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US-India Trade Issues: अमेरिकी उद्योग संगठनों की भारत से सीधी मांग– आयात शुल्क घटाएं, व्यापार सुगम बनाएं

अमेरिका में सबसे बड़े व्यापारिक लॉबीइंग समूह यूएससीसी ने भारत से फार्मास्युटिकल्स पर आयात शुल्क कम करने की मांग की ताकि भारतीय उपभोक्ताओं को सस्ती दवाएं मिल सकें।

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असित रंजन मिश्र   
Last Updated- March 23, 2025 | 10:00 PM IST

अमेरिकी उद्योग संगठन यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स (यूएससीसी), कोलिशन ऑफ सर्विसेज इंडस्ट्रीज (सीएसआई) और हार्ली डेविडसन सहित अमेरिका के उद्योग संगठन एवं कंपनियों ने अमेरिकी सरकार से आग्रह किया है कि निर्यात बढ़ाने के लिए वह भारत पर शुल्क कम करने, गैर-शुल्क एवं नियामकीय अड़चनों को दूर करने के लिए दबाव डाले। यह अपील व्यापार भागीदार देशों पर 2 अप्रैल से बराबरी शुल्क लगाने से पहले की गई है।

अमेरिका में सबसे बड़े व्यापारिक लॉबीइंग समूह यूएससीसी ने भारत से फार्मास्युटिकल्स पर आयात शुल्क कम करने की मांग की ताकि भारतीय उपभोक्ताओं को सस्ती दवाएं मिल सकें और देश के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिल सके। चैंबर ने ‘फार्मास्युटिकल विनिर्माण के लिए दो स्थान’ की अनुमति देने के प्रावधान वाले संभावित व्यापार समझौते का भी आह्वान किया है जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला मजबूत हो सके।

इसने आवश्यक औषधि की राष्ट्रीय सूची के अंतर्गत पेटेंट वाली दवाओं तथा स्टेंट एवं घुटने के प्रत्यारोपण जैसे चिकित्सा उपकरणों पर मूल्य नियंत्रण और दवाओं पर मार्जिन तय करने से फार्मास्युटिकल निवेश प्रभावित होने के साथ ही भारत में नकली दवाओं के खतरे पर भी प्रकाश डाला। चैंबर यह भी चाहता है कि भारत पुराने सीटी स्कैनर और अन्य उन्नत शल्य चिकित्सा प्रणालियों सहित अन्य चिकित्सा उपकरणों के आयात की अनुमति दे।

यूएससीसी ने अल्कोहल रहित पेय पर वस्तु एवं सेवा कर को 28 फीसदी से कम करने की भी मांग की क्योंकि इससे अमेरिकी कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ रहा है। इसके साथ ही चैंबर ने भारत में उत्पादन में स्थानीय सामग्री की सख्त आवश्यकता का भी उल्लेख किया और दोनों सरकारों से ऐसे सार्वजनिक खरीद समझौते पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया गया, जो एक-दूसरे के सार्वजनिक क्षेत्र में पारस्परिक पहुंच की अनुमति देता है। चैंबर ने कहा, ‘किसी भी व्यापार समझौते में भारत को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को अ​धिक उदार बनाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।’

हार्ली डेविडसन ने भारत में लगने वाले उच्च शुल्क का मुद्दा उठाया। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी इस मुद्दे का कई बार उल्लेख कर चुके हैं। कंपनी ने कहा, ‘अमेरिका यूरोपीय संघ, ब्राजील, थाईलैंड और भारत जैसे प्रमुख व्यापार भागीदारों को शून्य से लेकर 2.4 फीसदी शुल्क के साथ मोटरसाइकल आयात की अनुमति देता है मगर अमेरिका में बनी मोटरसाइकलों को यूरोपीय संघ में 6 से 8 फीसदी, ब्राजील में 18 फीसदी, थाईलैंड में 60 फीसदी और भारत में 100 फीसदी शुल्क देना पड़ता है।’

गूगल, एमेजॉन, मास्टरकार्ड जैसी कंपनियों के संगठन सीएसआई ने कहा कि सभी उद्योगों को भारत में व्यापार और निवेश में अड़चनों का सामना करना पड़ता है। संगठन ने कहा, ‘भारत सरकार की प्रस्तावित/लागू की कई डिजिटल संरक्षणवादी नीतियां अमेरिकी सेवा क्षेत्रों के लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं।’

