दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र के रहने वाले अब्दुल्ला (18 वर्ष) को हाल ही में सांस लेने में समस्या हुई और अचेत हो जाने पर उन्हें सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया। कोविड की आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट नकारात्मक आई और उनके शरीर में अस्वाभाविक रूप से अधिक एंटीबॉडी पाई गईं। चिकित्सकों ने उन्हें कोविड के उपरांत होने वाली हृदय संबंधी दिक्कत-मायोकार्डिटीज होने का संदेह जताया और पाया कि उनका दिल धड़कना बंद कर रहा था। चिकित्सकों के अनुसार कोविड के गंभीर संक्रमण के बाद 35 से 87 फीसदी मरीजों में घबराहट, थकान और व्यायाम की कमी जैसी समस्याएं बनी रहती हैं और कई लोग दिल के तेज धड़कने या अल्प रक्तचाप की शिकायत कर सकते हैं लेकिन हृदयगति रुक जाने के मामले दुर्लभ हैं। सर गंगाराम अस्पताल के हृदय रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक अश्वनी मेहता कहते हैं, ‘ऐसा बहुत कम होता है कि कोविड, संक्रमण हृदय संबंधी दिक्कतें पैदा कर दे। यह जटिलता जानलेवा हो सकती है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।’
कुछ दिन के उपचार के बाद अब्दुल्ला घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर के बाद कोविड से उबरे मरीजों में अधिक जटिलताएं देखने को मिल रही हैं। कुछ चिकित्सकों का कहना है कि इस बार युवाओं के संक्रमण के मामले ज्यादा देखने को मिले।
देश भर के अस्पतालों ने कहा कि उनके यहां भर्ती मरीजों में से अधिकांश कोविड के बाद की जटिलताओं से दो-चार हैं। अस्पतालों में मरीजों की दो श्रेणियां हैं- पहले वे मरीज जो कोविड के कारण गंभीर होकर पहले से अस्पताल में दाखिल हैं और उनकी जांच नकारात्मक हो जाने के बावजूद उनमें कोविड संबंधी जटिलताएं उत्पन्न हो रही हैं। वहीं दूसरी श्रेणी ऐसे मरीजों की है जो घर पर या छोटे नर्सिंग होम में रह कर ठीक होने के पश्चात अब कोविड के बाद की जटिलताओं के इलाज के लिए बड़े अस्पतालों में दाखिल हो रहे हैं। मुंबई में एक शीर्ष अस्पताल शृंखला के प्रशासक कहते हैं, ‘हमारे यहां रोज छोटे अस्पतालों से मरीजों को भेजा जा रहा है। ऐसे मरीज पूछताछ करते हैं जो कहते हैं कि उन्हें कोविड बेड की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे हाल ही में कोविड से उबरे हैं।’ उन्हें लगता है कि छोटे अस्पताल कोविड के उपरांत होने वाली समस्याओं के उपचार में सक्षम नहीं हैं और यही वजह है कि इन बड़े अस्पतालों में मरीजों को भर्ती कराने की मांग बढ़ी है।
कोविड के मरीजों की तादाद लगातार घट रही है। मुंबई स्थित ङ्क्षहदुजा अस्पताल में महज 30 फीसदी कोविड बेड भरे हैं जबकि 72 फीसदी गैर कोविड बेड पर मरीज हैं।
ग्लोबल अस्पताल के चेस्ट फिजीशियन हरीश चाफ्ले भी इसी दिशा में संकेत करते हुए कहते हैं कि अब उनके अस्पताल में कोविड मामलों से ज्यादा गैर कोविड के बाद की परेशानियों वाले मरीज आ रहे हैं। अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों में करीब 50 फीसदी कोविड उपरांत की जटिलताओं के शिकार हैं।
अस्पताल अब कोविड के बाद की दिक्कतों के कारण भर्ती होने वाले मरीजों के लिए समर्पित आईसीयू पर विचार कर रहे हैं। मुंबई के मुलुंड स्थित फोर्टिस अस्पताल के क्रिटिकल केयर विभाग के निदेशक राहुल पंडित कहते हैं कि अस्पताल ऐसे मरीजों के लिए 10-12 बिस्तरों वाले अलग आईसीयू की स्थापना पर विचार कर रहा है ताकि उनकी व्यवस्थित निगरानी हो सके।
क्या दूसरी लहर मेंं कोविड के बाद की दिक्कतें अधिक हो रही हैं?
