तेल बाजार में एक दिलचस्प बदलाव हो रहा है। दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक सऊदी अरब अब अपनी बिजली जरूरतें पूरी करने के लिए तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा (Renewables) की ओर बढ़ रहा है, जिससे घरेलू तेल खपत घटेगी और निर्यात बढ़ेगा। पहले, सऊदी अरब में गर्मियों की तेज गर्मी में बिजली बनाने के लिए बड़ी मात्रा में क्रूड ऑयल और फ्यूल ऑयल जलाया जाता था। देश की करीब 25-30% तेल खपत सिर्फ पावर प्लांट्स में होती थी। अब सरकार ने 2030 तक 130 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा लगाने का लक्ष्य रखा है, जो भारत में मौजूदा सोलर पावर क्षमता के बराबर है। अगर यह योजना सफल होती है तो आने वाले पांच सालों में दुनिया में तेल की मांग में सबसे बड़ी गिरावट यहीं से आ सकती है।
सऊदी अरब में बड़े प्रोजेक्ट्स के पूरे होने को लेकर अक्सर संदेह रहा है, क्योंकि कई मेगा प्रोजेक्ट अधूरे हैं। लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा में अब तेजी से काम हो रहा है। 2024 से अब तक ACWA Power, जो देश की सबसे बड़ी बिजली और पानी कंपनी है, ने 4.9 गीगावॉट सोलर प्रोजेक्ट शुरू किए हैं और अगले साल के अंत तक इतना ही और जोड़ने का लक्ष्य है। हाल ही में कंपनी ने 15 गीगावॉट के नए प्रोजेक्ट के लिए भी सौदे किए हैं, जो 2028 तक पूरे होंगे। ACWA का लक्ष्य है कि 2030 तक 78 गीगावॉट क्षमता हासिल की जाए। यह उतनी बिजली है जितनी सऊदी ने पिछले साल तेल से बनाई थी।
सऊदी अरामको के प्रमुख अमीन नासर के अनुसार, अगर घरेलू बिजली उत्पादन से तेल हटा दिया जाए तो उतना ही फायदा होगा जितना नए कुएं खोदने से होता है। इसका मतलब है कि ज्यादा तेल निर्यात के लिए उपलब्ध होगा। सऊदी अरब की ग्रिड में जितना तेल इस्तेमाल होता है, उतना भारत के सभी वाहन (कार और स्कूटर) मिलकर भी नहीं जलाते। अगर 2030 तक यह खपत खत्म हो गई, तो वैश्विक तेल बाजार में सप्लाई का दबाव और बढ़ सकता है और कीमतों पर असर पड़ेगा। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)