ब्लैक फंगस से निपटने को अस्पतालों और राज्यों ने कसी कमर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 4:27 AM IST

कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रहे देश के सामने म्यूकरमाइकोसिस ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है, जिसके मामले लगातार बढ़ रहे हैं। म्यूकरमाइकोसिस फफूंद से होने वाली संक्रामक बीमारी है, जिसे आम बोलचाल में ब्लैक फंगस कहा जाता है। इससे नासागुहा (नैजल कैविटी), साइनस, आखें और फेफड़े तक प्रभावित हो रहे हैं। कोविड-19 महामारी के बीच इस बीमारी को भी महामारी बनते देखकर राज्य सरकारें हरकत में आ गई हैं और दवा खरीदने एवं इलाज का सही तरीका तय करने की कोशिश में जुट गई हैं।
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र 1 जून से इस बीमारी के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसिन-बी की 60,000 अतिरिक्त शीशियों का इंतजाम कर रहा है। केंद्र की तरफ से अलग से दवा मुहैया कराई जा रही है। इस समय महाराष्ट्र में म्यूकरमाइकोसिस के 2,200 से अधिक मरीज हैं। दिल्ली में ऐसे मरीजों की तादाद करीब 200 है। मैक्स हेल्थकेयर के निदेशक (आंतरिक चिकित्सा) रोमेल टिक्कू ने कहा, ‘पहले शायद ही इसका कोई मामला था। लगभग सभी मामलों में मरीज मधुमेह के रोगी होते हैं। इनमें से ज्यादातर कोविड के मरीज हैं, जिन्होंने स्टेरॉयड की ज्यादा खुराक ली हैं या लंबे समय तक आईसीयू में रहे हैं। शायद वायरस का यह नया स्वरूप उन्हें ज्यादा जोखिम में डाल रहा है।’ राज्य कार्यदल इस बीमारी के कारणों की पहचान करने में जुटे हुए हैं और इसके इलाज की पद्धति तैयार कर रहे हैं।
वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और महाराष्ट्र मेंं कोविड-19 कार्यदल के सदस्य शशांक जोशी ने कहा, ‘मधुमेह, स्टेरॉयड का अत्यधिक इस्तेमाल, एंटीबायोटिक का दुरुपयोग, जिंक एवं आयरन का अधिक उपयोग और ऑक्सीजन के इस्तेमाल के समय पैदा हुई दिक्कतें इसकी वजह हो सकती हैं। हम पड़ताल कर रहे हैं।’ जोशी को यह भी लगता है कि कोविड की मौजूदा लहर में फैली वायरस की किस्म नाक की झिल्ली को नुकसान पहुंचा रही है और इसी से म्यूकरमाइकोसिस बढ़ रही है।
अस्पताल भी नई मुसीबत से लडऩे के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। दिल्ली में मैक्स हेल्थकेयर और कुछ अन्य अस्पतालों ने म्यूकर वार्ड बना दिए हैं। टिक्कू ने कहा, ‘यह बीमारी संक्रामक नहीं है मगर मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और उन्हें अन्य किसी संक्रमण से बचाने की जरूरत है।’ अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल और नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल ने कोविड और म्यूकरमाइकोसिस मरीजों की मदद के लिए गठजोड़ किया है।
म्यूकरमाइसीट्स के बीजाणु हवा में होते हैं और आम तौर पर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता इनसे बचाव करती है। कोविड के बाद रक्त में अत्यधिक शर्करा, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता, स्टेरॉयड के अत्यधिक इस्तेमाल आदि से इस संक्रमण को मरीजों में पनपने का मौका मिल रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि म्यूकरमाइकोसिस के 88 फीसदी मरीज मधुमेह से पीडि़त हैं।