कम से कम चिकित्सकों को तो ऐसा ही लग रहा है। चूंकि इस बार कोविड संक्रमण के मरीज ज्यादा हैं इसलिए कोविड के बाद वाली दिक्कतों के मरीज भी अधिक हैं। परंतु दूसरी लहर के दौरान दो और बातों ने भी अहम भूमिका निभाई।
हैदराबाद स्थित यशोदा अस्पताल में श्वसन संबंधी मामलों के विशेषज्ञ चतन राव वाद्देपल्ली कहते हैं, ‘अस्पतालों में बिस्तरोंं के अभाव के चलते कई मरीजों ने घर पर इलाज लिया। घर पर संक्रमण रोकने के इंतजाम उतने प्रभावी नहीं होते।’ इतना ही नहीं कई मरीजों को स्टेरॉयड भी दिए गए जिससे दूसरी तरह का संक्रमण हुआ।
मैक्स हेल्थकेयर के एक प्रवक्ता ने कहा कि हालांकि हर मरीज का स्वतंत्र आकलन करना जरूरी है लेकिन कई मामलों में पूरे परिवार ने एक जैसी दवाएं खाईं। लोगों ने चिकित्सकों की सलाह नहीं मानी और खुद दवाई ले ली। कई लोगों ने ऐसी दवा लीं जो बिल्कुल नहीं लेनी थीं। इससे भी दिक्कत पैदा हुई।
संक्रामक बीमारियां कमजोर करती हैं और एक बार कोविड समाप्त होने के बाद भी शरीर पूरी तरह ठीक नहीं होता। हल्के संक्रमण के मामलों में सरदर्द, कमजोरी, थकान, स्वाद न रहना और अवसाद होना आम है। गंभीर मामलों में या लंबे समय तक बाहरी मशीनों के सहारे रहने वाले लोगों में सांस की तकलीफ जैसी दिक्कतें आ रही हैं। हल्के लक्षण वाले कई मरीज भी कम बुखार, छाती में बार-बार संक्रमण, मूत्र संबंधी संक्रमण आदि की शिकायत कर रहे हैं। चिकित्सकों को हृदय संबंधी तकलीफ भी देखने को मिल रही हैं। इसक अलावा फंगस और बेलगाम मधुमेह की दिक्कत भी सामने आ रही है। वाद्देपल्ली के अनुसार कोविड से ठीक होने वाले कुछ मरीजों में टीबी की शिकायत भी सामने आई है।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में पल्मनॉलजी के निदेशक डॉ. मनोज गोयल कहते हैं कि यह बीमारी किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। उनका कहना है कि यह लहर बहुत खतरनाक रही है और करीब करीब 70 फीसदी मरीज कोविड के बाद की दिक्कतों से निजात पाने अस्पताल आ रहे हैं। कई मरीज ऐसे हैं जिन्हें हालत गंभीर होने के बाद भी अस्पताल में चिकित्सा नहीं मिल सकी और उन्हें घर पर इलाज कराना पड़ा। ऐसे मरीज भी फेफड़ों या ऊतकों की समस्या के साथ अस्पताल आ रहे हैं। गोयल कहते हैं कि वायरस का नया स्वरूप भी ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है।
अस्पतालों में गैर कोविड मरीजों की तादाद भी बढ़ रही है। हालांकि अभी उनका स्तर कोविड के पहले के समय जैसा नहीं हुआ है। मैक्स हेल्थकेयर जैसे अधिकांश अस्पतालोंं में अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देेशों से कैंसर, हृदय रोग, न्यूरो और स्पाइन की दिक्कतों के मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। अंग प्रत्यारोपण के मरीज भी अस्पताल पहुंच रहे हैं।
उन जगहों पर गैर कोविड मरीज ज्यादा अस्पताल जा रहे हैं जहां कोविड के मामले कम हुए हैं। फोर्टिस हेल्थकेयर के समूह सीओओ अनिल विनायक कहते हैं, ‘मरीजों ने बड़ी तादाद में अपनी शल्य चिकित्सा टाली लेकिन अब हालात पहली लहर की तुलना में बेहतर हैं। कुछ अस्पतालों में हमने आईसीयू बेड बढ़ाए हैं ताकि कोविड के बाद की समस्या वाले और गैर कोविड मरीजों को सुविधा मिल सके।’