सरकार देश के दूरदराज के इलाकों में कोविड जांच की सुविधा का विस्तार करने की योजना बना रही है। बड़े शहरों से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों के अपने गांव लौटने के मद्देनजर सरकार इस दिशा में विचार कर रही है। सूत्रों के अनुसार दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला स्थानीय लैबों को अद्यतन करना और बड़ी डायग्नॉस्टिक शृंखला के साथ साझेदारी की अनुमति देना। दूसरा देश भर के मेडिकल कॉलेजों में आरटी-पीसीआर मशीन तैनात करना।
अभी जितनी प्रयोगशालाओं को मंजूरी दी गई हैं, उनमें से अधिकांश बड़े शहरों या विकसित जिलों हैं। भारत में प्रतिदिन तकरीबन 1.40 लाख कोविड जांच की जा रही है लेकिन इनमें से ज्यादातार जांच शहरी केंद्रों में हो रहे हैं। बड़ी डायग्नॉस्टिक कंपनियों के पास भी प्रत्येक राज्य में उच्च स्तरीय प्रयोगशालाएं नहीं हैं।
उदाहरण के तौर पर मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर असम, झारखंड और दिल्ली में कोविड-19 के नमूनों का प्रसंस्करण करती है। यहां से नमूने बड़ी लैब में भेजे जाते हैं। लेकिन मरीज को जांच रिपोर्ट मिलने में 72 घंटे से भी अधिक का वक्त लग जाता है। मेट्रोपोलिस की प्रवर्तक एवं प्रबंध निदेशक अमीरा शाह ने कहा कि अगर नमूने को लाने के लिए उड़ान की कनेक्टिविटी बढ़ाई जाती है तो रिपोर्ट कम समय में मिल सकती है। लॉकडाउन में ढील दिए जाने से छोटे शहरों और गांवों में भी जांच की सुविधा का विस्तार करना जरूरी हो गया है। ऐसे में सभी राज्यों में आरटी-पीसीआर मशीन होनी चाहिए। सभी राज्यों में किसी भी डायग्नॉस्टिक शृंखला के पास आरटी-पीसीआर मशीनें नहीं हैं। ये मशीनें नई दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलूरु, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में हैं। शाह ने कहा कि असम, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान आदि राज्यों को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वहां पीसीआर टेस्टिंग लैब्स नहीं हैं।
यहां तक कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी डायग्नॉस्टिक शृंखला के पास आरटी-पीसीआर जांच लैब नहीं हैं। आरटी-पीसीआर का इस्तेमाल एचआईवी, हेपेटाइटिस, यक्ष्मा, डेंगू आदि की जांच में होता है। शाह ने कहा कि आरटी-पीसीआर लैब लगाने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और एनएबीएल से मंजूरी मिलने में ही एक से दो माह का वक्त लग जाता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल राष्ट्रीय डायग्नॉस्टिक शृंखलाओं को नमूना संग्रह के लिए स्थानीय प्रयोगशालों के साथ साझेदारी करने की अनुमति नहीं दी गई है। लेकिन सरकार अब इस तरह की साझेदारी की अनुमति देने पर विचार कर रही है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द जांच रिपोर्ट के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्री ने प्रखंड स्तर पर जांच प्रयोगशाला खोलने की बात कही है। हम उद्योग निकायों के साथ इस दिशा में बात कर रहे हैं।’ विशेषज्ञों के अनुसार अगर सरकार बड़ी प्रयोगशालाओं को छोटे जिलों में तेजी से विस्तार की अनुमति देती है तो नमूना संग्रह स्थानीय प्रयोगशालाओं द्वारा कराने की जरूरत होगी। तकनीशियन को इसके लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
नेटहेल्थ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरीश महाजन ने कहा कि इस तरह की साझेदारी की अनुमति होनी चाहिए और स्थानीय प्रयोगशालाओं को नमूना संग्रह करने की मान्यता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एनएबीएल प्रयोगशालाओं को मान्यता देने के लिए जोरशोर से काम कर रही है। उनके दिल्ली लैब को आरटी-पीसीआर मशीन के लिए आवेदन के एक हफ्ते के अंदर मंजूरी दे दी गई। इसके अलावा सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों से नमूना संग्रह कराने और उन्हें निजी जांच लैब को भेजने पर भी विचार किया जा रहा है। लेकिन इसमें भी प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी। घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सरकार देश भर के मेडिकल कॉलेजों में आरटी-पीसीआर मशीन लगाने पर भी विचार कर रही है। इसके पीछे छात्रों को पैथेलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के बारे में प्रशिक्षण देना भी है। इसे निजी-सार्वजनिक साझेदारी में लगाया जा सकता है और निजी कंपनियां इसका इस्तेमाल नमूने की जांच में कर सकती हैं।