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WHO से अमेरिका का निकलना बुरा मगर भारत पर नहीं होगा असर

विशेषज्ञों के मुताबिक भारत पर असर सीमित रहेगा, लेकिन वैश्विक स्वास्थ्य प्रोग्राम और महामारी नियंत्रण पर पड़ेगा गहरा प्रभाव

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संकेत कौल   
Last Updated- January 21, 2025 | 10:36 PM IST

सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अमेरिका के बाहर निकलने का भारत पर सीधे कोई बुरा असर नहीं पड़ने वाला है। हालांकि उन्होंने कहा कि इससे वैश्विक स्वास्थ्य निकाय के रोग संबंधी वैश्विक कार्यक्रमों पर गंभीर असर पड़ सकता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करके डब्ल्यूएचओ से अमेरिका के निकलने की घोषणा की है और अंतरराष्ट्रीय निकाय को दिए जाने वाले धन और संसाधनों का हस्तांतरण रोक दिया है।
यह 5 साल से कम समय में दूसरा मौका है, जब अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य निकाय से निकलने की पहल की है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने इस निकाय से निकलने की मंशा जताते हुए नोटिस जारी किया था और आरोप लगाए थे कि यह संगठन कोविड-19 के शुरुआती दौर में चीन से बहुत ज्यादा प्रभावित रहा है।

वहीं डब्ल्यूएचओ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की गई एक पोस्ट में अमेरिका के बाहर निकलने पर खेद जताते हुए उम्मीद जताई है कि ट्रंप प्रशासन इस कदम पर पुनर्विचार करेगा। अमेरिका के बाहर निकलने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी किसी चुनौती से निपटने के लिए बहपुक्षीय सहयोग जरूरी है, जो महामारी के जोखिम, जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर होने वाले हमलों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से उत्पन्न होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा हस्ताक्षर किए गए आदेश में डब्ल्यूएचओ से बाहर निकलने की जो वजहें बताई गई हैं, उनमें डब्ल्यूएचओ द्वारा कोविड-19 महामारी को ठीक से न संभालना, जरूरी सुधारों को अपनाने में विफल रहना व अन्य सदस्य देशों के अनुचित राजनीतिक प्रभाव से स्वतंत्र रहने में संगठन की असमर्थता शामिल है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आयुष्मान भारत के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) इंदु भूषण ने कहा कि कोविड के मामले में समस्या यह थी कि यह बहुत नई चीज थी, इसके लिए कोई तैयार रणनीति नहीं थी और महामारी के फैलने के बावजूद दुनिया अभी भी सीख रही थी।

भूषण ने कहा, ‘तमाम बाधाओं, सूचना और जानकारी के अभाव को देखते हुए जो किया गया, वह सराहनीय है। इसलिए अमेरिका का डब्ल्यूटीओ से हटना दुर्भाग्यपूर्ण है। उम्मीद है कि वे इस पर फिर से विचार करेंगे क्योंकि किसी मामले में संगठन को इस तरह से छोड़ देने के बजाय उससे जुड़े रहना अच्छा होता है।’ ट्रंप प्रशासन ने कहा कि डब्ल्यूएचओ लगातार अनुचित रूप से अमेरिका से भुगतान मांग रहा है, जो अन्य देशों द्वारा किए गए भुगतान का आकलन करने पर बहुत ज्यादा नजर आता है।

अमेरिका डब्लूएचओ में सबसे ज्यादा धन देता है। वह संगठन को मुहैया कराए गए कुल धन में करीब 18 प्रतिशत देता है। वित्तीय असर का उल्लेख करते हुए रेड्डी ने कहा कि डब्ल्यूएचओ सबसे ज्यादा धन मुहैया कराने वाले को गंवा देगा, ऐसे में अन्य देशों को अपने अंशदान बढ़ाने की जरूरत होगी। रेड्डी ने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आत्मनिर्भरता दोनों ही हिसाब से अब नया मकसद और कामकाज के नए तरीके सामने आएंगे।’

विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के बाहर निकलने से संभवतः भारत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। रेड्डी ने कहा कि इसका भारत केंद्रित योजनाओं के बजाय अंतरराष्ट्रीय योजनाओं पर ज्यादा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘हालांकि रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी), राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) और अन्य अमेरिकी संस्थाओं के माध्यम से द्विपक्षीय समर्थन जारी रहेगा।’

भूषण ने कहा कि पूरी दुनिया को इससे नुकसान हो सकता है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी जा रही समस्त सेवाएं और स्वास्थ्य संबंधी प्रशासन प्रणाली कमजोर होगी। उन्होंने कहा, ‘इसमें नई महामारियों या संक्रमणों के बारे में जानकारी अन्य देशों के साथ साझा किया जाना और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित किया जाना शामिल है।’

First Published : January 21, 2025 | 10:36 PM IST