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नासा ने मंगल ग्रह पर ‘मकड़ियों’ जैसे रहस्यमयी ढांचों को लेकर हासिल की बड़ी कामयाबी, वैज्ञानिक उत्साहित

नासा ने मंगल की रहस्यमयी 'मकड़ियों' के ढांचों को धरती पर दोबारा बनाया

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सुदीप सिंह रावत   
Last Updated- September 19, 2024 | 3:59 PM IST

नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की सतह पर पाए जाने वाले काले ‘मकड़ियों’ जैसे अजीब ढांचों को फिर से बनाने में सफलता पाई है। यह वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है, जिससे अब वे इन रहस्यमयी संरचनाओं के बारे में और अधिक जानकारी जुटा सकेंगे।

इन भू-आकृतियों को ‘अरैनीफॉर्म टेरेन’ कहा जाता है और इन्हें ‘मंगल की मकड़ियां’ नाम दिया गया है। ये संरचनाएं दरारों जैसी होती हैं और इनमें सैकड़ों रेखाएं होती हैं। ये ढांचे 3,300 फीट (1,000 मीटर) तक फैल सकते हैं और अंतरिक्ष से देखने पर ऐसा लगता है मानो सैकड़ों मकड़ियां मंगल की सतह पर दौड़ रही हों।

2003 में मंगल ग्रह के ऑर्बिटर्स ने पहली बार इन ‘मकड़ियों’ को देखा था, जो उस समय एक रहस्य बना हुआ था। बाद में यह पता चला कि ये संरचनाएं तब बनती हैं जब मंगल की सतह पर मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की बर्फ अचानक गैस में बदल जाती है।

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को प्रयोगशाला में छोटे पैमाने पर दोहराया। इस प्रयोग का नेतृत्व नासा की जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) की वैज्ञानिक लॉरेन मैक कीओन ने किया, जिन्होंने पांच साल तक इस पर काम किया। जब आखिरकार वे सफल हुईं, तो वह पल उनके लिए बेहद खास था।

मैक कीओन ने कहा, “जब प्रयोग सफल हुआ, तो मैं इतनी उत्साहित हो गई कि लैब मैनेजर मेरे चिल्लाने की आवाज़ सुनकर दौड़कर अंदर आए। उन्हें लगा कि कोई दुर्घटना हो गई है।”

इस अध्ययन के तहत मंगल की मिट्टी का सिमुलेशन कर उसे CO2 की बर्फ से ढक दिया गया और फिर उसे एक लैंप से गर्म किया गया, ताकि सूर्य की गर्मी का प्रभाव दोहराया जा सके। कई प्रयासों के बाद सही परिस्थितियां मिलीं और बर्फ में दरारें पड़ने लगीं। अंततः CO2 पूरी तरह से गायब हो गई और एक ‘मंगल की मकड़ी’ का निर्माण हुआ।

एक और अध्ययन में कीफर मॉडल का एक नया पहलू सामने आया, जिसमें पता चला कि जमीन के अंदर भी बर्फ बनती है, जिससे वह भी फट जाती है। इससे मकड़ियों के पैरों के ज़िग-ज़ैग आकार का रहस्य सुलझ सकता है।

JPL की वैज्ञानिक सेरीना डिनिएगा ने कहा, “यह दिखाता है कि प्रकृति वैसी नहीं होती जैसी किताबों में पढ़ाई जाती है, बल्कि उससे ज्यादा जटिल होती है।”

इन ‘मंगल की मकड़ियों’ के रहस्य को और बेहतर तरीके से समझने के लिए और अधिक शोध की योजना बनाई जा रही है। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि ये संरचनाएं मंगल के कुछ हिस्सों में ही क्यों बनती हैं और हर साल इनकी संख्या में वृद्धि क्यों नहीं होती।

First Published : September 19, 2024 | 3:59 PM IST