facebookmetapixel
उच्च विनिर्माण लागत सुधारों और व्यापार समझौतों से भारत के लाभ को कम कर सकती हैEditorial: बारिश से संकट — शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तत्काल योजनाओं की आवश्यकताGST 2.0 उपभोग को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन गहरी कमजोरियों को दूर करने में कोई मदद नहीं करेगागुरु बढ़े, शिष्य घटे: शिक्षा व्यवस्था में बदला परिदृश्य, शिक्षक 1 करोड़ पार, मगर छात्रों की संख्या 2 करोड़ घटीचीन से सीमा विवाद देश की सबसे बड़ी चुनौती, पाकिस्तान का छद्म युद्ध दूसरा खतरा: CDS अनिल चौहानखूब बरसा मॉनसून, खरीफ को मिला फायदा, लेकिन बाढ़-भूस्खलन से भारी तबाही; लाखों हेक्टेयर फसलें बरबादभारतीय प्रतिनिधिमंडल के ताइवान यात्रा से देश के चिप मिशन को मिलेगी बड़ी रफ्तार, निवेश पर होगी अहम चर्चारूस से तेल खरीदना बंद करो, नहीं तो 50% टैरिफ भरते रहो: हावर्ड लटनिक की भारत को चेतावनीअर्थशास्त्रियों का अनुमान: GST कटौती से महंगाई घटेगी, RBI कर सकता है दरों में कमीअमेरिकी टैरिफ और विदेशी बिकवाली से रुपये की हालत खराब, रिकॉर्ड लो पर पहुंचा; RBI ने की दखलअंदाजी

Datanomics: UNFPA Report का खुलासा, ‘कब- कितने बच्चे’ पर नहीं चलती भारतीय पति-पत्नी की मर्जी

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की 2025 की "स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट" "The Real Fertility Crisis" ने भारत की जनांकिकी पर विस्तार से बात की है।

Last Updated- June 11, 2025 | 8:32 PM IST
UNFPA Report
बिजनेस स्टैंडर्ड हिन्दी

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की 2025 की “स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट” — जिसका शीर्षक है “The Real Fertility Crisis” — दुनिया का ध्यान अब केवल जनसंख्या संख्या पर नहीं, बल्कि प्रजनन स्वतंत्रता (Reproductive Agency) पर केंद्रित करने की बात कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में अधिकतर लोगों को आज भी अपने संतान जन्म से संबंधित निर्णयों में बाधाएं झेलनी पड़ती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 60% महिलाएं और 61% पुरुष ऐसे हैं जिन्हें प्रजनन स्वतंत्रता नहीं है — यानी वे अपनी मर्जी से यह तय नहीं कर पाते कि उन्हें कब और कितने बच्चे चाहिए।

भारत में यह संकट क्षेत्रीय विभाजन के रूप में भी सामने आता है। उत्तर भारत के राज्य जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर (Fertility Rate) अभी भी बहुत अधिक है, जबकि दक्षिण भारत के राज्य जैसे केरल और तमिलनाडु में यह दर जनसंख्या स्थायित्व से भी नीचे है। रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अधिकार-आधारित, लैंगिक-संवेदनशील नीतियों की आवश्यकता है, ना कि जनसंख्या वृद्धि को लेकर घबराहट फैलाने की।

भारत में 36% लोगों ने अनचाही गर्भावस्था (Unintended Pregnancy) की बात स्वीकारी, जबकि 30% ऐसे थे जो बच्चा पैदा करना चाहते थे लेकिन नहीं कर सके। 23% ने दोनों स्थितियों का अनुभव किया। यही ट्रेंड अमेरिका और ब्राज़ील में भी देखने को मिला — यह दिखाता है कि प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं, गर्भनिरोधक विकल्पों और स्वतंत्र निर्णय क्षमता में वैश्विक सुधार की आवश्यकता है।

आर्थिक, सामाजिक दबाव प्रमुख बाधा

भारत, अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देशों में आर्थिक असुरक्षा, रोजगार की अनिश्चितता, आवास की समस्या और बच्चों की देखभाल के लिए गुणवत्ता वाली सेवाओं की कमी जैसे मुद्दे प्रजनन निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं।

भारत में 40% लोग कहते हैं कि वे केवल आर्थिक कारणों से माता-पिता नहीं बनना चाहते। 

  • 21% ने नौकरी की अस्थिरता, 
  • 22% ने घर की अनुपलब्धता, 
  • और 18% ने बच्चों की देखभाल सुविधाओं की कमी को बड़ी वजह बताया। 

इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक अस्थिरता, और सामाजिक दबाव जैसे सार्वजनिक मुद्दे भी इन निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं।

देश की Per Capita Income अभी भी बहुत कम 

भारत अब एक नए आर्थिक मील के पत्थर के करीब है — $4 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर। यह उपलब्धि भारत को जापान से आगे निकाल कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देगी।

लेकिन एक बड़ी चिंता यह है कि देश की औसत नागरिक आय (Per Capita Income) अभी भी बहुत कम है।

  • जब अमेरिका ने 1984 में $4 ट्रिलियन पार किया था, तब उसकी प्रति व्यक्ति आय $17,000 से अधिक थी। 
  • जापान की 1993 में $36,000 
  • चीन की 2008 में $3,500 
  • जबकि भारत की अनुमानित प्रति व्यक्ति आय 2025-26 में सिर्फ $2,878 होगी — जो उसे 189 देशों में 140वें स्थान पर रखेगा। 

2015 में भारत 153वें स्थान पर था और आज 140वें — यानी केवल सौम्य सुधार, जबकि देश की कुल जीडीपी कई गुना बढ़ गई है।

जातिगत जनगणना का क्या होगा असर 

सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि 2026-27 में जातिगत जनगणना (Caste Census) कराई जाएगी। यह निर्णय न केवल सामाजिक प्रतिनिधित्व के लिए अहम है, बल्कि इससे भारत के एक ऐतिहासिक जनसांख्यिकीय मील के पत्थर की भी पुष्टि हो सकती है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत ने 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया था। अनुमान के अनुसार:

  • भारत: 1.43 अरब 
  • चीन: 1.42 अरब 

हालांकि यह आँकड़े आधिकारिक भारतीय जनगणना में पहली बार 2027 में सामने आएंगे — जो इस जनसांख्यिकीय बदलाव की आधिकारिक पुष्टि करेगा।

(With Inputs from Business Standard Data Team)   

US Airport पर भारतीय स्टूडेंट वाला वीडियो देखा था, पढ़े अमेरिका का ये बयान

Adani Group Financial results: सालभर में 90,000 करोड़ का मुनाफा, 21 महीने के Loan payment का इंतजाम

 

First Published - June 11, 2025 | 8:06 PM IST

संबंधित पोस्ट