राजस्थान व गुजरात के ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) इलाके में सौर बिजली संयंत्रों व उससे संबंधित पारेषण नेटवर्क तैयार करने को लेकर विवाद बढ़ रहा है, जो एक पक्षी क्षेत्र है।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने कहा कि मंत्रालय इस मसले पर उच्चतम न्यायालय जाने पर विचार कर रहा है। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि सौर बिजली इकाइयों से जुड़ी पारेषण लाइनें भूमिगत होनी चाहिए और मंत्रालय इस फैसले की समीक्षा चाहता है।
एमएनआरई ने इस मसले पर कानून मंत्रालय की सलाह मांगी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि मंत्रालय इस तर्क को लेकर उच्चतम न्यायाल पर जाने पर विचार कर रहा है कि जीआईबी की संख्या सौर संयंत्र लगाए जाने के पहले से ही घट रही है।
एमएनआरई के एक अध्ययन के मुताबिक पहले के उपलब्ध अनुमान के आधार पर 1966 में जीआईबी की संख्या 1,000 थी, जो 2014 में घटकर 200 रह गई और अब यह 300 है। इस अध्ययन में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) सहित कुछ एजेंसियों के उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर गणना की गई है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस इलाके में सौर बिजली इकाइयां लगने के बहुत पहले से जीआईबी की संख्या घट रही है, जो महज 5-6 साल पहले से हैं। सरकार इसके लिए तकनीकी व्यवहार्यता अध्ययन करने को भी तैयार है। भूमिगत केबल के अलावा भी कुछ विकल्प मौजूद हैं और बिजली संयंत्रों के साथ पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सकता है।’
इस साल अप्रैल में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात व राजस्थान सरकारों को निर्देश दिया था कि सौर बिजली परियोजनाओं से जुड़ी बिजली पारेषण लाइनें भूमिगत की जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने पाया था कि सभी लो वोल्टेज लाइनें (66 केवी) और इससे नीचे को जमीन के अंदर किया जाना चाहिए और हाई वोल्टेज लाइनों (130 केवी और उसके ऊपर) को भूमिगत करना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। न्यायालय ने इसके लिए एक साल वक्त दिया है।
पूर्व नौकरशाह एमके रंजीत सिंह और कॉर्बेट फाउंटेशन व राजस्थान के वन्य जीव प्रेमी पीराराम विश्नोई, गुजरात के पक्षी प्रेमी नवीन भाई बापट, कर्नाटक के वन्यजीव प्रेमी संतोष मार्टिन की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह आदेश दिया था। याचिका में कहा गया था कि जीआईबी विलुप्त होती चिडिय़ा है, ऐसे में इसके संरक्षण की कवायद की जानी चाहिए और पारेषण लाइनें भूमिगत की जानी चाहिए।
एमएनआरई के मुताबिक न्यायालय के इस फैसले से 60 गीगावॉट क्षमता की सौर बिजली परियोजनाएं प्रभावित होंगी। राजस्थान सरकार के मुताबिक इससे 95 मेगावॉट क्षमता प्रभावित होगी, जो राज्य की कुल क्षमता है।
राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमारे रिकॉर्ड के मुताबिक परियोजना स्थापित होने के बाद सोलर पैनलों या लाइनों से टकराकर सिर्फ 6 पक्षियों की मौत हुई है। इस फैसले से राजस्थान की सौर ऊर्जा क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। जमीन का मसला बड़ा है। हम जीआईबी को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो हमारे राज्य के निवासी हैं, लेकिन फैसले में प्राथमिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं, न कि क्षमता वाले क्षेत्र।’ वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि राजस्थान राज्य सरकार विभिन्न कानूनी व प्रशासनिक विकल्प तलाश रही है, जिससे उच्च लागत से परियोजना डेवलपरों को बताया जा सके। मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि अगर पारेषण को भूमिगत किया जाए तो परियोजना डेलवपरों पर 1.5 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
नैशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन आफ इंडिया (एनएसईएफआई), जिसमें न्यायालय के फैसले से प्रभावित कुछ डेवलपर भी शामिल हैं, जीआईबी को बचाने के लिए विकल्पों को तलाश रहा है। इसमें बर्ड डाइवर्टर्स, एरियल बंच केबल, लाइन मार्कर आदि शामिल हैं। कुछ विकल्पों पर एमएनआरई ने विचार किया है, जिसे समीक्षा याचिका में शामिल किया जाएगा। एनएसईएफआई के मुख्य कार्याधिकरी सुब्रमण्यन पुलिपका ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि उन्होंने 52 केस स्टडी की समीक्षा की है, जो 30 देशों में हुई हैं। इससे यह जानने की कवायद की गई है कि पक्षियों को तार से टकराने से रोकने के लिए क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं।