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बैक: लघु अवधि के लिए फायदे का एलान

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 4:56 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रिवर्स रेपो को घटाकर 4 फीसदी तक किए जाने का मकसद बैंकों को अतिरिक्त रकम रिजर्व बैंक के पास जमा करने को हतोत्साहित करना है।


इसके अलावा नकद आरक्ष् अनुपात में आधा प्रतिशत की कमी किए जाने से बैंकों के पास कुछ अतरिक्त राशि और रहेगी। लेकिन फिलहल बैंकों की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वे कर्ज के लिए ऐसे लोग तलाशें जिन्हें कर्ज देने में कोई जोखिम नहीं हो।

हालांकि यह जितना आसान दिखाई देता है उतना है नहीं क्योंकि मौजूदा मंदी के हालात देखते हुए यह मुश्किल लग रहा है, खासकर छोटे और मझोले उद्योगों के लिए तो हालात और मुश्किल हो गए हैं।

बैंकों का कर्ज देना जरूरी है और यह समय की मांग भी है, लेकिन सरकारी बैंकों को कर्ज देने केलिए मजबूर करने से लंबी अवधि में बैंकों के  हितों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा जब तक अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर नहीं आ जाती तब तक फिर से कर्ज देना पैसा पानी में बहाने जैसा हो सकता है।

पिछले छह महीने और इससे भी ज्यादा समय से पूरी वित्तीय प्रणाली में बैंकों से ही नकदी का प्रवाह आ रहा है क्योंकि मंदी के कारण विदेशों में डेट बाजार और शेयर बाजार लोगों की पहुंच से दूर हो गए हैं। इससे भी ज्यादा दुखदायी बात यह रही कि आतंरिक जमा पूंजी पर भी व्यापक असर पडा है।

बाजार की खस्ता हालत को देखकर बाजार ऋण देने से परहेज करते आ रहे हैं। बैंकों को इस बात की चिंता है कि कहीं जमा राशि पर लागत और न बढ़ जाए। हालांकि जो दुखी हैं वह आरबीआई के फैसले से थाड़ी राहत महसूस कर सकते हैं।

लेकिन बैंक डूबते कर्जों को लेकर भी चिंतित दिखाई दे रहे हैं और इस समय जबकि देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है, उनकी चिंता जाहिर है।

हालांकि अब ईसीबी नियमों में कुछ छूट दी गई है और कंपनियों के लिए विदेशी बाजारों से कर्ज जुटाना आसान हो सकता है जिससे बैंकों पर कर्ज देने का दबाव काफी हद तक कम हो जाएगा।

बैंकों के लिए बेहतर कारोबार का समय एक ही शर्त पर पर आ सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था में फिर से मजबूती आ जाए। मंदी के मौजूदा हालात कब तक सुधरेंगे, इस बारे  में कुछ भी कहना मुश्किल लगता है।

अब जबकि ब्याज दरों में कटौती से कुछ हद तक राहत मिलनी चाहिए लेकिन इसके बावजूद लोग इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हैं कि सरकार और आरबीआई द्वारा घोषित सहायता राशि का कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

जैसा कि विश्लेषकों का मानना है कि बुनियादी क्षेत्रों पर किए जानेवाले खर्च में कुछ हद तक कमी आ सकती है और निर्यातकों के लिए फिलहाल बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं।

इसके अलावा आवासीय क्षेत्र के लिए जितने लाभ की बात कही गई थी, वह अनुमान से कहीं कम है। ब्याज दरों मे कमी होने से पिछले महीने और हाल के कुछ दिनों में बीएसई बैंकेक्स में 14 फीसदी के फायदे के मुकाबले 28 फीसदी का उछाल आया है।

इनमें एक बार फिर से तेजी आ सकती है लेकिन बैंक के मुख्य कारोबार के अभी कुछ और समय तक दबाव में रहने का अंदेशा है।

First Published : January 5, 2009 | 9:30 PM IST