Fixed Income Funds: आज के बढ़ते खर्चों के दौर में निवेशक ऐसे विकल्प की तलाश में रहते हैं जो स्टेबल और लगातार रिटर्न दे सके। फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड्स इसी जरूरत को पूरा करते हैं। ये फंड मुख्य रूप से सरकारी सिक्योरिटीज, कॉर्पोरेट बॉन्ड, डिबेंचर और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। इनके जरिए निवेशकों को उन सिक्योरिटीज से मिलने वाले नियमित ब्याज के रूप में आय मिलती है। इसलिए इन्हें डेट फंड भी कहा जाता है। ये खासकर उन लोगों के लिए अच्छे हैं जो ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते और अपने निवेश में स्थिरता चाहते हैं।
फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंडों की सबसे बड़ी खासियत है कि ये बाजार की उतार-चढ़ाव की तुलना में ज्यादा स्थिर होते हैं। इक्विटी फंड्स की तुलना में इन फंड्स में जोखिम कम होता है, जिससे निवेशक अपनी पूंजी को सुरक्षित रख सकते हैं।
इसके अलावा, ये फंड निवेशकों को निवेश के लिए अधिक लचीलापन भी देते हैं। आप चाहें तो एक साथ बड़ी रकम लगा सकते हैं या फिर समय-समय पर छोटे-छोटे निवेश भी कर सकते हैं। इसके अलावा, फंड्स के बीच स्विचिंग की सुविधा भी होती है, जिससे जोखिम को कम किया जा सकता है।
टैक्स की बात करें तो फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड में टैक्स तभी लगता है जब आप अपने निवेश को निकालते हैं। अगर आप 3 साल से कम समय के लिए निवेश रखते हैं तो शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा और 3 साल से ज्यादा रखने पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। इन फंड्स में आमतौर पर कोई लॉक-इन पीरियड नहीं होता, जिससे आप जब चाहें अपना पैसा निकाल सकते हैं, हालांकि कुछ फंड्स में निकासी पर कुछ चार्ज लग सकते हैं।
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जब आप फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड में निवेश करने का सोच रहे हों तो सबसे पहले अपने निवेश का मकसद साफ करें। यह जानना जरूरी है कि आप रेगुलर इनकम चाहते हैं या बैंक के बचत खाते से बेहतर रिटर्न की तलाश में हैं। पैसा कितने समय तक लगाना है, यह भी बहुत मायने रखता है क्योंकि हर फंड के निवेश की अलग-अलग समय सीमा होती है।
इसके अलावा, फंड के पिछले प्रदर्शन को भी जांचना जरूरी होता है ताकि पता चले कि उसने अच्छे और स्थिर रिटर्न दिए हैं या नहीं। जोखिम के बारे में भी जानना जरूरी है क्योंकि फिक्स्ड इनकम फंडों में ब्याज दर, क्रेडिट और लिक्विडिटी से जुड़े जोखिम होते हैं। साथ ही, फंड में लगने वाला खर्चा यानी एक्सपेंस रेशियो भी आपके मुनाफे को प्रभावित करता है, इसलिए ऐसे फंड को चुनें जिसमें खर्चा कम हो।
वेंचुरा के डायरेक्टर और कंपनी सेक्रेटरी जुज़र गाबाजीवाला बताते हैं, फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड ऐसे फंड होते हैं जो मुख्य तौर पर सरकार और कंपनियों के डेट इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाते हैं। ये फंड उन लोगों के लिए बहुत अच्छे हैं जो ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते और अपने निवेश से एक स्थिर और पहले से तय आमदनी चाहते हैं।
