसार हैं। ऐसा तब हो रहा है जब वेतन और भत्ते बढ़ाने की इन्फोसिस की कोई योजना नहीं है। हालांकि, यह विपणन पर अपना खर्च बढ़ाना चाहती है।
प्रबंधन नियुक्ति की अपनी योजना आगे बढ़ाना चाहता है। कंपनी का कहना है कि यह योजना के मुताबिक 18,000 कर्मचारियों की भर्ती करेगी। हालांकि, लगभग 10,000 कर्मचारी कंपनी से नाता तोड़ सकते हैं, इसलिए कंपनी कुल मिला कर 8,000 भर्तियां करेगी।
जब तक साल की दूसरी छमाही में माहौल नहीं सुधरता है और बिलिंग की दरें नहीं बढ़ती हैं तब तक मार्जिन कमजोर ही बना रहेगा। अच्छी खबर यह है कि कंपनी के पास नकदी का अच्छा भंडार है तो 2.2 अरब डॉलर का है। अधिग्रहणों के समय यह काम आ सकती है।
1,370 रुपये पर इसके शेयरों का कारोबार अर्निंग के 14 गुना पर किया जा रहा है और अल्पावधि में इसकी दोबारा रेटिंग शायद ही की जाए। वास्तव में, निकट भविष्य में यह1,250 रुपये के निचले स्तर पर भी आ सकता है।
भारती एयरटेल: बने रहें
जीएसएम के क्षेत्र में भले ही भारती एयरटेल की हिस्सेदारी छह महीने में 35 प्रतिशत से घट कर 25 प्रतिशत हो गई हो और मार्च में सने वोडाफोन की तुलना में कम ग्राहक जोड़े हों लेकिन यह कीमतों के युध्द में हिस्सा नहीं लेना चाहता। यह बाजार राजस्व की अपनी हिस्सेदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपना लाभ सुरक्षित रखना चाहता है।
यह टेलीकॉम कंपनी पहले ही 22 में से 14 टेलीकॉम क्षेत्र में बाजार राजस्व की हिस्सेदारी पा रहा है और इसका एआरपीयू उद्योग में सबसे अधिक है। निश्चय ही एआरपीयू घट सकता है। मार्च 2009 की तिमाही में यह कमी 5 प्रतिशत से अधिक की हो सकती है क्योंकि इसके कुछ प्री-पेड ग्राहक रिलायंस कम्युनिकेशंस का रुख कर सकते है ताकि इसके फ्री मिनट की पेशकश का लाभ उठा पाएं।
हालांकि, दीर्घावधि में कीमतों के खेल में शामिल नहीं होने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस साल की शुरुआत से ही भारती एयरटेल के शेयरों का प्रदर्शन बाजार की तुलना में अच्छा नहीं रहा और नियामकीय बदलाव तथा भारी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए आय के अनुमान घटाए गए हैं।
साल 2009-10 के अनुमानित आंकड़ों की तुलना में ईवी-ईबीआईटीडीए 7 गुना से कम होने की स्थिति में इसके शेयरों की कीमत आकर्षक है।
