भारत के लिए यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) की फंडिंग में महामारी के बाद से लगातार कमी आ रही है। अमेरिकी सरकार की विदेशी सहायता वेबसाइट के आंकड़ों से यह पता चला है। मालूम हो कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी विदेशी सहायता के पुनर्मूल्यांकन और पुनर्निधारण करने के निर्णय से दुनिया भर में बेचैनी पैदा हो गई है।
देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और अन्य संबंधित सामाजिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए यूएसएआईडी सहायता वर्ष 2022 के बाद से लगातार घटती जा रही है। इस एजेंसी से विभिन्न कार्यक्रमों के लिए 2022 में भारत को जहां 22.81 करोड़ अमेरिकी डॉलर मिले थे, वहीं 2023 में यह रकम घटकर 17.57 करोड़ अमेरिकी डॉलर और फिर 2024 में और कम होकर 15.18 करोड़ अमेरिकी डॉलर (आंशिक आंकड़े) रह गई।
इस तरह, व्यापक योजनाओं को ध्यान में रखकर देखें तो यह रकम बहुत अधिक नहीं लगती है। उदाहरण के लिए वर्ष 2024 में स्वास्थ्य एवं जनसंख्या परियोजनाओं के लिए यूएसएआईडी से मिलने वाली सहायता राशि 8 करोड़ डॉलर थी। इसमें लगभग 4.3 करोड़ डॉलर मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं और 2.1 करोड़ डॉलर बाल स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन के लिए दी गई।
इस एजेंसी की ओर से भारत को एचआईवी/एड्स कार्यक्रम को सहायता के रूप में 99 लाख डॉलर दिए गए थे। इसके उलट केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2024 के केंद्रीय बजट में राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी कंट्रोल प्रोग्राम के लिए 3,079 करोड़ रुपये (35.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए थे। उसके बाद वित्त वर्ष 2025 के बजट में इस कार्यक्रम को केंद्र सरकार की ओर से 2,892 करोड़ रुपये (33.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर) निर्धारित किए गए।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए बजट में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। इस क्षेत्र के लिए साल 21-22 में जहां 73,991 करोड़ रुपये (84.93 करोड़ अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए, वहीं वित्त वर्ष 23-24 में यह रकम बढ़कर 89,115 करोड़ रुपये (10.24 करोड़ अमेरिकी डॉलर) हो गई।
इंडियन वॉलंटरी डेवलपलमेंट ऑर्गेनाइजेशंस (वीडीओ) के राष्ट्रीय नेटवर्क वॉलंटरी एक्शन नेटवर्क इंडिया (वानी) के सीईओ हर्षव्रत जेटली ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत को केवल डॉलर के बजाय यूएसएआईडी जैसी विदेशी एजेंसियों से और अधिक तकनीकी सहायता की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि यह सहायता कम होने से देश में छोटे गैर सरकारी सामाजिक संगठनों पर अधिक असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि इनमें बहुत सारे संगठन यूएसएआईडी जैसी बड़ी एजेंसियों के साथ काम नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, ‘यदि बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन अपने फंड में कटौती करती है तो इसका छोटे एनजीओ पर अधिक प्रभाव पड़ सकता है।’
यूं तो गेट्स फाउंडेशन द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को दी जाने वाली सहायता राशि का ठीक-ठीक पता लगाना मुश्किल है, लेकिन उद्योग जगत के आंतरिक सूत्रों का अनुमान है कि यह राशि वार्षिक स्तर पर लगभग 12 करोड़ डॉलर से 13 करोड़ डॉलर के बीच हो सकती है। एक और एनजीओ के अधिकारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में यह सहायता राशि बहाल हो जाएगी। एक एनजीओ के अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘परियोजना के हिसाब से समीक्षा हो सकती है और उसके बाद फंडिंग बहाल होने की उम्मीद है। लेकिन इस मामले में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। अगले 3 से 6 महीनों के लिए और फंडिंग मिलने में दिक्कत हो सकती है, उसके बाद स्थितियां सुधरने की संभावना है।’
पिछले महीने ही नवनियुक्त राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका द्वारा विदेशों को दी जाने वाली सहायता राशि के पुनर्मूल्यांकन और पुनर्निधारण का आदेश दिया था। इसी के साथ नए प्रशासन ने विदेशी सहायत जारी करने पर 90 दिन के लिए रोक भी लगा दी। इसके बाद यूएसएआईडी ने भारत में अपने साथ काम करने वाले संगठनों को सभी परियोजनाओं को अगले आदेश तक रोकने का फरमान जारी कर दिया। इस तरह फंड रुकने से कई शिक्षा परियोजनाएं भी प्रभावित होंगी।
यूएसएआईडी के शिक्षा से जुड़ी परियोजनाओं को सहायता देने से हाथ खींच लेने के कारण पड़ने वाले प्रभाव पर इस क्षेत्र से जुड़े एक विशेषज्ञ ने कहा कि एजेंसी के इस फैसले से कुछ निजी संगठनों जैसे उन एनजीओ पर पड़ सकता है जो यूएसएआईडी के साथ बेसिक साक्षरता परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। भारत द्वारा सामाजिक कल्याण पर किए जाने वाले खर्च के मुकाबले यूएसएआईडी से शिक्षा क्षेत्र को मिलने वाली सहायता राशि बहुत थोड़ी है। उन्होंने कहा, ‘ यूएसएआईडी के सहायता रोकने का प्रभाव बहुत अधिक नहीं होगा, क्योंकि अधिकांश संगठन बिल ऐंड गेट्स फाउंडेशन जैसे संगठनों की सहायता से काम कर रहे हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में सुधार पर काम कर रहे हैं।’
यूएसएआईडी बाल एवं मातृत्व मृत्यु दर कम करने, एड्स और टीबी मुक्त समाज तथा संपूर्ण स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों के लिए भारत के साथ मिलकर काम करता है। यह एजेंसी सन 1998 से भारत सरकार के साथ मिलकर टीबी उन्मूलन पर काम कर रही है और इसने इसके लिए 1.5 करोड़ लोगों में इस बीमारी का पता लगाने और उनके इलाज के लिए 14 करोड़ अमेरिकी डॉलर निवेश किए हैं। यूएसएआईडी देश के छह राज्यों में मां एंव बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सहयोग कर रही है। इससे 28 लाख गर्भवती महिलाओं और 26 लाख शिशुओं को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद मिल रही है।