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धीमी गति से सीखने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए निजी ट्यूशन अथवा कोचिंग अब स्कूली शिक्षा की समानांतर प्रणाली में तब्दील हो गई है। अब परिवार भी अपने बच्चों पर शैक्षणिक और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए दबाव डाल रहे हैं।
एक चौंकाने वाला आंकड़ा है कि 6 से 11 वर्ष की आयु वाले प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थी भी काफी तेजी से कोचिंग संस्थानों का रुख कर रहे हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की दो अलग-अलग रिपोर्ट से पता चलता है कि कोचिंग संस्थानों में ऐसे विद्यार्थियों की भागीदारी साल 2017-18 के 16.4 फीसदी से बढ़कर 2024-25 में 22.9 फीसदी हो गई। समीक्षाधीन अवधि के दौरान मध्य विद्यालयों (पांचवी से आठवीं कक्षा तक) में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की हिस्सेदारी 21.9 फीसदी से बढ़कर 29.6 फीसदी हो गई, जबकि कोचिंग जाने वाले माध्यमिक स्कूलों (10वीं तक) के विद्यार्थियों की संख्या 30.2 फीसदी से बढ़कर 27.8 फीसदी हो गई। 2017-18 में उच्च माध्यमिक (12वीं तक) स्कूलों में पढ़ने वाले 27.5 फीसदी विद्यार्थी कोचिंग संस्थान का सहारा लेते थे, जो संख्या बढ़कर 37 फीसदी हो गई। निजी कोचिंग में पढ़ाई करने के लिए उम्र मायने नहीं रखती है।
भारत के ग्रामीण इलाकों में कोचिंग का चलन बढ़ रहा है। निजी कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या 16.5 फीसदी से बढ़कर 25 फीसदी हो गई, जो गांवों की कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों के बराबर है। गांवों में पढ़ने वाले छात्रो की संख्या 17.9 फीसदी से बढ़कर 26 फीसदी हो गई। कुल मिलाकर, शहरों के मुकाबले गांवों में कोचिंग का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। गांवों में कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने वालों की संख्या 2017-18 के 17.3 फीसदी से बढ़कर 25.5 फीसदी हो गई, जबकि शहरों में यह 26 से बढ़कर 30.7 फीसदी हुई। कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले शहरी विद्यार्थी अधिक हैं। वहां 32.4 फीसदी छात्र और 28.8 फीसदी छात्राएं पढ़ती हैं मगर ग्रामीण इलाकों में मांग तेजी से बढ़ रही है।
निजी कोचिंग संस्थानों में भागीदारी के लिहाज से पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के राज्य सबसे आगे हैं। त्रिपुरा के 78.6 फीसदी स्कूली विद्यार्थी कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं। उसके बाद मणिपुर के 77.8 फीसदी विद्यार्थी, पश्चिम बंगाल के 74.6 फीसदी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं कोचिंग संस्थान जाते हैं। उसके बाद ओडिशा (57.1 फीसदी) और बिहार (52.5 फीसदी) का स्थान है। यह समूह संभवतः शिक्षा पर सांस्कृतिक जोर और कड़ी शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। देश के सबसे प्रसिद्ध कोचिंग केंद्र राजस्थान के कोटा के सिर्फ 7.2 फीसदी विद्यार्थी ही स्कूल की पढ़ाई के बाद कोचिंग जाते हैं। अपनी स्कूली शिक्षा प्रणालियों के लिए प्रसिद्ध दक्षिण भारत के राज्यों में भी कोचिंग का स्तर काफी कम है।