देश कोरोना के नए प्रकार ओमीक्रोन की गिरफ्त में है और चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि पिछली लहरों के उलट इस बार बड़ी तादाद में बच्चों में लक्षण वाला संक्रमण देखने को मिल रहा है। ज्यादातर मामलों में संक्रमण बहुत हल्का है लेकिन दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बीमारी के गहरे लक्षण दिख रहे हैं।
इस समय चिकित्सकों के सामने दो चिंताएं हैं: पहली बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएससी) के बढ़ते मामले। यह समस्या कोविड संक्रमण होने के चार से छह सप्ताह बाद नजर आ सकती है। दूसरा, चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल बच्चों के लिए आईसीयू और गहन चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर कोई दबाव नहीं है लेकिन मामलों में बढ़ोतरी होने पर व्यवस्था पर दबाव बन सकता है। खासतौर पर बच्चों की देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारियों के अभाव में ऐसा हो सकता है।
दिल्ली के एक वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछली लहरों में जहां रोज 10 से कम संक्रमित बच्चे उनके पास आ रहे थे वहीं इस बार एक दिन उनके पास 40 संक्रमित बच्चों के मामले आए। वह कहते हैं, ‘संक्रमित बच्चों की तादाद बहुत अधिक है। बुखार, पेट की समस्या जैसे हल्के लक्षणों के साथ कई बच्चे आ रहे हैं। लक्षणों की तीव्रता दो-तीन दिन रहती है लेकिन शायद ही किसी को दाखिल करने की आवश्यकता पड़ रही है।’
बीते कुछ महीनों में सरकार ने राज्यों को दी गई सलाहों में इस बात पर जोर दिया है कि शिशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने हाल ही में कहा था, ‘केंद्र सरकार द्वारा अगस्त में घोषित 23,123 करोड़ रुपये के आपात कोविड प्रतिक्रिया पैकेज-2 का करीब आधा हिस्सा पहले ही राज्यों को जारी किया जा चुका है…इस फंड की मदद से बच्चों के लिए करीब 9,574 आईसीयू बेड तैयार किए जाएंगे।’
चिकित्सकों का दावा है कि भारत में सितंबर से ही अस्पतालों में बच्चों के बेड की तादाद सुधारने का सिलसिला जारी है। उनका यह भी कहना है कि बच्चों में कोविड 19 प्रबंधन का क्लिनिकल प्रोटोकॉल तय करने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कई चर्चाएं हुई हैं।
मुंबई के मुलुंड में स्थित फोर्टिस अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ और गहन चिकित्सा में दक्ष डॉ. जेसल सेठ कहते हैं, ‘इन प्रयासों का फल भी मिला है और हमें नहीं लगता कि शहरों में बच्चों के इलाज में बुनियादी ढांचे की कोई समस्या आएगी। बच्चों के इलाज के लिए बड़ों के बिस्तरों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। नवजातों और शिशुओं के लिए उपकरण अलग होते हैं जबकि बड़े बच्चों का इलाज बड़ों के बिस्तर पर हो सकता है।’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश भर में कोविड के इलाज के लिए 139,300 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं। इनमें से करीब 5 फीसदी यानी करीब 24,057 बिस्तर बच्चों के लिए हैं। देश के अस्पतालों में मौजूद कुल 18 लाख बिस्तरों में करीब चार फीसदी बच्चों के लिए हैं। बहरहाल कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बिना पर्याप्त कर्मचारियों के बुनियादी क्षमताएं किसी काम की नहीं।
दिल्ली स्थित फोर्टिस अस्पताल के पीडियाट्रिक्स और नियोनैटॉलजी विभाग के निदेशक राहुल नागपाल कहते हैं, ‘बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, उन्हें बच्चों की चिकित्सा में दक्ष परिचारिकाओं, चिकित्सकों की आवश्यकता होती है। वयस्कों के आईसीयू उनके लिए नहीं रोके जा सकते। ऐसा करना दु:स्वप्र साबित होगा। इस स्थिति में दूसरे लोग चिकित्सा पाने से वंचित रह जाएंगे।’ नागपाल ने कहा कि वयस्कों में यह बीमारी जहां दो-तीन दिन में निपट जाती है लेकिन दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में श्वसन की समस्या गंभीर हो सकती है।
बालरोग विशेषज्ञों की अनुशंसा है कि युवा बच्चों का टीकाकरण जल्दी से जल्दी किया जाए। दिल्ली स्थित मधुकर रेनबो हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के एसोसिएट डाइरेक्टर जनरल-पीडियाट्रिक्स नितिन वर्मा कहते हैं, ‘यदि दुनिया को सामान्य बनाना है तो एक तरीका यह है टीकाकरण सुनिश्चित किया जाए। बच्चों में टीकाकरण अहम है। कोवैक्सीन एक सुरक्षित टीका है क्योंकि इसे पारंपरिक तकनीक से बनाया गया है।’
वर्मा ने यह भी कहा कि उन्हें कोविड के बाद के प्रभाव की चिंता अधिक है। एमआईएससी की समस्या रिकवरी के चार से छह सप्ताह बाद होती है। चिकित्सकों को यह पता होना चाहिए।
नागपाल कहते हैं कि बच्चों में संक्रमण बढ़ रहा है और यह बात अमेरिका के आंकड़ों से भी सामने आती है। पिछली लहर में वहां प्रति एक लाख पर 2.5 बच्चे संक्रमित हो रहे थे जबकि इस बार यह आंकड़ा चार हो गया है।
हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल्स के पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर विभाग के प्रमुख सलाहकार सुरेश कुमार पनुगंटी कहते हैं कि पहली और दूसरी लहर में कई बच्चे संक्रमित पाए गए लेकिन वे लक्षणरहित थे। तीसरी लहर में बच्चों में लक्षण अधिक नजर आ रहे हैं।
पनुगंटी कहते हैं कि पहली लहर के दौरान एक से 10 वर्ष की उम्र के करीब चार फीसदी बच्चों को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा था जबकि 11 से 20 की उम्र में 8-10 फीसदी लोगों को भर्ती कराना पड़ा था। तीसरी लहर में भी ऐसा ही हाल रह सकता है।
हालांकि चिकित्सकों ने माना कि बच्चों में कोविड के जितने मामले रिपोर्ट हो रहे हैं, हकीकत में उससे कहीं अधिक मामले हैं। मुंबई के एक चिकित्सक के मुताबिक, ‘मोटे अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में सामने आए कोविड मामलों में करीब दो फीसदी बच्चे हैं। 11 से 20 आयुवर्ग में मामले 1-10 आयुवर्ग की तुलना में तीन गुना हैं क्योंकि ये बच्चे लोगों से ज्यादा मिलते जुलते हैं। परंतु वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक है।’ उन्होंने कहा कि बीते 15 दिनों में उनके पास जो बच्चे इलाज के लिए आए उनमें से 80 फीसदी में इन्फ्लूएंजा के लक्षण थे और वे कोविड संक्रमित पाए गए।