राजीव कुमार के जाने से नीति आयोग में आएगा बदलाव?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 7:36 PM IST

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के उनके पहले भाषण में अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिए की गई घोषणा के बाद नीति आयोग का गठन किया गया था, लेकिन दूसरे उपाध्यक्ष के रूप में केवल सात वर्षों मे ही राजीव कुमार के इस्तीफे ने इस थिंक टैंक के मामलों में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
आयोग में अगले महीने से तीसरा उपाध्यक्ष होगा। दूसरी तरफ मोंटेक सिंह अहलूवालिया का योजना आयोग के अंतिम उपाध्यक्ष के रूप में करीब 10 साल का निर्बाध कार्यकाल रहा था। नीति आयोग ने 1 जनवरी, 2015 को उपाध्यक्ष बदल दिया था।
शुरुआती दिन
अर्थशास्त्री अरविंद पानगडिय़ा को नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, जबकि नौकरशाह अमिताभ कांत ने मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) के रूप में पदभार संभाला था।
शुरुआत से ही नीति निर्माताओं स्पष्ट कर दिया था कि योजना आयोग के विपरीत नीति आयोग के पास धन आवंटित करने की शक्ति नहीं होगी और वह सरकार के लिए एक थिंक टैंक की भूमिका निभाएगा।
पहले कुछ महीने अपनी आंतरिक व्यवस्था करने में बिताने के बाद आयोग धीरे-धीरे सफलतापूर्वक काम करने लगा।
पानगडिय़ा के अंतर्गत नीति आयोग ने केंद्रीय रूप से प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को युक्तिसंगत बनाने पर काम किया, नोटबंदी के बाद डिजिटल ड्राइव का समर्थन किया, केंद्र सरकार के लिए तीन साल का परिकल्पना दस्तावेज तैयार किया, जिसने नेहरू-युग की पंचवर्षीय योजनाओं की विरासत को बदल दिया।
वर्ष 2017 के मध्य में नीति आयोग को शायद अपनी पहली बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, जब पानगडिय़ा ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपना अधूरा शैक्षणिक कार्य करने के लिए अपना तीन साल का कार्यकाल समाप्त होने से ठीक पहले पद छोड़ दिया।
हालांकि आधिकारिक रूप से पानगडिय़ा अपनी अकादमिक रुचि के लिए चले गए, लेकिन कुछ लोगों ने इस इस्तीफे के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के साथ उनके अच्छे समीकरण नहीं होने का आरोप लगाया और उनकी विदेशी पहचान के कारण संघ परिवार के कुछ तत्वों की ओर से उनके कुछ विचारों का विरोध किया गया।
मीडिया की कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2016 में घोषित नोटबंदी पर पनगढिय़ा की मौन अस्वीकृति ने भी शीर्ष स्तर पर लोगों को परेशान किया था। पनगढिय़ा के इस्तीफे के बाद वित्त मंत्रालय में पूर्व आर्थिक सलाहकार राजीव कुमार ने अपना पद संभाला।
कुमार को पानगडिय़ा का सही विकल्प माना जाता था और वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने देशी और विदेश से लौटे अर्थशास्त्रियों तथा भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनके दृष्टिकोण के संबंध में बहस खत्म कर दी थी। वर्ष 2019 में एनडीए सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद कुमार को इस पद पर फिर से नियुक्त करने के बाद यह धारणा बनी रही।
संभवत: नीति आयोग ने पहली बार अपनी प्रासंगिकता को उस समय सही पाया, जब इसकी कई सिफारिशों को वर्ष 2018-19 के बजट में जगल मिली। इनमें किसानों के लिए उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए एक व्यवस्था की घोषणा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम – आयुष्मान भारत योजना आदि शामिल थीं।
दूसरा कार्यकाल व विवाद
पर्यवेक्षकों ने यह बात अनुभव की है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले कुछ महीनों में नीति आयोग कुछ मसलों पर ज्यादा मुखर हो गया और इससे सरकार के साथ उसके संबंधों में बदलाव आया।
केंद्रीय मंत्री खुलेआम आयोग की आलोचना करने लगे। उदाहरण के लिए अगस्त 2019 में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने नीति आयोग को यह कहते हुए फटकार लगाई कि उसके पास वाहन प्रौद्योगिकी के संबंध में फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह उनके अपने मंत्रालय के क्षेत्र में आता है।
कुछ दिनों बाद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि विभिन्न मसलों पर आयोग के विचार हमेशा सरकार के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। वह भारतीय मजदूर संघ जैसे आरएसएस से जुड़े संगठनों के विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे। इसमें जिसमें नीति आयोग पर नौकरियां खत्म करने और सरकारी परिसंपत्ति बेचने का आरोप लगाया गया था।
इसके अलावा संगठन के भीतर भी कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अलग-अलग विचार रहे हैं। उदाहरण के लिए सुभाष पालेकर की जीरो बजट प्राकृतिक खेती तकनीक के माध्यम से प्राकृतिक खेती के मामले में सरकार के जोर को पद छोड़कर जाने जा रहे उपाध्यक्ष राजीव कुमार का समर्थन मिला, लेकिन वरिष्ठ सदस्य रमेश चंद ने महसूस किया कि खाद्य उत्पादों में रसायनों से बचने के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र समाधान नहीं है।

First Published : April 25, 2022 | 12:44 AM IST