अमेरिका में ऊंचे बॉन्ड प्रतिफल से इस साल विदेशी मुद्रा में उधारी पर दबाव पड़ा। एचएसबीसी इंडिया के प्रमुख (ग्लोबल बैंकिंग) अमिताभ मल्होत्रा ने समी मोडक के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि चूंकि भारत में ब्याज दरें काफी कम बढ़ी हैं, इसलिए हालात रुपये से जुड़ी उधारी के लिए अनुकूल हैं। मल्होत्रा ने कहा कि अगले साल के प्रमुख जोखिमों में परिपक्व हो रहे 17 अरब डॉलर के डॉलर बॉन्ड भी शामिल है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
हम 2023 के अंत की ओर बढ़ रहे हैं। जब बात ऋण पूंजी बाजार (डीसीएम) के मोर्चे पर सौदे करने की हो तो आपकी नजर में यह साल कैसा रहा?
यदि हम ऑनशोर रुपया बॉन्ड बाजार और ऑफशोर विदेशी मुद्रा बॉन्ड बाजार को अलग अलग देखें तो पता चलता है कि डीसीएम यानी ऋण पूंजी बाजार के लिए यह मिश्रित वर्ष रहा। जोखिम-मुक्त दरों, खासकर अमेरिकी ट्रेजरी रेट की वजह से भारत समेत पूरे एशिया में कंपनियों द्वारा कम विदेशी मुद्राओं में बॉन्ड जारी किए गए। जापान को छोड़कर, जी3 (अमेरिकी डॉलर, यूरो और जापानी येन) बॉन्ड बाजारों में एशियाई कंपनियों में प्राथमिक निर्गम की दर 2023 में 21 प्रतिशत घटी (पिछले साल के मुकाबले) है। इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार में भारतीय कंपनियों द्वारा प्राथमिक निर्गम की मात्रा भी 34 प्रतिशत घटी है। हालांकि, दूसरी तरफ, रुपये के दबदबे वाले बॉन्ड बाजार में तेजी बरकरार है और 2023 में प्राथमिक निर्गमों का आकार 41 प्रतिशत तक बढ़ा है। इसे अमेरिकी ट्रेजरी के मुकाबले कमजोर ब्याज दरों से मदद मिली। इसके अलावा निजी ऋण क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ रही हैं।
क्या इक्विटी कैपिटल मार्केट (ईसीएम) के संदर्भ में हालात बेहतर हैं?
ईसीएम के संदर्भ में बात की जाए तो कैलेंडर वर्ष 2023 की पहली छमाही में कुछ ही सौदे हुए। हालांकि ऐसे कुछ खास क्षेत्र हैं जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले नाम जुड़े रहे। इनमें मैनकाइंड फार्मा, ब्लैकस्टोन-नेक्सस रीट और कई सेकंडरी ब्लॉक डील भी शामिल हैं। दूसरी छमाही के दौरान सौदों की गतिविधि में तेजी आई। कई प्रवर्तकों को पिछले कुछ महीनों में सेकंडरी सौदों के जरिये हिस्सेदारी बेचने के अवसर मिले। 2023 में, भारत में संपूर्ण ईसीएम का आकार 19 अरब डॉलर पर रहा।
अगले 12 महीनों के लिए ईसीएम परिदृश्य कैसा है? कौन से क्षेत्रों में गतिविधियां मजबूत रह सकती हैं?
हमारा मानना है कि भारत अगले 12 महीनों के दौरान अच्छी गुणवत्ता के निवेश विकल्पों की लोकप्रियता देखेगा। आम चुनाव के दौरान कोष जुटाने की गतिविधि में कुछ नरमी आ सकती है। हालांकि हमारा मानना है कि उस अवधि का उपयोग कंपनियों द्वारा दस्तावेजीकरण को पूरा करने और अंतिम सार्वजनिक बाजार कार्यक्रम की तैयारी में निवेशक सहभागिता गतिविधि जारी रखने के लिए किया जाएगा। इसका यह भी मतलब होगा कि अगले साल सौदों की मात्रा पहली के मुकाबले दूसरी छमाही में ज्यादा मजबूत रह सकती है।
क्या दशक की ऊंचाई पर पहुंच चुके बॉन्ड प्रतिफल ने घरेलू बॉन्ड जारीकर्ताओं को विदेशी उधारी के लिए विपरीत हालात पैदा कर दिए हैं?
कुल मिलाकर, भारत में ब्याज दरें अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार में बड़ी तेजी के मुकाबले कम बढ़ी हैं, खासकर अमेरिकी डॉलर बॉन्ड बाजार के संदर्भ में। मांग के संदर्भ में भी जहां अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार में कीमतें बढ़ी हैं, वहीं वे भारत समेत कई बाजारों में अलग हैं। कुछ अन्य क्षेत्रों में वृद्धि से जुड़ी चिंताओं को देखते हुए भारत कई वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक बना हुआ है। जब भी मूल्य निर्धारण अंतर कम होगा, हम इस बाजार में गतिविधि में तेजी की उम्मीद करेंगे।
एचएसबीसी के लिए इस साल खास घटनाक्रम क्या रहा?
एचएसबीसी ने इस साल विलय एवं अधिग्रहण सौदों के मोर्चे पर अच्छी बढ़त दर्ज की। एचएसबीसी ने विद्युत, अक्षय ऊर्जा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र समेत विभिन्न क्षेत्रों में चार प्रमुख लेनदेन की घोषणा की। हम भविष्य में इन क्षेत्रों में पूंजी प्रवाह बरकरार रहने की उम्मीद कर रहे हैं।