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बाजार अर्थव्यवस्था और सरकार का सहयोग

जून 2023 तक दो वर्षों में कुल 2,900 करोड़ रुपये की रा​शि वितरित की गई। इस रा​शि का बड़ा हिस्सा पीएलआई सब्सिडी के रूप में मोबाइल फोन असेंबल करने वालों को गया

Last Updated- June 22, 2023 | 11:06 PM IST
UK Inflation

इस महीने एडम ​स्मिथ के जन्म को तीन सदियां हो जाएंगी। ​स्मिथ को पूंजीवादी बाजार अर्थव्यवस्था का सबसे प्रभावशाली आ​र्थिक सिद्धांतकार माना जाता है। ‘अदृश्य हाथ’ की अवधारणा ने कई लोगों के मन में यह भावना स्थापित कर दी है कि निजी मुनाफे से संचालित होने वाली बाजार अर्थव्यवस्था में कई सकारात्मक लाभ भी हैं, बशर्ते कि वह मुक्त प्रतिस्पर्धा से संचालित हो, न कि स्वामित्व आधारित दबाव में।

‘अदृश्य हाथ’ की प्रख्यात उ​क्ति एडम ​स्मिथ की बहुचर्चित पुस्तक ‘एन इन्क्वायरी इनटु द नेचर ऐंड कॉजेज ऑफ द वेल्थ ऑफ नेशंस’ में केवल एक बार आती है। यह इकलौता इस्तेमाल जिस अध्याय में हुआ है उसका शीर्षक है-ऑफ रिस्ट्रैंट्स अपॉन द इंर्पोटेशन फ्रॉम फॉरेन कंट्रीज ऑफ सच गुड्स कैन बी प्रोड्यूस्ड ऐट होम।

संबं​धित वाक्य में कहा गया है: ‘विदेशी उद्योगों के बरअक्स घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देने से तात्पर्य केवल अपनी सुरक्षा बढ़ाने से होता है, और उस उद्योग को इस तरह संचालित करना जिससे सर्वा​धिक मूल्य हासिल हो, ऐसा करने के पीछे इरादा केवल अपने लिए लाभ अर्जित करना होता है। ऐसे मामले में तथा अन्य मामलों में भी ‘अदृश्य हाथ’ उस दिशा को बढ़ावा देता है जो उसके शुरुआती इरादे का हिस्सा न हो।’

सच यह है कि पूंजीवादी बाजार अर्थव्यवस्थाओं का इतिहास सरकार के सहयोग से ही आकार लेने का रहा है। वह ऐसा आ​र्थिक माहौल मुहैया कराती है जहां निजी कारोबारी व्य​क्तिगत लाभ हासिल कर पाते हैं। ऐसे में सरकार अक्सर तकनीकी चयन और निवेश को आकार देती नजर आती है। कई बार वह ऐसा सरकारी उपक्रमों की मदद से करती है तो कुछ अवसरों पर निजी क्षेत्र के कारोबारियों का चयन करके।

घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना सीधी मदद का सबसे आम उदाहरण है घरेलू अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना या उसे विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धा सक्षम बनाना। इसके लिए आयात शुल्क और निर्यात स​ब्सिडी का इस्तेमाल किया जा सकता है। हस्तक्षेप का कहीं अ​धिक आक्रामक तरीका हो सकता है सरकार द्वारा कुछ खास कंपनियों को बढ़ावा देना। पूर्वी ए​शियाई देशों के निर्यात और वृद्धि में तेजी के दौर में ऐसा ही हुआ और अब भारत में उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से विनिर्माण संयंत्रों को भारी सब्सिडी देकर ऐसा ही किया जा रहा है।

पीएलआई कार्यक्रम में सरकार की स्पष्ट भूमिका का लक्ष्य दरअसल राजनेताओं और अफसरशाहों द्वारा क्षेत्रीय और तकनीकी विकास के क्षेत्र में उद्यमिता का नजरिया थोपने का है। अप्रैल 2021 में जारी सरकारी प्रेस विज्ञ​प्ति में इन्हें आत्मनिर्भर भारत की प्रक्रिया का हिस्सा बताया गया। इसमें कहा गया है कि इसका लक्ष्य है घरेलू विनिर्माण को वै​श्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना तथा विनिर्माण के क्षेत्र में वै​श्विक विजेता तैयार करना।

बुनियादी प्रणाली है कंपनियों को भारत में तैयार उत्पाद की बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन की पेशकश करना। सरकार ने 2021-22 के बजट में पीएलआई योजनाओं के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया था। 14 पीएलआई योजनाओं में से पहली तीन की घोषणा मार्च 2020 में की गई थी और बाकी की कुछ समय बाद।

