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बडे अधिकारियों के रिश्तेदारों को नहीं मिलेंगे ठेके

Last Updated- December 06, 2022 | 12:03 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि बीएसएनएल के कर्मचारियों के रिश्तेदारों को ठेके नहीं दिए जा सकते हैं ,यदि वे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हों।


बीएसएनएल बनाम भूपिंदर मामले में कहा गया कि बीएसएनएल के कर्मचारियों का कोई करीबी रिश्तेदार इसके ठेकों की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकता। इसे हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई , जहां इसको खारिज कर दिया गया था। इसी तरह के विवाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का भी यही रुख रहा।


तब बीएसएनएल इस तरह के सारे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को नजीर बनाया जिसमें फैसला दिया गया था कि यदि अपात्रता की श्रेणी तय हो तो, न्यायालय का आदेश वैध माना जाएगा। यदि वे महत्वपूर्ण पदों पर हैं, तो प्रतिबंध सही माना जाएगा। यदि वे निचले पदों पर हैं, तो उनकी पेशकश में कुछ शर्तें जोड़ी जा सकती हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।


आर्बिट्रेशन ट्राइब्यूनल


सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया है। मामला एक ठेकेदार और मुख्य अभियंता के बीच विवाद से जुड़ा हुआ है। यह मामला आर्बिट्रेशन एक्ट 1940 के तहत आर्बिट्रेशन ट्राइब्यूनल के पास गया। महिपतलाल बनाम मुख्य अभियंता मामले में ट्राइब्यूनल ने विवाद को सुलझाने का काम शुरु किया। जब ठेकेदार इससे संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने आर्बिट्रेशन ऐंड काउंसिलिएशन एक्ट 1996 की धारा 11 के तहत इसको उड़ीसा उच्च न्यायालय में चुनौती दी।


उड़ीसा उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि अनुबंध के अनुसार आर्बिट्रेशन ट्राइब्यूनल ही मामला सुलझाएगा। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि नये कानून को निरस्त कर दिया गया है और पुराने कानून के अनुसार राज्य सरकार ने ट्राइब्यूनल को समाप्त कर दिया है।सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय को एक आर्बिटेटर नियुक्त करने को कहा है।


सिंडिकेट बैंक


सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलट दिया है। मामला सिंडिकेट बैंक बनाम न्यू लुक रबर्स से जुड़ा हुआ है। न्यू लुक रबर्स की हालत बहुत खस्ता हो चुकी है जिसके चलते कंपनी ने अपने कर्जों की अदायगी नहीं की।


सिविल कोर्ट ने इस मामले में आदेश दिया कि बैंक, कंपनी पर कब्जा करके और प्रबंध निदेशक की संपत्ति को बेचकर अपने नुकसान की भरपाई कर सकता है। केरल उच्च न्यायालय ने इस फैसले को उलट दिया। इसके बाद बैंक मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जहां सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को गलत ठहराते हुए इसे पलट दिया।


यीस्ट का मामला


पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट यीस्ट को लेकर उच्च न्यायालयों के अलग-अलग रुख के बाद एक नतीजे पर पहुंचा। सर्वोच्च अदालत ने यीस्ट को फंगस या लिविंग ऑर्गेनिज्म न मानते हुए केमिकल माना है। राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले बिक्री कर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे पहले इलाहाबाद उच्च  न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय का रुख इस मामले में एकसमान था तो केरल उच्च न्यायालय की इस मामले में अलग राय थी।


भारतीय जीवन बीमा निगम


सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी)बनाम और सुरेश मामले में अपने आदेश में कहा है कि किसी निगम के कर्मचारी के निलंबन के मामले में इंडस्ट्रियल कोर्ट फैसला ले सकता है। यह मामला नुकसान के चलते एक विकास अधिकारी के निलंबन से जुड़ा है।


मामला कुछ इस तरह है कि इंडस्ट्रियल कोर्ट ने निगम से अधिकारी को सजा के तौर पर निलंबित करने को कहा था। इसके बाद एलआईसी ने इस मामले में केरल उच्च न्यायालय का रुख किया और दलील दी कि एलआईसी एक्ट 1956 के चलते इंडस्ट्रियल डिस्प्युट एक्ट प्रभावी नहीं माना जा सकता। एलआईसी की दलील को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट से भी एलआईसी को निराशा ही हाथ लगी है।


और आखिर में


सुप्रीम कोर्ट ने प्रोविडेंट फंड कानून को चुनौती देने वाली हिमाचल प्रदेश वन निगम की याचिका खारिज कर दी है। निगम का कहना था कि कर्मचारी प्रोविडेंट फंड 1982 के अनुसार ‘इंडस्ट्रियल इस्टाब्लिशमेंट’ नहीं है, इसलिए इस पर यह कानून लागू नहीं होता है। यह विवाद 1982 से शुरु हुआ और तब से अब तक कई कर्मचारी गायब हो चुके हैं। हालांकि, न्यायालय ने निगम से कहा है कि जिन कर्मचारियों का ब्यौरा उपलब्ध है, उनके मामले में कानून को लागू किया जाए।

First Published - April 28, 2008 | 3:05 PM IST

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