उनका कहना है, अगर कोई निवेशक जोखिम से बचना चाहता है तो वह सरकारी सिक्योरिटी फंड में निवेश कर सकता है, क्योंकि इसमें सुरक्षा ज्यादा होती है। फिक्स्ड इनकम फंड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें टैक्स से जुड़ी कटौती (TDS) नहीं होती, जो कि बैंक की एफडी में होती है। टैक्स तभी देना होता है जब आप अपना पैसा निकालते हैं, इसलिए निवेशकों को टैक्स में फायदा होता है।
गाबाजीवाला आगे बताते हैं कि जब ब्याज दरें कम होती हैं तो इन फंड्स के रिटर्न बढ़ सकते हैं क्योंकि उस वक्त बॉन्ड की कीमतें बढ़ जाती हैं। लेकिन अगर ब्याज दरें बढ़ें तो रिटर्न कम हो सकते हैं। इसके अलावा, ये फंड निवेशकों को कई तरह के बॉन्ड्स में निवेश करने का मौका देते हैं, जिससे जोखिम कम हो जाता है। ये फंड सामान्य तौर पर खुले होते हैं, यानी आप जब चाहें अपना पैसा आसानी से निकाल सकते हैं।
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गाबाजीवाला के मुताबिक, यह फंड खासतौर पर उन निवेशकों के लिए अच्छे हैं जो अपना पैसा सुरक्षित रखना चाहते हैं और जिनको हर महीने या हर साल नियमित आमदनी की जरूरत नहीं होती। अगर आप सोचते हैं कि आने वाले समय में ब्याज की दरें कम होंगी, तो ऐसे में फिक्स्ड इनकम फंड से आपको अच्छे रिटर्न मिल सकते हैं। इसके अलावा, जो लोग कम टैक्स स्लैब में आते हैं, यानी जिनकी आय पर कम टैक्स लगता है, वे भी इन फंड्स को इसलिए पसंद कर सकते हैं क्योंकि इसमें टैक्स का फायदा होता है। इस वजह से ये फंड कई तरह के निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं।
गाबाजीवाला बताते हैं, हालांकि ये फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड निवेशकों को स्थिरता देते हैं, लेकिन इनमें भी कुछ जोखिम होते हैं जिन्हें समझना जरूरी है। सबसे पहला जोखिम ब्याज दर से जुड़ा होता है। जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो बॉन्ड की कीमतें गिर जाती हैं। इसके उलट, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो बॉन्ड की कीमतें बढ़ जाती हैं। यह जोखिम आम तौर पर थोड़े समय के लिए होता है और जब आप लंबे समय तक निवेश करते हैं तो यह कम हो जाता है।
दूसरा जोखिम क्रेडिट जोखिम कहलाता है। इसका मतलब है कि फंड के पास जो बॉन्ड या सिक्योरिटी होती है, वह अगर डिफॉल्ट कर जाए, यानी वह अपने वादे अनुसार भुगतान न कर पाए, तो इससे निवेशक को नुकसान हो सकता है।
तीसरा जोखिम लिक्विडिटी का होता है। यह तब होता है जब बहुत सारे निवेशक एक साथ अपना पैसा निकालने लगते हैं और फंड को जल्दी-जल्दी अपने बॉन्ड बेचने पड़ते हैं। ऐसे में फंड को सही कीमत नहीं मिल पाती और निवेशकों को नुकसान हो सकता है। ऐसा कुछ कोविड के समय भी हुआ था, जब बाजार में अस्थिरता के कारण कई फंड्स को मुश्किलें आईं। इसलिए ये जोखिम भी ध्यान में रखना जरूरी है।
गाबाजीवाला के अनुसार, फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड ज्यादातर बांड और डेट इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाते हैं, जबकि इक्विटी फंड मुख्य रूप से स्टॉक्स या शेयर बाजार में निवेश करते हैं। फिक्स्ड इनकम फंड का मकसद यह होता है कि निवेशकों को नियमित आमदनी मिले और उनका पैसा सुरक्षित बना रहे। वहीं, इक्विटी फंड इस सोच के साथ बनाए जाते हैं कि लंबी अवधि में पैसे में बढ़त हो सके।
जोखिम की बात करें तो फिक्स्ड इनकम फंड में जोखिम कम होता है क्योंकि ये शेयर बाजार की तरह तेजी से ऊपर-नीचे नहीं होते। इसके उलट, इक्विटी फंड में बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण जोखिम ज्यादा होता है।
