टाटा मोटर्स के शेयर खरीदते समय निवेशकों को दो ऑप्शन दिखते हैं। पहला ऑप्शन आता है टाटा मोटर्स और दूसरा ऑप्शन आता है टाटा मोटर्स डीवीआर (Tata Motors DVR)। दोनों शेयर टाटा मोटर्स के ही हैं लेकिन दोनों के प्राइस अलग हैं। इतना ही नहीं दोनो के प्राइस मूवमेंट भी अलग हैं।
इस बीच गौर करने वाली बात ये है कि बीते एक साल में टाटा मोटर्स डीवीआर के निवेशकों को टाटा मोटर्स के आम शेयर से कहीं ज्यादा रिटर्न हासिल हुआ है। आखिर ऐसा क्यों है? डीवीआर में ज्यादा रिटर्न का फंडा क्या है? आइए समझते हैं-
डीवीआर शेयर यानि डिफरेंशियल वोटिंग राइट शेयर ऐसे शेयर होते हैं जिसपर वोटिंग और डिविडेंड के लिए विशेष अधिकार जुड़े होते हैं। दरअसल आम नियमों के अनुसार किसी कंपनी के हर स्टॉकहोल्डर को समान वोटिंग राइट्स और डिविडेंड राइट्स मिले होते हैं।
ऐसे शेयरों को सामान्य या ऑर्डिनरी शेयर कहा जाता है। इस बीच डीवीआर का कॉन्सेप्ट लाया गया। इसमें कंपनियां कुछ ऐसे शेयर जारी करती है जिसमें वोटिंग राइट्स आम शेयरों के मुकाबले कम होता है।
इसके बदले में कंपनियां डीवीआर के निवेशकों को आम शेयरधारकों के मुकाबले ज्यादा डिविडेंड ऑफर करती है।
आसान भाषा में समझें तो ऐसे निवेशक जो कंपनी से ज्यादा से ज्यादा रिटर्न चाहते हैं और कंपनी ते मैनेजमेंट के फैसलों को लेकर होने वाली वोटिंग में शामिल नहीं होते , उनको कंपनियां अतिरिक्त डिविडेंड के रूप में ज्यादा भुगतान कर उनके वोटिंग राइट्स का हिस्सा ले लेती हैं। इससे कंपनी और निवेशक दोनों को ही फायदा होता है।
डीवीआर की खास बात ये है कि डीवीआर आम शेयरों के मुकाबले काफी कम कीमत पर ऑफर होते हैं ऐसे में निवेशक कम रकम के साथ भी कंपनी की ग्रोथ का फायदा उठा सकते हैं।
भारत में सबसे पहले टाटा मोटर्स ने 2008 में पहला डीवीआर लॉन्च किया था। जिसके बाद गुजरात एनआरई कोक, फ्यूचर एंटरप्राइजेस और जैन इरीगेशन ने अपने डीवीआर उतारे।
टाटा मोटर्स के शेयरों के बजाय टाटा मोटर्स डीवीआर (Tata Motors DVR) में जिन निवेशकों ने पैसे लगाए उन्हें 5 फीसदी अतिरिक्त डिविडेंड मिलता है। टाटा मोटर्स का स्टॉक बीते एक साल में करीब 47 फीसदी और बीते 5 साल में 89 फीसदी बढ़ चुका है। दूसरी तरफ डीवीआर एक साल में 71 फीसदी और 5 साल में 74 फीसदी बढ़ा है। यानी ये कहा जा सकता है कि बीते एक साल में टाटा मोटर्स डीवीआर का रिटर्न टाटा मोटर्स के स्टॉक से काफी बेहतर रहा है।