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कर्ज पर सांस ले रही पाक की अर्थव्यवस्था

ऋण लौटाने में चूक के खतरे से बचने के लिए पड़ोसी देश एक बार फिर आईएमएफ की शरण में

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शिखा चतुर्वेदी   
बीएस संवाददाता   
Last Updated- May 13, 2025 | 9:19 AM IST

पाकिस्तान इस वक्त बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और बाहरी आर्थिक स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता के बीच हिचकोले खाती अपनी अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है।

भारत इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को लगातार कहता रहा है कि वे पाकिस्तान को ऋण देने के फैसले पर विचार करें। भारत का कहना है कि पाकिस्तान अपने यहां आतंकवाद को पनाह देता रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि वह खुद आतंकवाद का शिकार है और उसके यहां आतंकवादियों को संरक्षण नहीं मिल रहा है। दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान में आर्थिक प्रबंधन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से उसे लगातार मिल रही वित्तीय मदद पर सवाल उठने लगे हैं।

पाकिस्तान के लिए भू-राजनीतिक तनाव ऐसे समय में खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं जब वह माली तौर पर बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। हालांकि, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार जरूर हुआ है मगर इसकी बुनियाद काफी कमजोर लग रही है। वित्त वर्ष 2024 (जुलाई-जून) में पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 337.08 अरब डॉलर के स्तर पर था और सामान्य सरकारी घाटा सकल जीडीपी के 70.1 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया।

वित्त वर्ष 2025 तक ऋण जीडीपी के 73.6 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया था। इसमें 9 मई को आईएमएफ द्वारा मंजूर 2.4 अरब डॉलर के ऋण (वित्तीय संकट से उबारने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए मिली रकम सहित) जोड़ दें तो कर्ज और खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है।

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पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी कम हो गया है। तेल आयात पर भारी भरकम खर्च, सीमित निर्यात और औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों में ढांचागत दिक्कतों को कारण पाकिस्तान पर दबाव काफी बढ़ गया है। कर्ज लौटाने में चूक के खतरे से बचने के लिए वह एक बार फिर आईएमएफ की शरण में गया है। सितंबर 2024 में आईएमएफ ने  37 महीने की अवधि के 5.32 अरब विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) सुविधा दी थी।

इसके तहत पाकिस्तान के लिए 7 अरब डॉलर का प्रावधान किया गया था। इस रकम में लगभग 1 अरब डॉलर का आवंटन 2024 में किया गया था और मई में फिर 1 अरब डॉलर राशि मंजूर की गई है। इस तरह, वर्ष 2008 से 2025 तक पाकिस्तान को 16 अरब एसडीआर से भी अधिक आवंटित हो चुके हैं। यह इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान बाहरी वित्तीय सहायता पर किस कदर निर्भर रहा है।

पाकिस्तान को हाल में आवंटित रकम के साथ आईएमएफ ने 28 महीने की अवधि की जलवायु लचीलापन कार्यक्रम के रूप में 1.4 अरब डॉलर की रकम भी दी है। आईएमएफ जलवायु परिवर्तन के खतरे से जूझ रहे देशों के लिए खास तौर पर ऐसे उपाय कर रहा है। हालांकि, ये सभी रकम कुछ शर्तों के साथ आई हैं जिनमें ऊर्जा पर सब्सिडी में कमी, सरकार नियंत्रित उद्यमों में सुधार और कमजोर कर आधार में सुधार शामिल हैं।

भारत ने 9 मई को पाकिस्तान को आईएमएफ की तरफ से मंजूर ऋण का कड़ा विरोध किया है। भारत आईएमएफ बोर्ड की बैठक में मतदान के दौरान अनुपस्थित होकर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर चुका है। भारत ने खुद 1991 के बाद आईएमएफ से ढांचागत समायोजन ऋण नहीं लिया है।

पाकिस्तान में हाल में मुद्रास्फीति मई 2023 में दर्ज 38 प्रतिशत के भारी भरकम स्तर से कम होकर अब एक अंक में आ गई है। जीडीपी वृद्धि दर भी 2024 में 2.4 प्रतिशत दर से आगे बढ़ी है जिसमें 2023 में 0.6 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई थी। इन सकारात्मक सुधारों के बावजूद पाकिस्तान में ढांचागत असंतुलन साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। उस पर 2024 में 130 अरब डॉलर से अधिक बाहरी कर्ज था जिनमें 22 प्रतिशत चीन से आया था जो इसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत मिले थे।

पाकिस्तान की कमजोर माली हालत इसके लिए कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान 1958 से ही आईएमएफ से कर्ज लेता रहा है। 1947 में भारत से अलग होने के बाद उसने पहली बार 1958 में आईएमएफ से कर्ज लिया था। 1965 और 1971 में भारत के साथ युद्ध होने के बाद पाकिस्तान की हालत और कमजोर हो गई और बाहरी आर्थिक मदद पर इसकी निर्भरता बढ़ती चली गई। 1980 के दशक से लेकर 2000 के दशक में वहां की एक के बाद एक सरकार (लोकतांत्रिक एवं फौजी हुकुमत) ने ढांचागत समायोजन कार्यक्रमों के लिए समझौते किए। इन समझौतों की मुख्य शर्तों में उदारीकरण और व्यय कम करने के उपाय शामिल थे। हालांकि, कमजोर संस्थान और भ्रष्टाचारों के कारण इन समझौते के अधिक लाभ नहीं मिल पाए।

वर्ष 2007 तक पाकिस्तान पर बाहरी कर्ज बढ़कर 43 अरब डॉलर तक पहुंच गया और सितंबर 2001 में अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के बाद उत्पन्न हालात में उधारी पर उसकी निर्भरता बढ़ती गई। 2008-10 के दौरान पाकिस्तान को क्रमशः 2.07 अरब, 2.10 अरब और 1.06 अरब एसडीआर मिले। कोविड महामारी के दौरान भी यह बाहर से कर्ज लेता रहा। 2019 में उसे 1.04 एसडीआर, 2020 में 1.02 अरब एसडीआर और 2022 में 1.64 एसडीआर मिले।

आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो यह एक ऐसे कुचक्र की तरफ इशारा करता है जिसमें कर्ज मिलने के बाद व्यय बढ़ने लगा और आर्थिक वृद्धि कमजोर होने लगी। सामान्य सरकारी कर्ज जीडीपी का लगभग 75 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने और सुधारों की गुंजाइश अधिक नहीं होने से पाकिस्तान में आर्थिक ठहराव लंबे समय तक जारी रहने का खतरा बढ़ गया है। सरकारी तंत्र, नियामकीय एवं औद्योगिक ढांचे में सुधार के बिना पाकिस्तान  की आर्थिक स्थिति में सुधार संभव नहीं दिख रहा है।

पाकिस्तान को भारत के साथ संघर्ष विराम का निश्चित रूप से पालन करना चाहिए क्योंकि इससे इस्लामाबाद अपने संसाधनों को विकास के कार्यों पर खर्च कर पाएगा।
First Published : May 13, 2025 | 9:19 AM IST