मॉनसून सीजन में थोड़ी राहत के बाद दिल्ली एनसीआर में लोग फिर जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो रहे हैं। राजधानी और आसपास के इलाकों में दीवाली से पहले ही प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी के करीब पहुंच गया है।
मौजूदा समय में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 350 के पार दर्ज किया जा रहा है, जो बहुत खराब श्रेणी में आता है। पराली जलाने और वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण हर रोज स्थिति बिगड़ती जा रही है। हालात पर काबू पाने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) के दूसरे चरण के प्रतिबंध लागू कर दिए हैं। दिल्ली सरकार ने शहर में प्रदूषण कम करने के लिए पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह प्रतिबंध अप्रभावी रहा तो अगले सप्ताह प्रदूषण इस हद तक बढ़ जाएगा कि खुली हवा में सांस लेना दूभर हो जाएगा। मौसम एजेंसियों ने पूर्वानुमान जारी किया है कि अगले सप्ताह एक्यूआई गंभीर श्रेणी में पहुंच सकता है।
मॉनसून सीजन में इस साल शहरवासियों ने काफी साफ हवा में सांस ली। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार अगस्त महीने का औसत एक्यूआई 72 पर दर्ज किया गया था जबकि पिछले साल यह 116 था। लेकिन, जैसे ही हल्की-हल्की ठंड आई और किसान खेतों में पराली जलाने लगे, इसका असर हवा में भी दिखने लगा। अब लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। अक्टूबर में अभी तक औसत एक्यूआई 213 पर दर्ज किया गया, जो पिछले साल इसी महीने के 219 से थोड़ी ही बेहतर है।
पराली जलाने पर रोक नहीं लगा पाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने सीएक्यूएम को कड़ी फटकार लगाई है, फिर भी पहले के मुकाबले धीरे-धीरे पराली जलाने पर काफी अंकुश लगा है। वर्ष 2000 में जहां 17,529 घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं इस साल इस तरह की अब तक 4,262 घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन प्रदूषण विशेषज्ञों का मानना है कि हवा को जहरीली होने से रोकने के लिए केवल पराली जलाने पर रोक लगाना ही काफी नहीं होगा।
प्रदूषण विशेषज्ञ डॉ. पलक बाल्यान कहते हैं, ‘मौसमी कारकों के साथ-साथ वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण गतिविधियों से उड़ने वाली धूल और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला जहरीला धुआं वायु प्रदूषण के बड़े कारण हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पराली जलाने की घटनाओं में तो खासी कमी आई है, लेकिन एक्यूआई में उतना सुधार नहीं आया है, जितना आना चाहिए था।’
विशेषज्ञों का कहना है कि निर्माण गतिविधियों से उठने वाली धूल, वाहनों का धुआं और दीवाली के मौके पर पटाखे जलाए जाने के कारण वायु की गुणवत्ता और अधिक खराब होगी।
स्वतंत्र पर्यावरण विश्लेषक सुनील दहिया कहते हैं, ‘तब तक वायु प्रदूषण कम नहीं होगा जब तक इसे बढ़ाने वाले कारकों पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा। नियामकीय एजेंसियों को न केवल ग्रैप को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है, बल्कि व्यवस्थित तरीके से दीर्घावधि को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी और उन्हीं के अनुसार कदम उठाने होंगे।’
दहिया यह भी कहते हैं कि समयबद्ध तरीके से उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य पर काम करना होगा। साथ ही शहर, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण वाले क्षेत्रों की जवाबदेही तय करनी पड़ेगी। उदाहरण के लिए दिल्ली के प्रदूषण में अकेले परिवहन क्षेत्र का ही लगभग 41 प्रतिशत योगदान है।
क्लाइमेट ऐंड सस्टेनेबिलिटी इनिशिएटिव (सीएसआई) के कार्यकारी निदेशक वैभव प्रताप सिंह कहते हैं, ‘वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली को भी पेइचिंग की तरह चरणबद्ध, दीर्घावधि योजना के अनुसार दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।’
प्रदूषण बढ़ाने वाले कारकों पर यदि समय रहते चोट नहीं की गई तो हवा की गति धीमी पड़ते जाने के साथ-साथ वह समय दूर नहीं जब एक्यूआई 400 का स्तर पार कर जाएगा।