Maldives Elections Result: मालदीप के मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता मोहम्मद मुइज्जू (Mohamed Muizzu) ने मालदीव का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। उन्होंने मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह (Ibrahim Mohamed Solih) के खिलाफ दूसरे दौर में जीत दर्ज कर ली है।
इस चुनाव को हिंद महासागर द्वीपसमूह में हाल ही में स्थापित हुए लोकतंत्र के साथ चीन और पारंपरिक सहयोगी भारत के साथ संबंधों के ‘भविष्य’ के रूप में भी देखा जा रहा था।
45 वर्षीय मुइज्जू उस पार्टी का नेतृत्व करते हैं जिसने पहले चीन द्वारा मालदीव को दिए जाने वाले लोन में वृद्धि का स्वागत किया था और पिछली बार सत्ता में रहते हुए ‘असहमति’ जताने वालों पर बड़ी कार्रवाई की थी।
मालदीव के चुनाव आयोग द्वारा घोषित आंकड़ों के अनुसार, मुइज्जू ने चुनाव में 54.06 प्रतिशत वोट हासिल कर लिए हैं। निवर्तमान इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने आधी रात से ठीक पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली।
सोलिह ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “नए चुने गए राष्ट्रपति मुइज्जू को बधाई।” उन्होंने कहा, “चुनाव में लोगों द्वारा दिखाए गए सुंदर लोकतांत्रिक उदाहरण के लिए धन्यवाद।” 61 वर्षीय सोलिह 17 नवंबर को अपने उत्तराधिकारी के आधिकारिक तौर पर शपथ लेने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में काम करेंगे।
भारत के लिए मालदीव चुनाव नतीजों के क्या है मायने ?
ऐसा माना जाता है कि इस चुनाव नतीजे का मालदीव की विदेश नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। विशेष और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश के रूप में अपने आप को स्थापित करने के लिए चीन और भारत की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
मुइज्जू की प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव के एक वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद शरीफ ने एसोसिएटेड प्रेस के हवाले से कहा, “आज का परिणाम हमारे लोगों की देशभक्ति को दिखाता है। हम अपने सभी पड़ोसी देशों और द्विपक्षीय भागीदारों से हमारी स्वतंत्रता और संप्रभुता का पूरी तरह से सम्मान करने का आह्वान करते हैं।”
मालदीव के पूर्व आवास मंत्री मुइज्जू ने पिछली सरकार के विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, ज्यादतर परियोजनाओं को आंशिक रूप से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) द्वारा फंड किया गया था।
मालदीव राष्ट्रपति चुनाव का क्या है भारत-चीन एंगल ?
सोलिह पहली बार 2018 में राष्ट्रपति चुने गए थे। वह मुइज़ू के आरोपों का सामना कर रहे थे। मुइज़ू ने आरोप लगाया था कि सोलिह ने मालदीव में भारत को अनुचित प्रभाव की अनुमति दी थी।
हालांकि, सोलिह ने आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि भारतीय सेना की उपस्थिति केवल द्विपक्षीय समझौते के तहत जहाज़ बनाने के स्थान के निर्माण के लिए थी और देश की संप्रभुता से कोई समझौता नहीं किया गया था।
वहीं, मुइज्जू ने मालदीव के लोगों से भारतीय सैनिकों को हटाने और देश के व्यापार संबंधों को सुधारने का वादा किया था। इसे लेकर उनका कहना था कि मालदीव के रिश्ते काफी हद तक भारत के पक्ष में हैं जिसे वह सुधारेंगे।
दूसरी तरफ, मालदीव के पूर्व विदेश मंत्री अहमद शहीद ने चुनाव नतीजों का कारण भारत के प्रभाव को लेकर चिंताओं के बजाय आर्थिक और शासन अपेक्षाओं को पूरा करने में सरकार की विफलता को ठहराया। शहीद ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि लोगों के दिमाग में भारत को लेकर बिल्कुल भी कुछ था।”
क्यों हुई सोलिह की हार ?
बता दें कि चुनाव से कुछ समय पहले ही सोलिह की स्थिति कमजोर हो गई। दरअसल मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद चुनाव से कुछ समय पहले मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी से अलग हो गए और पहले दौर में अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया। जबकि दूसरे में उन्होंने न्यूट्रल रहना चुना।
वहीं, मालदीव की प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता यामीन ने 2013 से 2018 तक अपने राष्ट्रपति पद के दौरान मालदीव को चीन के BRI के साथ जोड़ा था। चीन की इस पहल का उद्देश्य एशिया, अफ्रीका, यूरोप और पूरे एशिया में चीन के प्रभाव को बढ़ाने के लिए रेलमार्ग, बंदरगाह और राजमार्गों का निर्माण करना है।