वैश्विक शेयर और बॉन्ड बाजार में हालिया घटनाक्रम से शेयर बाजार में तेज गिरावट का संकेत मिलता है। अमेरिकी बेंचमार्क डाऊ जोंस शुक्रवार को कोविड महामारी के बाद की अपनी सारी बढ़त गंवाकर बंद हुआ और भारत की इक्विटी संपत्तियों में निवेश के लिए विदेशी निवेशकों का आर्थिक प्रोत्साहन 2008 के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।
डाऊ जोंस अब कोविड के पहले के उच्च स्तर (फरवरी 2020) से महज 41 अंक ऊपर है। यह इस साल के 4 जनवरी के अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर से अब 19.6 फीसदी नीचे आ गया है। विश्लेषकों का कहना है कि जोखिम मुक्त बॉन्ड के प्रतिफल या ब्याज दर में तेज वृद्धि की वजह से शेयर जैसी जोखिम वाली संपत्तियों में निवेश के लिए निवेशकों के आर्थिक प्रोत्साहन में कमी आई है।
एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स में वैश्विक मुख्य अर्थशास्त्री और प्रबंध निदेशक पॉल एफ ग्रुएनवाल्ड ने कहा, ‘बॉन्ड प्रतिफल अधिक रहने और उच्च मुद्रास्फीति से परिसंपत्ति का मूल्य कम होता है और इक्विटी व अमेरिका के हाउसिंग बाजार जैसे परिसंपत्ति बाजारों में ऐसा दिख रहा है।’
अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल इस साल दोगुना से अधिक बढ़ गया है। 10 वर्षीय अमेरिकी सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल बीते शुक्रवार को 3.69 फीसदी रहा जो पिछले साल दिसंबर में 1.51 फीसदी था। अल्पावधि के बॉन्ड का प्रतिफल और बढ़ा है। 2 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी का प्रतिफल 4.20 फीसदी पर पहुंच गया जो 2021 के अंत में 0.73 फीसदी था।
भारत में सेंसेक्स रिटर्न और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल का अंतर 12 साल के निचले स्तर 81 आधार अंक रह गया है। बॉन्ड प्रतिफल में तेज वृद्धि और भारत में अपेक्षाकृत उच्च इक्विटी मूल्यांकन के कारण यह अंतर घटा है। शुक्रवार को सेंसेक्स की आय का प्रतिफल 4.5 फीसदी रहा जबकि अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 3.69 फीसदी रहा।
ऐसे में विदेशी निवेशक महज 81 आधार अंक के अंतर वाले प्रतिफल के लिए शेयर जैसे जोखिम वाली संपत्तियों में निवेश कम कर रहे हैं। 2021 के अंत में यह अंतर 208 आधार अंक था और अप्रैल 2020 में यह 4.7 फीसदी था।
शेयरों का आय प्रतिफल उसके प्राइस टु अर्निंग मल्टिपल के विपरीत है और यह निवेशक के लिए संभावित लाभांश प्रतिफल है बशर्ते लक्षित कंपनी अपने 100 फीसदी ताजा वार्षिक मुनाफे को इक्विटी लाभांश के तौर पर वितरित करे। आमतौर पर आय प्रतिफल जोखिम-मुक्त बॉन्ड प्रतिफल के मुकाबले अधिक होता है। यह निवेशकों को सरकारी बॉन्ड के बजाय शेयरों में निवेश का जोखिम लेने के लिए प्रेरित करता है।
ऐतिहासिक तौर पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा बिकवाली किए जाने पर प्रतिफल में कमी आती है। इससे बाजार गिरता है जबकि शेयर बाजार तेजी आने पर प्रतिफल भी अधिक होता है।
सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के निदेशक एवं प्रमुख (अनुसंधान, रणनीति एवं अर्थशास्त्र) धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘देसी शेयर बाजार वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक महंगे बाजारों में शामिल है। सेंसेक्स 22.3 गुना पी/ई गुणक पर जबकि एसऐंडपी 500 सूचकांक 17 गुना पी/ई गुणक पर कारोबार कर रहा है। अमेरिकी बॉन्ड के मुकाबले भारतीय शेयर परिसंपत्तियों में निवेश को बरकरार रखने में एफपीआई को जोखिम दिख रहा है।’
बॉन्ड प्रतिफल में आगे और वृद्धि होने के आसार हैं क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी बेंचमार्क ब्याज दर को मौजूदा 3.25 फीसदी से बढ़ाकर 4.6 फीसदी करने के संकेत दिए हैं। ऐसा कम से कम 2024 तक रहेगा ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके।