जेफरीज में इक्विटी रणनीति के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों के दौरान इक्विटी में तेजी के बावजूद भारत अभी भी इक्विटी लोकप्रियता के शुरुआती चरण में है। उनका मानना है कि 23 जुलाई को पेश किए जाने वाले बजट में अगर इक्विटी के लिए पूंजीगत लाभ कर में कोई भी बदलाव (दीर्घावधि और अल्पावधि, दोनों) किया गया तो इससे 4 जून को लोक सभा चुनाव के नतीजों के बाद बाजारों में जो गिरावट देखी गई थी, उससे कहीं ज्यादा गिरावट को बढ़ावा मिल सकता है। 4 जून को भाजपा स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी, हालांकि वह गठबंधन सहयोगियों की मदद से सरकार बनाने में सफल रही।
भारतीय शेयर बाजारों के भविष्य के बारे में वुड का यह विश्वास पिछले कुछ वर्षों में छोटे निवेशकों (जिसमें म्युचुअल फंड भी शामिल हैं) की बढ़ती भागीदारी से पैदा हुआ है, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह जारी रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि भारतीय शेयर बाजार वैश्विक स्तर पर सबसे आशाजनक परिसंपत्ति प्रबंधन वाले बने हुए हैं, यहां तक कि इस साल की शुरुआत में आम चुनावों में भाजपा के बहुमत खोने के बावजूद भी बाजार अपनी लड़खड़ाई चाल को ठीक करने में कामयाब रहे।
निवेशकों को भेजी अपनी साप्ताहिक रिपोर्ट ग्रीड ऐंड फियर में वुड ने लिखा है, ‘याद रखें कि शेयर बाजार में केवल एक ही दिन बड़ी गिरावट आई थी और तब (4 जून) से अब तक 13.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस संदर्भ में छोटे निवेशक की क्षमता और बढ़ गई कि छोटे निवेशकों ने खरीदारी की जबकि पेशेवरों ने बिकवाली, और अब तक खुदरा निवेशक सही दिख रहे हैं।
रिटेल निवेशकों और म्युचुअल फंडों का शेयर स्वामित्व वित्त वर्ष 2021 के अंत में 16.6 प्रतिशत था, जो वित्त वर्ष 2024 के अंत में बढ़कर 18.4 प्रतिशत हो गया। दूसरी तरफ, भारतीय शेयरों में एफआईआई की भागीदारी समान अवधि में 22.1 प्रतिशत से घटकर 19.9 प्रतिशत रह गई। शेयर बाजार का पूंजीकरण अब 5.2 लाख करोड़ डॉलर हो गया है, जो मार्च 2020 के निचले स्तर 1.3 लाख करोड़ डॉलर से 296 प्रतिशत अधिक है।
वुड का कहना है कि 23 जुलाई को पेश होने वाले बजट पर नजर रखी जानी चाहिए, ताकि भाजपा गठबंधन में शामिल दो छोटे दलों की मांगों को पूरा किया जा सके। हालांकि, उनका सुझाव है कि ऐसी मांगों को पूरा करने के लिए बजट आवंटन आशंका से कम होगा। पूंजीगत लाभ कर की दर में संभावित वृद्धि के बारे में पहले की तुलना में कम चिंता दिख रही है।
ऐसा माना जा रहा है कि कम जनादेश के कारण पुनः निर्वाचित सरकार द्वारा ऐसा कदम (कर वृद्धि) उठाने की आशंका नहीं है। फिर भी यदि यह अनुमान गलत साबित होता है, और पूंजीगत लाभ कर में वृद्धि की जाती है, तो इससे चुनाव के बाद हुई गिरावट (4 जून) से भी बड़ी बिकवाली को बढ़ावा मिल सकता है।