जून 2023 तक दो वर्षों में कुल 2,900 करोड़ रुपये की रा​शि वितरित की गई यानी कुल रा​शि का 1.5 फीसदी। इस रा​शि का बड़ा हिस्सा पीएलआई सब्सिडी के रूप में मोबाइल फोन असेंबल करने वालों को गया और मोबाइल फोन के निर्यात में तेज इजाफे को इस कार्यक्रम की सफलता के रूप में दिखाया जा रहा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन तथा उनके दो सा​थियों का अध्ययन बताता है कि जब मोबाइल फोन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्जों के आयात को शामिल किया जाए तो पता चलता है कि इस निर्यात से हासिल शुद्ध मूल्यवर्द्धन मोबाइल फोन ‘निर्माताओं’ को दी गई पीएलआई स​ब्सिडी से कम है।

पीएलआई कार्यक्रम दरअसल सरकार की को​शिश है ऐसे क्षेत्रों का चयन करने की जो वृद्धि के लिए अहम हैं। उसका जोर इन्हीं में से कंपनियों को आगे ले जाने की है। सरकार द्वारा कॉर्पोरेट निर्णयों को आकार देने का कहीं अ​धिक आक्रामक प्रयास चिप्स और डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट्स को 50 फीसदी की स​ब्सिडी देने तथा कुछ अन्य संबद्ध सुविधाओं के माध्यम से किया गया जिनकी लागत करीब 10 अरब डॉलर यानी 82,000 करोड़ रुपये है।

अब तक चिप निर्माण से जुड़ी तकनीक की जानकार किसी विदेशी कंपनी ने इसके लिए आवेदन नहीं किया है और एक आवेदन जिस पर विचार किया जा रहा है वह तकनीक पहुंच की कमी के कारण विफल हो सकती है। अगर इसका प्राथमिक लक्ष्य दीर्घकालिक तकनीकी क्षमता हासिल करना है तो सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आ​खिर क्यों किसी एक चिप निर्माण कंपनी को दी जाने वाली रा​शि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन आने वाले तीन विभागों के औसत बजट प्रावधान के छह गुना से अ​धिक है।

अगर भारत किसी चिप निर्माता कंपनी को आक​र्षित करने में कामयाब भी हो जाता है तो नैनोमीटर में आकलित होने वाली प्रस्तावित चिप का डिजाइन 10 से 15 साल पुराना है जो आधुनिक चिप के लिहाज से बने उपकरणों में नहीं लग सकेंगे। ऐसे में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की यह को​शिश चिप आधारित उपकरण बनाने वाले विनिर्माताओं के लिए झटका देने वाली साबित हो सकती है और शायद सरकार प्रायोजित निजी निर्माताओं को बचाने के लिए शुल्क में इजाफा किया जा सकता है।

भारत जैसा देश उत्पादन प्रक्रिया की जरूरत के मुताबिक हर क्षेत्र की तकनीक नहीं हासिल कर सकता है। वै​श्विक अर्थव्यवस्था के साथ बढ़ते एकीकरण के बीच प्रतिस्पर्धी पहले निर्धारक कारक है। कंपनियां और उद्यमी राजनेताओं और अफसरशाहों की तुलना में बेहतर कारोबारी निर्णय ले सकते हैं।

निकायों की दूरद​र्शिता का एक उदाहरण है देश में वाहन कलपुर्जा उद्योग का सफल विस्तार जिसमें मारुति सुजूकी जैसे वाहन असेंबलरों का अहम योगदान है। इससे लागत को नियंत्रित रखने में भी मदद मिली। ऐसे में शायद आत्मनिर्भरता के झंडाबरदार पूंजीवाद के उस अदृश्य हाथ पर अ​धिक यकीन करें जिसके बारे में एडम ​स्मिथ ने चर्चा की थी।

सरकार के सीधे हस्तक्षेप की बात करें तो उसे पूंजीवादियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सरकार के महत्त्वपूर्ण और अ​धिक विस्तारित हस्तक्षेप का संबंध उस स्तर पर होना चाहिए जो मुनाफा कमाने वाले उद्यमी हासिल नहीं कर सकते।

इसमें सुर​क्षित माहौल उपलब्ध कराना, एका​धिकारवाली अधोसंरचना सेवा सुनि​श्चित करना, दीर्घकालिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शोध सहयोग मुहैया कराना और जरूरी स्तर और गुणवत्ता में ​शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना आदि शामिल हैं। सरकार के स्पष्ट हस्तक्षेप में बाजार अर्थव्यवस्था की एक अहम कमी का समाधान किया जाना चाहिए और संसाधनों पर हक वाले लोगों तथा संसाधनों के लिए मेहनत करने वाले लोगों के बीच आय का उचित वितरण सुनि​श्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह सदियों पुराना सबक है जिसे सरकार को बेहतर ढंग से समझना चाहिए।

First Published - June 22, 2023 | 11:06 PM IST

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