इस बीमारी के लक्षणों में भयंकर सिरदर्द, ऊपर के दांत ढीले होना, आंखों के नीचे सूजन, धुंधला दिखना, आंखें घुमाने में दिक्कत, नाक से रंगीन (भूरा) पदार्थ निकलना आदि शामिल हैं। जोशी आगाह करते हैं कि कोविड के हरेक मरीज को ठीक होने के बाद सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘कोविड के बाद 3 सप्ताह से तीन महीने तक अपना ख्याल रखना खास तौर पर मुंह की साफ-सफाई का ध्यान रखना जरूरी है। व्यक्ति को रक्त शर्करा के स्तर पर नजर रखनी चाहिए। उन्हें फेफड़ों के डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए ताकि व्यक्ति स्टेरॉयड की सही खुराक ले और उसे जल्द ही कम कर दिया जाए।’
इस बीमारी से निपटने में एक चुनौती यह है कि इसमें कई चीजें एक साथ संभालनी होती हैं। बड़े अस्पतालों में यह संभव है, लेकिन छोटे नर्सिंग होम के लिए मरीजों का इलाज करना मुश्किल होता है।
चेन्नई के अपोलो अस्पताल के आंख, नाक, गला विशेषज्ञ (ईएनटी) और सिर एवं गला के सर्जन एम बाबू मनोहर ने भी कहा कि सर्जरी के लिए कई डॉक्टरों की टीम की जरूरत होती है। डॉक्टरों का कहना है किअगर मरीज बीमारी फैलने के शुरुआती चरण के दौरान ही आते हैं तब नाक और साइनस कैविटी के मृत ऊतकों को एंडोस्कोप की मदद से हटा दिया जा सकता है लेकिन इसमें देरी करने पर सर्जरी जटिल हो जाती है। मनोहर ने बताया, ‘अगर यह आंखों में फैलता है तो यह आंखों को नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में मृत ऊतक को हटाने के दौरान आंखों की पुतली भी हटाई जा सकती है।’
दिल्ली में आकाश हेल्थकेयर के वरिष्ठ डॉक्टर और एचओडी (ईएनटी), सिर एवं गला के सर्जन अभिनीत कुमार ने कहा कि हाल ही में सर्जरी के बाद एक मरीज की मौत हो गई क्योंकि उसकी बीमारी अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी और एम्फोटेरिसिन दवा आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकी थी। अस्पताल में पिछले 10 दिनों से रोजाना एक मामला जरूर देखने को मिल रहा है।
अपोलो जैसे अस्पतालों ने एम्फोटेरिसिन-बी खरीदने की कोशिशें तेज कर दी हैं। मनोहर ने कहा कि उन्होंने पारंपरिक दवा एम्फोटेरिसिन खरीद ली है और अब लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन (जो गुर्दे के लिए अपेक्षाकृत कम विषाक्त है) खरीदने की कोशिश की जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एम्फोटेरिसिन-बी की 9 लाख शीशियों का आयात किया जा रहा है। इनमें से 50,000 शीशियां मिल चुकी हैं और अगले 7 दिनों में करीब 3 लाख शीशियां उपलब्ध होंगी।’ शनिवार को रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने बताया था कि देश में म्यूकरमाइकोसिस के 8848 मरीज थे। इस आंकड़े के आधार पर सरकार ने राज्यों को एम्फोटेरिसिन की 23680 अतिरिक्त शीशियां आवंटित की थीं।’ गंगाराम अस्पताल में हाल ही में दो मरीजों की छोटी आंत में म्यूकरमाइकोसिस के दुर्लभ मामले देखने को मिले हैं। सर गंगाराम अस्पताल के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एवं लीवर ट्रांसप्लांटेशन विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर उषास्ट धीर ने कहा, ‘मरीज की छोटी आंत के पहले हिस्से में अल्सर की वजह से मुझे फंगस रोग का संदेह हुआ और मरीज का तुरंत फंगस-रोधी इलाज शुरू कर दिया गया। हमने हटाई गई आंत के हिस्से को बायोप्सी के लिए भेजा जिसमें म्यूकरमाइकोसिस की पुष्टि हुई।’
 म्यूकरमाइकोसिस आमतौर पर मस्तिष्क या फेफड़े पर असर डालता है। आंतों या जीआई म्यूकरमाइकोसिस बेहद दुर्लभ बीमारी है और आमतौर पर यह पेट या बड़ी आंत में होती है।

First Published : May 25, 2021 | 11:17 PM IST