फिक्स्ड इनकम फंड से मिलने वाला रिटर्न आम तौर पर स्थिर और मध्यम होता है, यानी ज्यादा न कम। जबकि इक्विटी फंड से रिटर्न ज़्यादा मिल सकता है लेकिन यह तय नहीं होता कि हर बार उतना ही फायदा होगा।
इसी वजह से फिक्स्ड इनकम फंड उन लोगों के लिए सही होते हैं जो अपने निवेश को लेकर ज्यादा सतर्क रहते हैं और जोखिम नहीं लेना चाहते। दूसरी ओर, इक्विटी फंड उन निवेशकों के लिए अच्छे हैं जो ज्यादा जोखिम उठा सकते हैं और लंबे समय तक पैसा लगाए रखने की योजना रखते हैं।
गाबाजीवाला के अनुसार, जब आप कोई फंड चुनने की सोच रहे हों तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि आप कितने समय के लिए निवेश करना चाहते हैं और आप कितना जोखिम लेने के लिए तैयार हैं। अगर आप कम जोखिम लेना चाहते हैं तो ऐसे फंड चुनें जो सरकारी सिक्योरिटी में निवेश करते हों या जिनकी क्रेडिट क्वालिटी बहुत अच्छी हो। किसी फंड से भविष्य में कितना रिटर्न मिल सकता है, यह जानने के लिए “यील्ड टू मैच्योरिटी” (YTM) देखना जरूरी होता है। YTM से आपको इस बात का अंदाजा लगता है कि आगे चलकर फंड से आपको कितनी आमदनी हो सकती है।
सिर्फ YTM ही नहीं, फंड के पिछले प्रदर्शन और उसके उतार-चढ़ाव की तुलना करना भी जरूरी होता है, ताकि आप यह समझ सकें कि वह फंड कितना स्थिर रहा है और उसमें कितना जोखिम रहा है। फंड में जो बॉन्ड शामिल हैं, उनकी क्रेडिट क्वालिटी भी देखनी चाहिए। अगर किसी बॉन्ड की रेटिंग अच्छी है तो उसमें डिफॉल्ट यानी पैसा न मिलने का खतरा कम होता है।
इसके साथ ही, फंड की ड्यूरेशन यानी कितने समय के लिए वह निवेश करता है, यह भी जानना जरूरी है। क्योंकि जो फंड कम समय के लिए निवेश करते हैं, उन पर ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव का असर कम पड़ता है। इससे निवेश थोड़ा सुरक्षित रहता है।
जुज़र गाबाजीवाला कहते हैं कि फिक्स्ड इनकम फंड से निवेशकों को दो तरह से कमाई होती है। पहला, ब्याज के रूप में – जब फंड जिन डेट सिक्योरिटीज़ (जैसे बॉन्ड आदि) में पैसा लगाता है, उनसे मिलने वाला ब्याज फंड की आमदनी होती है। दूसरा तरीका होता है कैपिटल गेन – जब फंड कोई सिक्योरिटी उस कीमत से ज़्यादा पर बेचता है जिस पर उसे खरीदा गया था, तो उससे जो फायदा होता है, वो कैपिटल गेन कहलाता है।
पहला है ग्रोथ ऑप्शन – इसमें आपको तब तक कोई रिटर्न नहीं मिलता जब तक आप अपने यूनिट्स नहीं बेचते। जितनी देर आप निवेश बनाए रखते हैं, उतना आपका निवेश बढ़ता जाता है, और बेचते समय पूरा रिटर्न एक साथ मिलता है।
दूसरा है IDCW ऑप्शन – इसे पहले डिविडेंड ऑप्शन भी कहा जाता था। इसमें आपको नियमित अंतराल पर पैसा मिलता है, जो हर महीने, तीन महीने में या साल में एक बार हो सकता है।
तीसरा है IDCW रीइंवेस्टमेंट ऑप्शन – इसमें जो भी रकम मिलती है उसे फंड दोबारा उसी स्कीम में निवेश कर देता है, जिससे आपकी यूनिट्स की संख्या बढ़ जाती है और आपका निवेश बढ़ता रहता है।
फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड एक अच्छा विकल्प माने जाते हैं उन लोगों के लिए जो अपने पैसों में स्थिरता, नियमित आमदनी और धीरे-धीरे बढ़त चाहते हैं। लेकिन निवेश करने से पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि आपके अपने वित्तीय लक्ष्य क्या हैं, आप कितना जोखिम ले सकते हैं और आप कितने समय के लिए निवेश करना चाहते हैं।
(डिस्क्लेमर: म्युचुअल फंड में निवेश बाजार के जो खिमों के अधीन है। निवेश संबंधी फैसला करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)