अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप | फाइल फोटो
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवा कंपनियों का सबसे बड़ा भय सच साबित होती दिख रहा है। अमेरिका में रहने वाले दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अमेरिकी कंपनियों को अपने प्रौद्योगिकी से जुड़े कार्यों को आउटसोर्स करने से रोकना चाहते हैं। ऐसा करने का इससे खराब समय और कुछ नहीं हो सकता था, क्योंकि वृहद आर्थिक माहौल कमजोर रहने और शुल्कों के कारण कंपनियां लगातार दो साल से कम एक अंक में वृद्धि के दबाव में हैं। इसने विनिर्माण और खुदरा उद्योगों की कमर तोड़कर रख दी है।
एक आईटी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘देश और आईटी उद्योग के प्रति हाल ही में वीजा और आव्रजन संबंधी मसले हमारे लिए कोई बड़ी चिंता की बात नहीं थी, क्योंकि उद्योग अब वीजा से आगे बढ़ चुका है और अब बड़े पैमाने पर स्थानीय नियुक्तियां की जा रही हैं। हमें यही डर था कि अगर अमेरिकी कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ कम काम करने के लिए कहा गया तब क्या होगा।’
आईटी आउसोर्सिंग के लिहाज से अमेरिका सबसे बड़े बाजार में से एक है और भारतीय कंपनियों के लिए यह वह क्षेत्र है, जहां से उनकी आमदनी की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। उद्योग के एक अन्य दिग्गज ने कहा, ‘उद्योग जगत के लिए यह रुक कर देखने का समय है। उद्योग जगत इन मुद्दों पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता है। कराधान के मसले वे कैसे कर लगाने की योजना बनाते हैं, यह आसान नहीं होगा। वे इसे किस प्रकार कैसे पूरा करना चाहते हैं।’ ट्रंप की एक करीबी समर्थक लारा लूमर ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा कि राष्ट्रपति ऐसा करने का सोच रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘राष्ट्रपति ट्रंप अब अमेरिकी आईटी कंपनियों को अपना काम भारतीय आईटी कंपनियों को आउटसोर्स करने से रोकने पर विचार कर रहे हैं। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो, अब आपको अंग्रेजी के लिए 2 दबाने की जरूरत नहीं है। कॉल सेंटरों को फिर अमेरिकी बनाएं!’
लूमर ने शनिवार को फिर लिखा, ‘मैं राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति से बात करने के लिए अंग्रेजी के लिए 2 दबाने के दिनों को खत्म करने के लिए काफी उत्साहित हूं, जो अंग्रेजी नहीं बोलता है।’
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग 282 अरब डॉलर का है और यह बीते तीन दशकों से देश के निर्यात में मुख्य रूप से योगदान देता रहा है। इसके अलावा, एच-1बी वीजा के लिए भी अमेरिका के दक्षिणपंथियों के निशाने पर है। उनका आरोप है कि प्रौद्योगिकी कंपनियां जिन भारतीयों को अमेरिका लाती है, वे अमेरिका के कामगारों की नौकरी छीन लेते हैं, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।