Crude Oil Prices: भूराजनीतिक परिदृश्य में बदलाव से कच्चे तेल की कीमतें फिर से चढ़ सकती हैं। कच्चे तेल की कीमतें जून के पहले सप्ताह से करीब 10 प्रतिशत तक चढ़ कर इस समय करीब 85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं।
एसऐंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट में क्रूड ऐंड फ्यूल ऑयल मार्केट्स के वैश्विक निदेशक जोएल हैनली ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, लगातार भू-राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ‘हमारे विश्लेषकों का अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमतें आगामी महीनों में 85 से 100 डॉलर के दायरे में रह सकती हैं।’
हालांकि ओपेक देशों के पास पर्याप्त तेल है जिससे किसी बड़ी कीमत वृद्धि की आशंका सीमित हो सकती है। हैनली ने कहा कि ओपेक देश ज्यादा तेल की आपूर्ति कर सकते हैं और कीमत पर सीमा के तौर पर काम कर सकते हैं।
इस समय रूसी तेल भारत में पसंदीदा विकल्प (रूस की प्रतिस्पर्धी कीमतों की वजह से) है। पांच साल पहले रूस का भारत के कुल कच्चे तेल आयात में सिर्फ 5 प्रतिशत योगदान था लेकिन यह आंकड़ा अब बढ़कर 41 प्रतिशत हो गया है। यूक्रेन के साथ युद्ध की वजह से रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद रूस ने कम कीमतों पर भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति की पेशकश की है।
उन्होंने कहा कि भारत अब कच्चे तेल के बाजार के वैश्विक नक्शे पर जगह बना चुका है। भारत एक बड़ा आयातक रहा है लेकिन अब वह यूरोप और अन्य देशों के लिए रिफाइंड उत्पादों का मुख्य आपूर्तिकर्ता भी है। साथ ही वह अपनी स्वयं की बढ़ती आबादी की जरूरत पूरी कर रहा है। हैनली का कहना है कि बड़ी रिफाइनरियों के निर्माण से भारत को ऊर्जा क्षेत्र में जगह बनाने में मदद मिली है।
हैनली ने कहा, ‘इस समय भारत को रूस से रियायती दाम पर पर तेल मिलने से कारोबार में बड़ी मदद मिली है। भारत अब सुरक्षा और किफायत का स्तर बढ़ाने के लिए मौजूदा बदलावों का लाभ उठाने के लिहाज से अच्छी स्थिति में है।’
इससे पहले एसऐंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स में एशिया थर्मल कूल के मैनेजिंग प्राइसिंग एडिटर प्रीतीश राज ने एक मीडिया राउंड टेबल में कहा, ‘भारत जैसे कीमत-संवेदी बाजार के लिए कोयला आयात भी गैर-प्रतिस्पर्धी नहीं होगा क्योंकि भविष्य में हम प्रशांत और अटलांटिक बेसिन, दोनों से वैश्विक बाजार में ज्यादा आपूर्ति देखेंगे जिसका समुद्री मार्ग से यात्रा की कीमतों पर असर पड़ेगा और यह कई एशियाई देशों के लिए व्यवहार्य हो जाएगा।’
भारत में कोयले की मांग वर्ष 2030 तक 1.5 अरब टन पहुंचने का अनुमान है जिसे आयात की मदद से आसानी से पूरा किया जा सकता है। लेकिन राज का कहना है, ‘घरेलू कोयला गुणवत्ता मुख्य चुनौती है और परिवहन की समस्या बनी हुई है।’
उनका मानना है कि भारत का घरेलू उत्पादन वर्ष 2030 तक आसानी से 1.5-1.7 अरब टन तक पहुंच जाएगा और आयात अगले 5-6 साल में 15 करोड़ टन पर बना रह सकता है।
हालांकि यदि घरेलू कोयले की गुणवत्ता सुधरती है और परिवहन समस्या भी दूर होती है तो भारत के विद्युत क्षेत्र का आयात भी घटकर 10 करोड़ टन पर आ सकता है। राज को ताप कोयला कीमतें अल्पावधि में सीमित दायरे में रहने का अनुमान है।