सीएसआई ने स्थानीय सामग्री की आवश्यकता, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और रूपे कार्ड को बेजा लाभ देने, डेटा लोकलाइजेशन, दूरसंचार उपकरणों का अनिवार्य परीक्षण और प्रमाणन, विदेशी कंपनियों पर कराधान, सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सीमा शुल्क आदि का भी मुद्दा उठाया।

स्वतंत्र ई-कॉमर्स रिटेलरों ने कहा कि भारत और चीन ई-कॉमर्स आयात पर ज्यादा शुल्क लगाते हैं और सीमा शुल्क नियंत्रण के माध्यम से आने वाले सामान को सख्ती से नियंत्रित करते हैं इससे अमेरिका से छोटे खुदरा विक्रेताओं द्वारा निर्यात पर प्रतिबं​धित हो जाता है। उदाहरण के लिए भारत ई-कॉमर्स वस्तुओं पर 42 से 60 फीसदी तक आयात शुल्क लगाता है और खिलौनों जैसी कुछ श्रेणियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए चीन और भारत से ई-कॉमर्स आयात पर बराबरी वाला शुल्क और गुणवत्ता नियंत्रण लागू होना चाहिए।

भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करके परिधान बाजार में अधिक पहुंच का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहा है। अमेरिकी परिधान एवं फुटवियर एसोसिएशन ने कहा कि भारत अपने बाजार के लिए देश से बाहर फुटवियर बनाना काफी कठिन और महंगा बना रहा है। उसने दावा किया, ‘भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा हाल ही में लागू किए गए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के अनुसार प्रत्येक कारखाने में परीक्षण, ऑडिट और प्रत्येक जोड़ी पर बीआईएस प्रमाणित लोगो की मुहर होना आवश्यक है। ये संरक्षणवादी नियम अमेरिकी कंपनियों को बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर रहे हैं।’

दूध, चावल, गेहूं, सोयाबीन, मक्का, बादाम, अखरोट, पिस्ता, ब्लूबेरी, चेरी और अंगूर जैसी वस्तुओं के लिए अमेरिकी कृषि वस्तु संघों ने भारत में घरेलू कंपनियों को उच्च सब्सिडी और महत्त्पपूर्ण व्यापार बाधाओं का मुद्दा उठाया।

इंटरनैशनल डेरी फूड्स एसोसिएशन ने कहा कि भारत में अमेरिकी डेरी निर्यात की काफी संभावनाएं हैं मगर गैर-शुल्क बाधाओं और ऊंचे शुल्क के कारण निर्यात सीमित होता है। इसी तरह यूएस ​व्हिट एसोसिएट्स ने गेहूं उत्पादन के लिए उच्च घरेलू सहायता और भारत सरकार द्वारा आयात को हतोत्साहित करने के लिए ऊंचे शुल्क का मुद्दा उठाया। मक्का उत्पादकों के संगठन आईसीजीए ने कहा कि महत्त्वाकांक्षी जैव ईंधन उपयोग लक्ष्यों के बावजूद भारत ने ईंधन के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित मक्का और एथनॉल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।

अगर विपणन वर्ष 2023-2024 में भारत कुल मक्का खरीद का महज 15 फीसदी अमेरिका से आयात करता है तो अमेरिकी किसानों को लगभग 2.2 करोड़ डॉलर प्राप्त होते। यदि भारत सरकार ईंधन के उपयोग के लिए अमेरिकी एथनॉल के आयात की अनुमति दे और अमेरिका केवल 5 फीसदी बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ले तो इसका सालाना 23.7 करोड़ डॉलर का निर्यात हो सकता है।

अमेरिका के सोयाबीन उत्पादक संघ ने कहा कि भारत अमेरिकी सोयाबीन निर्यात के लिए मु​श्किल बाजार बना हुआ है क्योंकि वहां घरेलू उत्पादन के हित में काफी शुल्क और गैर-शुल्क अड़चनें हैं। अमेरिका काफी मात्रा में बादाम का निर्यात करता है। बादाम किसानों के संगठन ने कहा कि अगर भारत बादाम और गिरी पर आयात शुल्क में कटौती करे तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी स्थिति में आ जाएगा।

ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ व्यापार समझौता किया है, जिसके तहत उसे 50 फीसदी शुल्क लाभ मिलता है। इसी तरह ब्लूबेरी परिषद, चेरी बोर्ड आदि ने भी अमेरिकी सरकार से मांग किया है कि वह शुल्क कम करने के लिए भारत पर दबाव डाले।

First Published : March 23, 2025 | 10:00 PM IST